आधी रोटी
आधी रोटी
क्या सुनाऊँ आज तूम्हे मैं, कुछ भी नहीं सुनाने को
दर-दर मारा फीरता हूँ मैं, पेट के आग को बुझाने को
आधी रोटी के चक्कर में, कुछ न बचा गवाँने को
कोई फुटपाथों पर देखो, कैसे जुठन चाट रहे हैं
कोई शीश-महल में देखो, कैसे पकवान बाँट रहे हैं
कोई रोटी के चक्कर में, दूजे का शीश काट रहा है
कोई हर पल मर रहा है, कुछ भी नहीं है खाने को
कोई मीलों चलता है, खाई रोटी पचाने को
कोई तिजोरी भर रहा है, शाहनशाह कहलाने को,
इतना जो अभिमान है तूझ को, क्या धन - दौलत ही खाएगा ?
रख ले इज़्ज़त इस रोटी की, ये ही पेट के आग को बुझाएगा
जो मिल जाए किस्मत समझो, वर्ना ये आधी रोटी भी
न मील पाएगा
भूखों का भगवान है रोटी
मजदूरों की पहचान है रोटी
जो भी हैं धरती पर मानव, सबकी ये अरमान है रोटी .