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अंधकार

अंधकार

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मेजर बलवीर को अपनी पूरी यूनिट के साथ नई पोस्ट में शिफ्ट करने के लिये कल सुबह इस पहाड़ी एरिया से निकलना था, पर अनायास ही उसे नीली आंखों वाला"आदिल" जो अपने नाम के अनुरुप न्याय का देवता लगता थी उसकी याद आ गयी, उससे बिछुड़ने की कल्पना उसे उदास कर गई।

ये शान्त, खामोश पहाड़ियां बलवीर को हमेशा आमन्त्रित करती लगती हैं, पर यहां आलम कुछ अलग ही है, चप्पे चप्पे में मौत थी,कभी भी अचानक सीमा पार से फायरिंग शुरु हो जाती तो गांव में भी अफरा तफरी मच जाती,इसलिये गांव लगभग खाली होने की कगार में थे, 

सुबह रवानगी के कारण अफरातफरी थी, बाहर का जायजा लेने मेजर बलवीर अपने रुम से निकले ही थे कि बाउन्ड्री वॉल की जाली से सटे मौन याचक से खड़े "आदिल" में नजर पड़ी, बलवीर के चेहरे में मुस्कान बिछ आई, आगे बढ़ कर.. हाथ हिला के बोले "ऐ आदिल कैसे हो..यहां क्यों खड़े हो ?अम्मी कहती है "साहब अपनी फौज के साथ वापस जा रहा है ...हमारा भी आखिरी वख आ गया है, वो अब्बा की तरह हमें भी ...." ये कहते आदिल की आंखें डबडबा आई,  नहीं बच्चे ..घबराओं नहीं, दूसरे जवान आयेगें ना,तभी तो हम जायेगें।

आप तो हमारे जिगरुक है, और नया कैसा होगा?

मेजर बलवीर को आयूब की याद आई, बड़ी बड़ी नीली आंखों वाला, हमेशा मुस्कुराता रहता ..नाम के अनुरुप शान्त, धैर्यवान, वो भी हमेशा कहता "साहब सलाम,आप तो हमारा दिलुक है हमारा जिगरुक है, हद पार की बाल से जब मौत बरसती है आप लोग सहारा होते हैं",

आयूब को मार दिया गया, उन शैतानों को लगता था कि वो सेना के लिये मुखबिरी करता है, एक शाम अपनी भेड़ों को चरा के लौटते हुये,उसकी आखिरी शाम साबित हुई, 

बेटे आदिल और पत्नी रुकैय्या के साथ खुशहाल जिन्दगी जीने वाला आयूब जब मिलता था.."कहता सलाम साहब ..आदिल को आपकी तरह ही बड़ा साहब बनाऊगां..और हंसता..,  

"साहब कुछ बोलो ना ... इस उदासी भरी आवाज से बलवीर चौंक के आदिल को देखने लगे, 

अम्मी कहती है "हमारी जिन्दगी तो अनिगांट में है, साहब ये अनिगांट कभी हट पायेगा क्या?? मैं साहब बन पाऊंगा ?

हजारों भविष्य के प्रश्न उसकी नीली उदास आंखों में तैर आये, मेजर बलवीर ने पास आ कर आदिल के सर पर हाथ फेरा..और गाल में थपकी देते हुए सकारात्मक मुस्कान के साथ सर हिलाया, आदिल के चेहरे में भी मुस्कुराहट खिल उठी।


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