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स्त्री हूँ मैं

स्त्री हूँ मैं

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"क्या हुआ बेटी, इतनी उदास क्यों हो?" 

"कुछ नहीं माँ। बस ऐसे ही।" 

"मुझे नहीं बताओगी क्या हुआ?" 

"माँ, वो आज मित्तल चाचा के बेटे ने फिर मेरे साथ छेड़छाड़..." 

"फिर मतलब. ...? क्या पहले भी कभी ..." 

"हाँ माँ, वो अक्सर मुझे छेड़ता है। और आज तो उसने मेरे..। अभी भी वो बुरा अहसास मन पर हावी है।"

"उसने तुझे बुरी नियत से हाथ लगाया तो क्या तुझे भगवान ने हाथ नहीं दिए पलटकर उसे थप्पड़ मारने के लिए। और आज तक तूने मुझे बताया क्यों नहीं?" 

"मुझे डर लगा माँ। फिर मित्तल चाचा पिताजी के अच्छे दोस्त हैं, मुझे लगा पिताजी मुझपर नाराज़ हो जाएंगे" 

"दोस्त -वोस्त सब बाद में बेटी। सबसे पहले एक ही बात याद रखना। हमारे शरीर पर सिर्फ हमारा अधिकार है। किसी दूसरे की संपत्ति नहीं हैं हम की कोई भी बुरी नियत से हमे छू ले और हम चुपचाप बर्दाश्त कर लें। 

सारे रिश्ते बाद में अपना सम्मान पहले। चल उठ और अभी चलकर सबके सामने सच बात बताकर उसके मुँह पर थप्पड़ रसीद कर।" 

"लेकिन माँ, सब लोग क्या कहेंगे। मेरी बेइज़्ज़ती होगी।" 

"गलत काम उसने किया है तो बेइज़्ज़ती भी उसी की होगी। तूने कोई ग़लती नहीं कि की मुँह छुपा कर रोती रहे। आज कुछ नहीं बोली तो कल को उसकी हिम्मत और बढ़ेगी। आज तेरे साथ, कल किसी दूसरे के साथ। नहीं यह सब बन्द होना ही चाहिए।"

"चलो माँ।......"



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