आ तुझपे एक कविता गढ़ दूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ दूँ
इंतज़ार में तेरे कटते नहीं पल
आँख से छलकते नयन जल
कभी मिलन में तो कभी विछोह में
कभी तुम्हारी स्नेह मे कभी विद्रोह में
आ तेरे अंतर्मन की मैं बातें पढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
तुझसे बढ़कर न कोई प्यारा लगे
तू क्यों खुशियों की गलियारा लगे
क्यों ठिठकती है जाकर तुमपे नजर
हिलोर ले रही ज्यों सुंदरता की लहर
आ उन उत्तंग शिखरों के संग मैं बढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
इश्क सिर्फ वो नहीं जो प्रेम अंक भर ले
इश्क वह जो जीवन को प्रेम रंग भर दे
तुझमें प्रेम परिकाष्ठा को देखा साक्षात्कार हमने
तुझसे मिल हर अभिलाषा हुआ साकार अपने
आ तुझपर मेरे हर सफलता का श्रेय मढ़ दूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
तेरे बिन जीवन है एक कोरी कल्पना
तेरे बिन यह मन आंगन है नीरव सुना
तू चहकती बुलबुल है इस घर आंगन की
तू महकती सुमन है इस जीवन उपवन की
आ तेरे दामन में खुशियों की मोती जड़ दूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ
आ तुझपे एक कविता गढ़ लूँ।
