प्यार मोहताज नहीं
प्यार मोहताज नहीं
"रमिया तू सेठ से थोड़ा उधार माँग लेगी का।"
"न बाबा न,सेठ बहुत गुस्से वाला है,कहीं अंट शंट बोला तो।"
"ठीक है, मैं ही ठेकेदार से बात करता हूँ, गाँव, माई को पैसे भेजना है।"
कहकर रंजन दिहाड़ी पर निकल गया। रमिया भी सेठ के यहाँ, गेहूँ की बोरी से गेहूँ साफ करने लगी।
"रमिया तू हाथ का काम समेट ले, तो बहुरिया को महावर लगा देना।"
सेठानी बोली।
"का बहू जी आज कोई त्यौहार है क्या।"
महावर लगाते हुए रमिया ने पूछा।
"करवा चौथ है,आज औरतें अपने पति के लिये निर्जला व्रत रखती है उनकी लम्बी उमर के लिये ,तू नहीं रखेगी रंजन के लिये।" रमिया केवल मुस्करा दी। जाते समय बहू ने थोड़ा सा भरा मेहंदी का कोन,और खाली आलता की शीशी उसे कचरे में डालने के लिये दे दी।
रात के आठ बज गये, रंजन लौटा नहीं, रमिया का मन घबराने लगा, कहीं ऊँच-नीच न हो गई हो। तभी रंजन पहुंचा, एकटक रमिया को देखता रहा और दौड़कर उसे बाँहो मे भर लिया।
"तू तो दुल्हन लग रई है, मेहंदी, मावर, साड़ी, का बात है रे।"
"करवा चौथ है न।" रमिया लजा गई।
"माई रे,तू उपासी है, पानी भी न पिये।"
थाली मे रखे रोटी,साग, थोड़ा सा गुड़ चाँद पूज दिये गये।
"आज देर तक काम किये, तो थोड़े जियादा पैसे मिले, गाँव भिजवा दिये,और तेरे लिये ये छोटा सा गजरा लाये है गिफ्ट समझो। रंजन के हाथों गुड़ खाकर रमिया ने पहिली करवा चौथ का व्रत तोड़ा।।