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Zuhair Abbas

Romance

4.8  

Zuhair Abbas

Romance

एक हसीन परी

एक हसीन परी

2 mins
830


वख्त ने सीमेटा हे लम्हों को पर याद आज भी है कि मेरी वीरान ज़िन्दगी में किसी परी ने दस्तक दी थी। अब तक मालूम ना था सपनों का वजूद क्या था, उन्हें देखा तो सपने देखने कि इबतेदा हुई ,यह जाना अगर ज़िन्दगी खामोश थी तो इसकी ज़ुबाँ उस हूर में थी जो दिन रात का ख्वाब थी की हासिल -ए-तमन्नाह हो जाए 

किस कदर दिवानगी का आलम था की गर उन्हें देखकर राहत मिलती थी तो रोज उनके दीदार के तलबगार बन गये थे।

मासूम चेहरा, होटो की मुसकुराहट हमारे जीने का सबब बनती गयी कभी धोखे से भी छू गयी तो रुह को पाकिज़गी का एहसास हुआ।

देख कर उन्हे दिल मे मुहब्बत का एहसास हुआ हम उनके जीतना करीब आते गए शदीद मुहब्बत मै खैद होते गए और किस्मत का तकाज़ा तो देखीए वो बेखबर मुहब्बत से हमारी हमे दर्द-ए-दिल देते रहे।

मुहब्बत होना भी लाज़िम था उनसे क्योंकि इन आंखों ने उनसे हसीन कोई देखा ना था, ज़ुल्फो ने रिझाया हमें, आंखों के आशिक हो गए बस एक मुस्कुराहट के वास्ते हम उन पर कुर्बान हो गए।

दोस्ती को पहला खदम समझ कर शुरुआत-ए- गुफ्तगू हुई उनसे ,लेहजा सुना तो हम मज़ीद आशिक-ए-यार हो गए दिन अब उनके चहरे से होता था और रौशनी उनके लफज़ों से होती थी अगर धूप सर पर हुआ करती थी तो छाऊं की आस उनकी ज़ुल्फो से।

दिन ढलते गए महब्बत और होती गई पर खौफ-ए- जुदाई में लफ़्ज़ों ने कभी हिम्मत ना कि के इज़हार-ए- महब्बत कर दें मंज़ूर था इश्क छुपाना दिल में लेकिन ना-मंज़ूर था वो रूठ जाएं हमसे।

वक़्त ने करवट ली और मेहबूब को आंखों से दूर कर दिया हमसे ,दर्द-ए-जुदाई मे फिर नाउम्मीदी ने दामन को थाम लिया शायद सपना ही था सपना रह गया।

तन्हाइयों मे जीने लगे थे हम हर शब उनकी याद में रोने लगे थे हम गिरया करते थे ख़ुदा से उन्हें पाने की उनके नाम पर ज़िन्दगी जी जाने की किस्मत को क्या मन्ज़ूर था नही मालूम था हमे लेकिन शायद ख़ुदा को मेरे दर्द का एहसास था और फिर दुआएं रंग लाई हमारी और वक़्त ने फिर दस्तक दी और खुदा ने रहमत हम पर, फिर ख्वाबों की परी से ला मिलाया हमको।

हमसे इज़हार के ख़ुद भी तलबगार थे वो इस हकीकत से रूबरू हुए और हमें उनसे उनकी खुबसूरत ज़िन्दगी मे आने की इजाज़त मिली।

बेचेनियों को चैन मिल गया राह चलते को यूं ही हमसफर मिल गया दिल की धड़कनों को सबब मिल गया होंठों को मुस्कुराने की वजह मिल गयी जिन्दगी को जीने की उम्मीद मिल गयी परियां कहानी नहीं इसकी दलील भी उन्हें पाकर मिल गयी।


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