STORYMIRROR

Zuhair abbas

Abstract

3  

Zuhair abbas

Abstract

ये है ज़िन्दगी

ये है ज़िन्दगी

1 min
362

गुनाहों कि सज़ा

मेरी खुशियों का मुझसे बदज़न होना

फिर भी चाहूंगा मुझसे किसी का दिल ना दुखे।


मुझसे मुंह फेरने वाले मेरे

अज़ीज़ राह मे कहीं दूर छूट गए

और मैं अकेला सेहरा मे भटकता रहा।


इस क़दर केसे हुई होंगी मुझसे खताएं कि

जिसने बड़े खरीब से जाना था मुझे

वो भी मेरे साथ रेह सका।


अब तो लफ्ज़ ज़ुबां पर आते हैं और

खामोश ही मेरे अल्फाजों को छोड़ जाते हैं

सच तो ये है कि मेंने खुद को ही सुने अरसा गुज़ारा है।


ज़िन्दगी का असल पहलू शायद तन्हाई ही है

अब वाकिफ हो गया हूं कोई अपना नहीं होता।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract