STORYMIRROR

Kapil Jain

Inspirational Others

2.5  

Kapil Jain

Inspirational Others

१५ अगस्त

१५ अगस्त

2 mins
28.2K


पन्द्रह अगस्त की रात को,

वो हाथ में झंडा लिए,

थी राजपथ पर घूमती।


आँखों में थी बस याचना,

और घाव छाती पर लिए,

हर द्वार पर वो ढूकती।


शायद कोई मिल जाए,

जो घाव पर मरहम धरे,

अपने हिया में सोचती।


हर द्वार उससे पूछता,

तुम कौन हो ? क्यों आई हो ?

इस राजपथ के द्वार पर।


अवरुद्ध उसके कंठ से,

पीड़ा निकल कर झर पड़ी,

फिर डगमगाए थे कदम ,

और वो जमीं पर गिर पड़ी।


तब बोली वो कराह के,

तुम लाल कैसे हो मेरे,

मुझ को नहीं पहचानते।


अन्याय से घायल हुई,

माँ भारती हूँ आपकी

क्यों हाथ भी ना थामते।


फिर हाथ अपना टेक कर

पीड़ा समेटे घाव की,

उठने लगी वो भारती।


इतिहास में अंकित

सुतों को याद कर,य़।



फिर हाथ फैला कर,

दुआ करने लगी

आकाश से।


तू शाक्षी है समय का,

तू शाक्षी इतिहास का,

तू शाक्षी बलिदान की हर बूंद का।


उठ, जाग फिर से,

थाम ले शमशीर कर में,

औ काट दे अन्याय का सर।


तू काट दे टुकड़ों में,

भ्रष्टाचार को, अपराध को,

औ स्वार्थ को।


वो देर तक रोती रही,

आँसू से मुख धोती रही,

पर आँख दिल्ली की भीगी नहीं।


और खून दिल्ली का खौला नहीं,

आवाज दिल्ली तक पहुंची नहीं,

माँ भारती के रुदन की।


तब एक बच्चे ने,

पकड़ कर हाथ,

समझाया उसे।


क्यों ब्यर्थ में रोती हो माँ ?

भटक कर रास्ता

आ गयी हो कहाँ ?


ये दिल्ली ......

अब नहीं इतिहास वाले वीरों की,

ये हो चुकी पाषाण अब तो।


तो अब ये बोल,

सुन सकती नहीं,

जाओ माँ।


फिर से सींचो कोख अपनी,

फिर से डालो बीज नन्हे,

या हो सके तो,

प्राण फिर से फूंक दो

पाषण में।


स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational