आभा...
आभा...
अंधियारी राहों में
उम्मीदों के दीप लिए
ना कांटों की परवाह
ना दर्द की फिक्र
बस कुछ ढूंढता बढ़ चला
दूर कहीं टिमटिमाती लौ देख
लगा पा लिया सब
पर हवा के झोंकें से
चिराग बुझने लगा
उम्मीद एक बार
फिर टूटने लगा
पर व्याकुल मन
दूर आसमां से
बिखरी लड़ियां बटोर
पिरोए आशाओं की डोर
प्रेम की बाती से भींग
दीया जल उठा
उजियारा फिर
फिजाओं में घुलने लगा
और अपनी "आभा" से
मुझे रौशन कर गया...