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सखियाँ

सखियाँ

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"कितना बेकार खाना मिलता है यहाँ, पानी जैसी दाल, सब्जी में मसाला गायब, कोई कैसे खा सकता है।"

"क्या हुआ।"

"सुन्दर काण्ड पढ़ लिया भक्तन, आश्रम का खाना, कोई जानवर भी न खाए। लोग कितना दान करते है यहाँ।व्यवस्थापक मिल बाँट के खा लेते होंगे।"

"बड़ी चटोरी जीभ है तुम्हारी, अब इस उम्र में पूजा-पाठ करो। सादा भोजन लो।" "हमें नहीं बनना तुम्हारे जैसी भक्तन, गीता पढ़ो, रामायण पढ़ो, व्रत करो, भागवत बांचो और समय बचे तो कॉपी पर राम-राम लिखो।"

"शेष जीवन भजन पूजन में ही बिताने में कल्याण है राधा।"

"भक्तन, कितनी असमानता है, हम दोनों में तुम ठहरी पक्की सन्त,और मैं अच्छा खाना, पहनना, हँसना, जिंदगी में अन्त समय तक खुशियाँ भरना चाहती हूँ फिर भी हम दोनों पक्की सखियाँ है क्यों ?

"क्योंकि हम दोनों में एक समानता है।"

"कौन सी ?"

"तुम्हें भी तुम्हारा बेटा आश्रम में छोड़ गया और मुझे मेरा बेटा।"


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