आदिवासी महिला जिसने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा लेकिन पा लिया पद्म श्री,
आदिवासी महिला जिसने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा लेकिन पा लिया पद्म श्री,
आज आदिवासी समाज की द्रौपदी मुर्मू देश की प्रथम नागरिक बनने जा रही हैं। आदिवासी समाज, किसी आदिवासी महिला के पहली बार राष्ट्रपति पद पर आसीन होने से गौरवान्वित महसूस कर रहा हैं। भले ही लोग आदिवासी समाज के बारे में कम जानकारी रखते हो , यह आदिवासी समाज हमारे देश का महत्ब्पूर्ण हिस्सा हैं। आदिवासी समाज के अनेक पुरुषो और स्त्रीओ ने नए आयाम स्थापित किए हैं। "जहां चाह है, वहां राह है||" " चाह बड़ी हो तो उड़ान के लिए आसमान भी छोटा पड़ जाता है" कुछ ऐसी ही कहानी है मध्यप्रदेश के डिंडोरी के एक छोटे से गांव से आने वाली दुर्गाबाई ने चरितार्थ कर दिया है। उन्होंने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा और अपनी कला के बल पर पद्म श्री पा लिया। दुर्गाबाई आदिवासी वर्ग के लिए मॉडल के रूप में उभरी है। साल 1974 में अमरकंटक के पास डिंडोरी जिले के ग्राम बुरबासपुर में रहने वाले चमरू सिंह परस्ते के घर पर जन्मी दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थी। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और शिक्षा के उचित इंतजाम नहीं मिलने की वजह से वे काफी पिछड़ गई थी। चित्रकारी करने वाली दुर्गाबाई (Durgabai) ने कभी स्कूल की दहलीज भी नहीं पार की लेकिन अपनी कला के दम पर ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं, जहां पहुंचने का सपना लगभग हर भारतीय का हो
लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने की चाह के चलते चित्रकारी को अपनी मंजिल पाने का उचित माध्यम बनाया। इसी के चलते उनके द्वारा लगातार आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाई गई। इसी पहचान ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार तक पहुंचा दिया।जैसे ही पद्म श्री पुरस्कार की घोषणा हुई वैसे ही दुर्गाबाई और उनके पति सुभाष सिंह ओएम खुशी से झूम उठे.
दुर्गाबाई ने 6 साल की उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी गई थी. इसके बाद साल 1996 में वे भोपाल पहुंची. इस दौरान उन्हें अपनी पहचान बनाने का मौका भी मिला उनके पति सुभाष सिंह भी निजी नौकरी छोड़कर उनके साथ जनजाति संग्रहालय भोपाल द्वारा नर्मदा को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रम उनकी मदद कर रहे हैं. जनजाति संग्रहालय भोपाल द्वारा उन्हें काफी सहयोग मिल रहा है. इसी के चलते हुए नर्मदा को लेकर चित्रकारी के माध्यम से आगे कार्य में जुटी हुई है.
दुर्गा बाई चित्रकारी से कहानी बताती हैं
दुर्गा बाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं। दुर्गा बाई की लोक कथाओं में काफी रुचि है और इसके लिए वह अपनी दादी का आभार जताती हैं। दुर्गा बाई जब छह साल की थीं तभी से उन्होंने अपनी माता के बगल में बैठकर डिगना की कला सीखी जो शादी-विवाहों और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजाइन है।
