दस का नोट
दस का नोट
नमिता गाँव से आज शहर आ रही थी, बहुत दिन से माँ का मन अपने गाँव जाने का था, तो माँ, नमिता को गाँव में घुमाने ले आई थी। बहुत से परिचित लोग उन्हें विदा करने के लिए एकत्रित हुए थे। एक-एक कर सब माँ और नमिता को कुछ न कुछ विदाई दे रहे थे। किसी ने 100 रूपये दिए किसी ने 50 का नोट नमिता के हाथ में रख दिया। किसी ने ताजा फलों की टोकरी कार में रखवा दी। अपनी अपनी हैसियत के अनुसार सबने कुछ न कुछ विदाई दी। तभी एक बुज़ुर्ग महिला नमिता के पास आई और उसने एक प्लास्टिक के पैकेट के अंदर से 10 का थोडा फटा सा नोट निकाला और नमिता के हाथ पर रख दिया। नमिता ने बड़े अनमने मन से कहा, "रहने दीजिये इसकी कोई ज़रुरत नहीं है।"
"बेटी में तेरी नानी लगती हूँ, ये मेरा प्यार है इसके लिए मना नहीं करो।" बुजर्ग महिला ने प्रेमपूर्वक नमिता से कहा। ये बात कहते वक़्त उस महिला की आँखों ने नमिता की आँखों तक जो प्रेम बरसाया, वो कहीं अंदर तक नमिता को भिगा गया।
नमिता को उस पल वो 10 का नोट, अनमोल लगा, उसने कहा, "नानी जी, जिस पैकेट में ये रूपए रखे थे वो भी मुझे दे दो।"
महिला ने आश्चर्य से पूछा, "बिटिया तुम उसका क्या करोगी?"
नमिता ने मुस्कुराते हुए कहा "ये मेरे लिए अनमोल है इसे में सदैव अपने पास सहेज कर रखूंगी।"
और फिर नोट को पैकेट में रख कर नमिता ने प्यार से उसे अपने पर्स में सहेज लिया।