ये है ज़िन्दगी
ये है ज़िन्दगी
गुनाहों कि सज़ा
मेरी खुशियों का मुझसे बदज़न होना
फिर भी चाहूंगा मुझसे किसी का दिल ना दुखे।
मुझसे मुंह फेरने वाले मेरे
अज़ीज़ राह मे कहीं दूर छूट गए
और मैं अकेला सेहरा मे भटकता रहा।
इस क़दर केसे हुई होंगी मुझसे खताएं कि
जिसने बड़े खरीब से जाना था मुझे
वो भी मेरे साथ रेह सका।
अब तो लफ्ज़ ज़ुबां पर आते हैं और
खामोश ही मेरे अल्फाजों को छोड़ जाते हैं
सच तो ये है कि मेंने खुद को ही सुने अरसा गुज़ारा है।
ज़िन्दगी का असल पहलू शायद तन्हाई ही है
अब वाकिफ हो गया हूं कोई अपना नहीं होता।