आंटी जी
आंटी जी
"जी हाँ मैं ही हूं बगल वाली आंटी। आजकल इसी नाम से मेरे चर्चे मेरी कॉलोनी में हैं। छोडिये इन बातों को, लोग तो बातें बनाते ही रहते हैं। ऐसी बातों में क्या रखा है? लोग तो कुछ भी कहते हैं। यही कह के हम अक्सर बातों को इग्नोर कर देते हैं। तो आइए जानते हैं कि आखिर ये चर्चे हो क्यों रहे थे? कहाँ से शुरू हुए? और किसने शुरू किए?
सबसे पहले मैं आप लोगों को मेरा परिचय दे देती हूँ। मैं रमा एक घरेलू महिला, मेरे दो बच्चे एक बेटा उम्र 17 साल और एक बेटी उम्र 15 साल और मेरे पति अखिल जो एक प्राइवेट बैंक में काम करते हैं।
हुआ कुछ यूँ कि हमारे पड़ोस में एक दम्पति रहने आये, जिनका नाम सुमन और अमर था। इनकी एक 6 साल की बड़ी ही प्यारी बेटी इनाया भी है। शिफ्टिंग के दिन मैंने अपनी बालकनी से देखा तो बेचारी बच्ची सामानों के ढेर पर बैठी थी। हम भी पड़ोसी का धर्म निभाने उनसे मिलने चले गए।
जा के हमने मेलमिलाप बढ़ाने और कुछ भी मदद की जरूरत हो तो बोलियेगा कि औपचारिक पेशकश की।
मैंने कहा! "हैलो मैं रमा आप की पड़ोसी, कोई काम हो तो बोलिये या कुछ चाहिए तो ला के देती हूं?"
"जी नमस्ते! मैं सुमन। जी शुक्रिया, लेकिन अभी तो कुछ नहीं, जब चाहिए तो बोल देंगे।"
"जी ठीक है, अच्छा मैं चलती हूँ"।
तभी मेरी नजर वापिस उस बच्ची पर जा के रुक गयी। बच्ची ने मुझे देखते कहा "आंटी आप के घर खेलने चलूँ"?
तभी सुमन ने कहा "नहीं इनाया, हम शाम को गार्डन जाएंगे।"
मैंने मुस्कान दी और वापिस आ गयी।
शाम को बेल बजी, खोला तो बगल वाली सुमन ही थी। "जी आप? आइये ना अंदर।"
सुमन ने अंदर आते ही घर की सुंदरता और सफाई को देखते ही बोला "घर का रख रखाव और इंटीरियर तो बहुत अच्छा है आप का।"
मैंने कहा "जी बहुत शुक्रिया, बैठिए। बताइए कैसे आना हुआ?"
"जी एक कप दूध चाहिए था"
"बैठिए लाती हूँ।"
तभी मेरी बेटी आ के बोली "माँ! मैं बाहर से आती हूँ।"
"लीजिये भाभी दूध।"
"आप मुझे सुमन कहिये मुझे अच्छा लगेगा आंटी"।
"बिलकुल सुमन क्यों नहीं? कोई और काम हो तो बोलना।"
"जी आंटी धन्यवाद।" यहाँ से शुरुआत हुई आंटी के चर्चे की।
अब सुमन जब भी मिलती या किसी काम से आती। हर बार कुछ ना कुछ ऐसा बोल के जाती की मन खराब हो जाता। कभी आंटी आपको तो अच्छा है। आप के बच्चे बड़े हैं। आजकल के बच्चों को सम्भलना बहुत मुश्किल है। आप तो कितना आराम से सज संवर लेती हैं। हमें तो साँस भी लेने की फुर्सत नहीं।
मैंने भी बात को बहुत सीरियसली नहीं लिया। बात भी सच है कि छोटे बच्चों के साथ परेशानी तो होती ही है। और मेरा शौक सजने संवरने का बचपन से था। मैं हमेशा खुद को फिट और सजा हुआ ही देखना पसंद करती थी।
एक दिन मेरी एक सहेली मेरे घर मुझसे मिलने आयी। उसने इनाया को मेरे घर पर खेलते देखा। तो पूछा "अरे! ये तो सुमन की बिटिया है ना?"
"हाँ बड़ी प्यारी बच्ची है।" सुमन बाजार गयी तो मेरे पास छोड़ के गयी है।"
तब उसने मुझसे कहा "रमा तू बुरा मत मानना। तू अपने पड़ोसी की इतनी मदद करती है, उसके बाजार जाने पर उसकी बेटी को सम्भालती है। और वो सोसायटी में तेरे मजे लेती है।"
"मतलब! कैसे मजे?"
यही कि "रमा आंटी को कोई काम तो है नहीं। तो दिनभर हीरोइन बने घूमती हैं। मेकअप देखा है? बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम।"
"अच्छा ये बात! जाने दे ना तू भी, वो गाना सुना है ना? कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना"।
"हां सही कह रही है तू, चल अच्छा अब चलती हूं, मैं।"
कह तो दिया जाने दे, लेकिन बात दिमाग से निकल ही नहीं रही थी। हाथ में मोबाइल लिए फ़ेसबुक देख रही थी कि तभी फ़ेसबुक फ्रेंड सजेशन पर नजर पड़ी जिससे सुमन की प्रोफाइल थी। उत्सुकता बस खोल के देखने लगी। तभी मेरी नजर उसके बर्थ डेट पर पड़ी। जिसे देखते ही मुझे हँसी आ गयी।
अगले दिन बाजार से लौटते समय मैंने देखा कि सुमन अपने कुछ सहेलियों से बात कर रही थी। तभी उसने कहा "रमा आंटी, बेचारी का उम्र पचपन और दिल बचपन" का है अभी।"
मन तो हुआ कि अभी दो तमाचे लगाऊँ जा के सबके बीच में, लेकिन ऐसे समाज में सबके बीच तमाशा नहीं बनाना चाहती थी। बेकार में और बातें बढ़ जाती। लेकिन अब ये निश्चय कर लिया था कि सुमन को सबक सिखाना तो है।
एक दिन मेरे घर पर किट्टी रखी थी, सभी महिलाएं मेरे घर पर मौजूद थीं। तभी डोरबेल बजी, मेरी एक सहेली ने दरवाजा खोला देखा तो सुमन थी। उसने उसे अंदर आने के लिए कहा। तभी मैं भी किचन से आ गयी नाश्ता ले के।
"अरे सुमन तुम?"
"हाँ आंटी वो इनाया को आप थोड़ी देर संभाल लेती तो मैं जरा मैं पार्लर हो आती।"
"ठीक है" मन में गुस्से को दबाते हुए मैंने कहा कि तभी उसने आदतन फिर वही बात कही "आंटी आप इस उम्र में भी हम नौजवानों को टक्कर देते हो। आपको कोई देख के नहीं कह सकता कि आप इतने बड़े बच्चों की माँ हैं। हमेशा फिट एंड फाइन मुस्कुराता चेहरा"।
अब बारी मेरी थी क्योंकि मेरी सारी सहेलियां वहाँ मौजूद थीं और कुछ सुमन की भी क्योंकि ये सोसायटी किट्टी का ही ग्रुप था। जो इस टोंट को सुन के मन ही मन मुस्कुरा रही थी।
तब मैंने सुमन से कहा "शुक्रिया सुमन इस तारीफ के लिए। बैठो ना थोड़ी देर प्लीज्। सुमन पता है जब मैं सिर्फ अठरह साल की थी तभी मेरी शादी हो गयी थी और एक साल के भीतर मेरा बेटा भी। और तीन साल शादी के पूरे होते ही दो बच्चे मेरी गोद में थे। क्योंकि गाँव में शादी जल्दी ही कर देते हैं इसलिए। लेकिन मैंने अपने सपनों को कभी मरने नहीं दिया। उनके साथ ही मैंने पढ़ाई भी की और घर भी संभाला, अपने पति और परिवार के सहयोग से।
और हाँ! कल मैंने फेसबुक पर तुम्हारी प्रोफाइल देखी। तो पता चला कि तुम तो सन 1982 की पैदा हो। शायद तुम ईयर लॉक करना भूल गयी थी औऱ शादी भी तुमने 30 साल की उम्र के बाद की। ठीक कहा ना मैंने। खैर! कोई बात नहीं वैसे मैं एक बात बता दूँ कि मैं सन 1983 में पैदा हुई हूं। बाकी तुम खुद भी बहुत समझदार हो।
और हाँ तुमने एक और बात मेरे बारे में ठीक कही थी कि "मेरी उम्र पचपन और दिल बचपन का"। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरी उम्र किसी भी मोड़ पर हो पर दिल हमेशा बचपन सा रखूं। बिलकुल साफ सुथरा, बुराइयों से दूर, अपनी दुनिया में खुश। है ना सुमन अच्छी बात?
और अब बात आती है "आंटी"। इस शब्द का अर्थ हिंदी में होता है चाची, मौसी, मामी जैसे औपचारिक या सामाजिक या पारिवारिक रिश्तों को दर्शाने के लिए। तो मुझे किसी की आंटी कहलाने या कहने से कोई परेशानी नहीं।
आज सुमन सबके सामने शर्मिंदा नजर झुकाए खड़ी थी।
दोस्तों, कभी कभी कुछ बातों का और लोगों का जवाब देना भी आवश्यक हो जाता है। हमें बिना सोचे समझे, बिना सत्य को जाने किसी पर भी दिल दुखाने या उसका अपमान करने वाले शब्दों का उपयोग नहीं कहने चाहिए। किसी का हँसी माजक भी सीमित और सम्मान के दायरे में ही रह कर करना चाहिए।