अब पछताए होत क्या !
अब पछताए होत क्या !
"क्या भैया कितनी महंगी देते हो बाहर तो इससे भी अधिक सस्ती मिलती है।" कुछ महिलाओं का सब्जी वाले को ताना देने का यह रोज का सिलसिला बन चुका था ।दरअसल हमारे मोहल्ले में सप्ताह में एक दिन एक सब्जी वाला व फल वाला आकर बाजार लगाते हैं और बहुत ही किफायती दामों में सब्जियां व फल बेचते हैं। इनके दामों में और बाहर के दामों में जमीन आसमान का अंतर होता है। भिंडी अगर बाहर ₹80 किलो है तो ये ₹30 किलो देते हैं। सारी महिलाओं का उनकी दुकान पर तांता लग जाता है और सभी सप्ताह भर का सामान खरीद लेती हैं।इस तरह सभी को बहुत मुनाफा होता है लेकिन कुछ महिलाएं अपनी असंतोषी प्रवृत्ति के चलते भाव को लेकर न सिर्फ इन्हें ताना देती थी बल्कि कई बार झिड़कियां भी दे देती थी जो सब्जी वाला खून के घूंट पीकर रह जाता था ।लेकिन जब पानी सिर से ऊपर निकल गया तो उन्होंने सीधे-सीधे कह दिया बहन जी, जब हमारे यहां सभी कुछ बहुत महंगा है तो फिर आप आती ही क्यों हैं बाहर से क्यों नहीं खरीद लेती। माफ कीजिएगा आप हमारे यहां से सब्जियां नहीं खरीद सकती। वे महिलाएं अनअपेक्षित प्रतिक्रिया पाकर सकपका सी गई लेकिन अब क्या उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा। जरूरत से अधिक लालच करना उन्हें महंगा पड़ा लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।