पर अल्फाज़ नहीं
पर अल्फाज़ नहीं
प्यार....एक एहसास,दबे हूए जज्बात...दिल का तेज़ धड़कना...और मुंँह का सिल जाना...आँखो से दीदारे मुहोब्बत को सीने में कैद कर लेना...हाँ...उस्के आहोश में दफन हो जाना...
अंदर अरमानों का सैलाब है...हसरतों की बरसात है..मगर उसके चेहरे पर.शिकन तक नहि...और ना मेरे चेहरे पर कोई ऐहसास...मगर ऐक दुसरे को निगाहो मे कैद कर लिया है...आते जाते...आँखे ढूँढती है ऐक चेहरा...कई चेहरो में...ऐक.चाँद बादलों में...मगर जब हूआ सामना दीदारे मुहोब्बत का...रह गऐ...खामोशी में...हम भी...आऔर वो भी...ना ईज़हार हुआ...ना ईकरार...
बीत गऐ मौसम कितने...ईश्क. बेकरार रह गया...मं जिलें मिल ना पाई..रास्ते जुदा हो गऐ....वफा करके भी निभा ना सके...शरम और हया कि ये लकीर कभु लाँघ ना पाऐ...ना वो...ना हम...किस्मत समझकर आगे बढ़.गऐ...मुहोब्बत आधूरि.रह गई....लेकिन आज़ भी उनका खयाल आता है....तो.दिल...धड़क उठता है...
पहला प्यार सीने में आज भी जिंदा है...जज्बात बनकर...प्यार है पर अल्फाज् नहीं...