आदमी तू बस इंसान बन
आदमी तू बस इंसान बन
ऐ आदमी सभ्य बन
आदमी तू बस इंसान बन
देवता नहीं बस इंसान बन
जानवर नहीं बस इंसान बन
जननी को सम्मान दे ।
इस धरा को इनाम दे
जहाँ तेरी गर्भनाल थी कटी ।
आदमी बस तू इंसान बन ।
पिता की उंगली पकड़ श्रवण-सा न बन
गुरु का प्रिय शिष्य अर्जुन-सा न बन
न ही एकलव्य-सा शिष्य बन
न ही दान-वीर कर्ण-सा बन ।
आदमी बस तू इंसान बन ।
जानवर-सा भूखा नर भक्षी न बन
न राम-सा सहनीय बन
न दुर्गा-सा संहारक बन
न ही तू स्वार्थ के लिए कसाई बन।
आदमी बस तू इंसान बन ।
ईश्वर की मूर्ति चूरा तस्करक न बन
न ही अंगों की चोरी कर चोर बन
न ही ये सब भूलाने के लिए नशेडी बन
न ही धर्मात्मा-परमात्मा बन ।
आदमी बस तू इंसान बन ।
बेशक सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु न बन
न ही आदमी पर एक बदनुमा दाग बन
न बलात्कारी,रिश्वतखोर, कामचोर बन
न सीता,राधा ,मीरा-सा बन ।
आदमी बस तू इंसान बन ।
मनु पुत्र बस तू माँ का दुलारा बन
परिश्रम कर लौहपुरुष बन
बहन का भाई बन
पत्नी का पति बन
प्रेमिका का प्रेमी बन
इनका दर्द हरनेवाला बन
इस प्रकृति का रक्षक बन
अपने को जान आत्मज्ञानी बन।
आदमी बस तू इंसान बन।