आचरण(मनहरण घनाक्षरी)
आचरण(मनहरण घनाक्षरी)
करुणा दया भाव से, प्रेम समता त्याग से।
निर्बल दीन हीन का, दुख दूर कीजिए।
पर उपकार करें, झोली खुशियों से भरें।
अहंकार दूर कर, सुख मन लीजिए।
क्रोध शत्रु सदा बने, ईर्ष्या के बादल घने
तन-मन आग लगे, त्याग इन्हें दीजिए।
वाणी से मिठास झरें, द्वेष सारे दूर करें।
ऐसा आचरण कर, हर्ष रस पीजिए।
