तोहफा
तोहफा
माँ मुझे थोड़ा काम है बाजार में, मैं आती हूँ एक घंटे में तब तक आप आराम कीजिये। फिर साथ चाय पियेंगे, कहती हुई रचना बाहर चली गयी।
उषा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी।
कुछ बीती बातें उसे याद आने लगी। पति शुरु से उसे गंवार कहकर संबोधित करते थे। नई तकनीकों, तौर-तरीकों के साथ ढलना थोड़ा मुश्किल होता था, उस गांव में पली-बढ़ी स्त्री के लिए। बेटे ने मोबाइल चलाना सिखाना चाहा पर जब वो जल्दी न सीख सकी तो उसने भी कह दिया- माँ तुम सच में गंवार हो। उसने मदद के लिये पति की ओर देखा तो उन्होंने भी वितृष्णा से मुँह फेर लिया।
यही सोचते-सोचते कब आंख लग गयी उसकी वो जान भी न सकी।
रचना की आवाज़ से फिर उसकी आंख खुली- माँ उठिए, चाय-नाश्ते का वक्त हो गया। देखिये आपके पसंदीदा गोभी के पकोड़े बनाये मैंने।
उषा के होठों पर सहसा मुस्कान आ गयी। पति की नापसंदगी के कारण शादी के बाद वो कभी गोभी के पकोड़े नहीं खा सकी थी।
उठने को हुई तो देखा बिस्तर पर एक डिब्बा रखा था। उसने उत्सुकतावश खोला तो उसमें नया लैपटॉप था। वो चौंकी की इसका यहां क्या काम। शायद रचना ने जल्दी में रख दिया होगा।
उषा ने बाहर आकर कहा- बेटी तुम्हारा लैपटॉप मेरे कमरे में रह गया है।
रचना ने कहा- वो मेरा नही आपका है माँ। मेरी तरफ से आपके जन्मदिन का तोहफा। वही लाने तो गयी थी।
उषा को अचानक याद आया- हाँ कल तो जन्मदिन है उसका। कभी किसी ने मनाया ही नही तो अब उसे भी नहीं याद रहता है।
उषा ने कहा- तुझे कैसे पता चला रे।
तब रचना ने कहा- गलती से आपकी डायरी पढ़ ली थी माँ। अब आपको कोई गंवार नहीं कहेगा। मैं सिखाऊंगी आपको सब कुछ। तब तक, जब तक आप सीख नहीं जाती। वैसे ही जैसे बचपन में हम सबकी माँएँ सीखाती है हमें पूरे धैर्य के साथ।
उषा ने रचना के सर पर स्नेह का हाथ रख दिया। मन ही मन उसने ईश्वर को रचना जैसी बहू देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा- अगर बेटा पिता का सहारा हो सकता है तो बेटी जैसी बहू भी माँ का सहारा हो सकती है। बस जरुरत एक-दूसरे को मान-सम्मान और प्यार देने की है।
आज सालों बाद उषा की आंखों में आत्मविश्वास की चमक लौट आयी थी।