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डिजिटल प्यार

डिजिटल प्यार

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आज बस यूं ही बैठे-बैठे मैं फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प में खोया हुआ था। कभी व्हाट्सएप्प पर किसी का स्टेटस देखता तो कभी इंस्टाग्राम पर किसी की स्टोरी। फेसबुक पर मैं अपना ही प्रोफाइल खोल कर उसमें अपने अबाउट सेक्शन में चेक कर रहा था कि क्या-क्या लिखा है, कितने लोग मुझे फॉलो कर रहे हैं, कितनों को मैं फॉलो कर रहा हूं। मैं स्क्रॉल करते-करते नीचे जाता हूं तो सबसे नीचे नाम है 'अदिति सिन्हा'।

यह रिक्वेस्ट मैंने करीब 2 साल पहले भेजी थी आज तक एक्सेप्ट नहीं हुई, यह सोच कर मैं रिक्वेस्ट डिलीट कर देता हूं और फेसबुक पर कुछ देखने लगता हूं। फिर पता नहीं मन में क्या आता है और मैं फिर से उसकी प्रोफाइल खोलता हूं, कुछ फोटोज देखता हूं, कुछ पर लाइक करता हूं और फिर से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देता हूं, अब करीब 2 घंटे बाद मैसेज आता है, "डू वी नो इच अदर।"

चलिए अब मैं यह कहानी शुरु से बताता हूं। मैं अपने बारे में बताता हूँ , मेरा नाम अभिषेक है, मैं एक छोटे से शहर या कस्बे से आता हूं। अभी मैं देश की राजधानी दिल्ली में पढ़ने के लिए आया हूं या यूँ कहें सरकारी नौकरी पाने के लिए पढ़ने आया हूं। हम जैसे लड़कों में यहां आने पर हमारे मन में कई सारी चीजें एक साथ चलती हैं जैसे कि पढ़ाई ,फैशन ,घूमना-फिरना और एक गर्लफ्रेंड भी 'दिल्ली वाली'। हम किसे प्राथमिकता दें यह सोच पाना थोड़ा मुश्किल भी होता है। खैर, अभी मैं पढ़ाई पर ही ध्यान दे रहा हूं, मैंने एक कोचिंग ज्वाइन कर रखी है, जहां क्लास करने जाता हूं और मन लगाकर पढ़ता हूं। हमारी कोचिंग में हर संडे को टेस्ट होते हैं और उसका रिजल्ट अगले दिन नोटिस बोर्ड पर लगा दिया जाता है। जिन पांच स्टूडेंट्स के नंबर सबसे ज्यादा होते हैं उनके नाम क्लास में लिए जाते हैं। इस बार इस 5 में मेरा भी नाम है। हम 5 लोग खड़े होते हैं 3 लड़के, 2 लड़किया, दूसरी लड़की का नाम है "अदिति सिन्हा",

तभी सर बोलते हैं "जी, नहीं अदिति सिन्हा नहीं, अदिति सिंह नाम है यहां, माफ़ करियेगा, आप बैठ जाएं। गलतफहमी दूर होती है और फिर वह बैठ जाती है।

एक पल को मैं उसे देखकर स्तब्ध रह जाता हूं। यह बिल्कुल वैसी ही है जैसा मैं सोचता हूं या यूँ कहें मेरे सपनों ने एक साकार रूप ले लिया हो। करीब 5 फीट 3-4 इंच लंबाई, नाक नक्श ऐसे जैसे कोई बेहतरीन कारीगरी हो ,चेहरे पर मद्धम सी मुस्कान ,सादगी से भरी हुई। शायद उस दिन मैं पूरे क्लास में बस उसके बारे में ही सोचता रह जाता हूं। क्लास पूरी होने के बाद मैं सोचता हूं उससे बातें करूँ, मैं उसे खोजता हूं पर वो जा चुकी होती है। मैं घर जाता हूं थोड़ी बेचैनी है मैं उसे फेसबुक पर सर्च करता हूं ,नहीं मिलती है। अगले दिन फिर क्लास जाता हूं उसे देखता हूं, वह आगे से तीसरी बेंच पर सबसे किनारे बैठी हुई है, उसमें मुझे जो चीज सबसे अच्छी लग रही है वह है ,उसकी “हेयर स्टाइल” आपको थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन ऐसा ही है। मैं चाहता हूं उससे बातें करूं लेकिन बात हो नहीं पाती है। एक-एक दिन करके क्लास चलती जा रही है, अब मेरा पढ़ाई में ध्यान भी कम लगता है। एक दिन जब मैं क्लास में सबसे पिछली बेंच पर बैठा होता हूं, उस दिन वह थोड़ा लेट आती है और आकर मेरे बगल में बैठ जाती है। मैं सोचता हूं,आज तो मैं बात करके ही रहूँगा ,किसी भी बहाने से कुछ तो बातें करूँगा, मैं थोड़ा घबराया हुआ भी हूं, यही सोचते-सोचते कि कैसे बातें करूं, पूरे 2 घंटे निकल जाते हैं, क्या पढ़ाया गया यह भी समझ में नहीं आता है और वह उठकर जा चुकी होती है। मैं आज फिर से चूक गया होता हूँ। हर बार यह सोच कर कि कल बात हो जाएगी मैं टालता रहता हूँ लेकिन, यही सोचते-सोचते अब क्लास खत्म हो जाती है और अब कोचिंग जाना भी बंद हो जाता है।

उसे देखने का बहुत मन होता है एक बार फिर से मैं उसे फेसबुक पर सर्च करता हूं। हाँ, ये वही है "अदिति सिन्हा" फोटो उसकी ही लगी है, मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड कर देता हूं साथ में एक मैसेज भी "हाय", कुछ देर बाद रिप्लाई आता है, "डू वी नो इच अदर।"

मैं कहता हूं "हां मैं जानता हूं तुम्हें, हम साथ में पढ़ते थे कोचिंग में, बैच के ए-12।"

वह कहती है "मैं नहीं पहचानती तुम्हें।"

कुछ कैजुअल बातें होती हैं पर आगे वह बात करने से मना कर रही है, शायद इसलिए कि वह मुझे नहीं जानती, बातों ही बातों में मैं उससे उसकी तारीफ में यह कहता हूँ, "मुझे तुम्हारी हेयर स्टाइल बहुत अच्छी लगती है।" वह थैंक्स बोलती है। लेकिन वह बात करने में इंटरेस्टेड नहीं है यह सोच कर कि वह परेशान ना हो मैं उसे मैसेज करना बंद कर देता हूँ।

आज करीब 2 साल बाद फिर से उसका मैसेज आया है "डी वी नो इच अदर।" आज भी हमारे म्यूच्यूअल फ्रेंड में सिर्फ एक प्रोफाइल है हमारी कोचिंग की।

मैं कहता हूँ "जुलाई 2015 ,बैच के.ए.-12", वह एक स्माइली देती है और हमारी बातें शुरू हो जाती हैं। हमारी कैजुअल बातें होती हैं। कैसे हो, क्या कर रहे हो, पढ़ाई कैसी चल रही है, घर पर कौन-कौन हैं, कौन सा एग्जाम दिया था,...अच्छा लग रहा था क्योंकि इस बार वह बात करने में इंटरेस्टेड लग रही थी, शायद उसे मैं अनजान नहीं लग रहा था। बातों ही बातों में मैं उससे कहता हूँ मुझे तुम्हारी हेयर स्टाइल बहुत पसंद थी। वो थोड़ा रुक के पूछती है,

"हमारी बातें पहले भी हुई है क्या।"

"हाँ, तुम्हे याद है क्या।"

"नही, लेकिन मुझे ये याद है कि आजतक मुझे सिर्फ एक ही लड़का ऐसा मिला जिसने मेरे हेयर स्टाइल की तारीफ की हो।"

"हाँ, शायद मैं ही वो हूँ।"

ऐसे करके अब हमारी बातें रोज होने लगी थी। 15-20 मिनट ही सही लेकिन रोज। कभी-कभी घंटे-दो घंटे भी।

जैसा कि अक्सर होता है पहले बातें होती है फिर कुछ दिनों बाद नंबर एक्सचेंज, फिर मिलना, घूमना, डेट करना, और भी आगे बहुत कुछ , पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। अपनी बातें इससे आगे कैसे बढाऊँ समझ में नहीं आ रहा है। मैं चाहता हूं उससे बातें करना, उससे मिलना लेकिन मैं कह नहीं पाता हूं शायद यह सोचकर कि उसे बुरा ना लगे। हालांकि, वह खुद से मुझे कभी मैसेज नहीं करती लेकिन मेरे हर एक मैसेज का बड़े प्यार से जवाब देती, कभी इग्नोर नहीं करती। बातें आगे बढ़ती हैं, हमें बातें करते-करते करीब 6 महीने बीत चुके हैं। मैं उससे हिम्मत करके मिलने के लिए कहता हूं पर वह बहुत ही खूबसूरती से मना कर देती है। कुछ ऐसे कि मुझे बुरा भी ना लगे और उसकी बात भी हो जाए। अब भी हमारी बातें वैसे ही होती है जैसे पहले होती थी लेकिन अब पहले से कुछ ज़्यादा। अब कभी-कभी वह भी खुद से मैसेज कर देती है

"हाय, हाउ आर यू।"

अब हम अच्छे दोस्त बन चुके हैं। मैं पिछले कुछ दिनों में उसे कई बार मिलने के लिए अप्रोच कर चुका हूँ लेकिन हर बार बहुत ही खूबसूरती से वो मना कर देती है।

आज मैंने उससे कहा मैंने एक कहानी लिखी है, मैं चाहता हूं तुम्हें सुनाऊं।

वो कहती "हाँ क्यों नहीं, सुनाओ ना"

मैं कहता हूं "ऐसे ही, मैसेज पर टैक्स्ट करके।"

वह एक स्माइली देती है और कहती है, "हाँ, हमारे पास और कोई ऑप्शन भी नहीं है !”

मुझे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा है कि इतने दिनों से बातें हो रही है अब तो फोन पर बात कर सकते हैं लेकिन मैं कुछ कहता नहीं हूं और उसे पूरी कहानी मेसेज बॉक्स में लिखकर बताता हूँ, वह भी करीब 3 घंटे तक चुपचाप मेरी कहानी पढ़ती है।

मैं उस से कहता हूं "कहानी सुनाना तो बस एक बहाना था दरअसल ,मुझे तुमसे बात करनी थी तुम्हारी आवाज सुननी थी।"

वह हँसने लगती है और मुझसे कहती है "मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ।"

वह मुझे तीन-चार साल पहले के एक ऐसे वाकिये के बारे में बताती है, जब ऐसे ही किसी से फेसबुक पर फ्रेंडशिप हुई, बातें हुई और आगे भी बहुत कुछ, लेकिन कैसे वो रिश्ता चल नहीं पाया, शायद कुछ गलतफहमियों की वजह से या कुछ अन्य वजहों से, अब वो ऐसे रिश्तों से इस कदर टूट चुकी थी कि शायद फिर से ऐसा कुछ न हो जाये, डरती थी थोड़ा। खैर, सब जानने के बाद मैंने ये निर्णय लिया अब मैं उससे मिलने के लिए कभी दबाव नहीं बनाऊंगा।

मैंने सोचा, क्या हमारी बातें फोन पर हो तभी फ्रेंडशिप अच्छी होगी, क्या हम एक दूसरे से मिलें, घूमने जाएं तभी हमारी फ्रेंडशिप अच्छी होगी या हम एक दूसरे को समझते हैं क्या यह काफी नहीं है। मुझे उससे बातें करना अच्छा लगता था, मैं उससे अपनी सारी बातें करता था और वो भी अपनी सारी बातें डिस्कस करती।

आज मेरी कहानी का पहला स्टेज परफॉर्मेंस था, मैं बहुत नर्वस था। मैंने उसे बताया वह मुझे समझा रही थी,

"सब ठीक से हो जाएगा, तुम बिल्कुल भी चिंता ना करो।"

"मैं कह रही हूं ना"

उसके 'मैं कह रही हूँ ना" में अपनापन बहुत है।

मैंने उसे इवैंट का वेन्यू बताया और उससे आने के लिए कहा,

"तुम मुझसे ना मिलना चलेगा लेकिन आना जरूर।"

और इस बार भी उसने बहुत ही खूबसूरती से मना कर दिया। दरअसल,अब मुझे उसका मना करना भी अच्छा लगता है। मैं गया, परफॉर्मेंस अच्छा हुआ। हमारी बातें अब रोज होती थी। जब भी मैं कहीं कहानियां सुनाने जाता तो उसे आने के लिए जरूर कहता लेकिन, वह यह कह कर टाल देती कि जो कहानियां तुम वहां सुनाओगे वह तो तुम मुझे पहले ही सुना चुके हो।

ऐसे ही सब कुछ ठीक चल रहा था।अब मैंने उससे मिलने या बात करने का इरादा भी छोड़ दिया था। हम खुश थे जो कुछ भी था उसमें। आज मेरा कहानी का एक और शो था। मैंने हर बार की तरह इस बार भी उसे आने के लिए कहा और उसने फिर से मना कर दिया। मैं गया, शो अच्छा रहा। कहानी सुना कर जब मैं स्टेज से नीचे आया तो कुछ लोगों की भीड़ थी शायद वो मेरे प्रशंसक थे जो मुझसे ऑटोग्राफ लेने के लिए या सेल्फी लेने के लिए खड़े थे। मुझे उनसे मिलकर अच्छा लगा। मैंने सबको बारी-बारी से ऑटोग्राफ दिया और जब मैं अपनी कार में बैठने ही वाला था कि मुझे पीछे से कोई आवाज देता है,

"हेलो, ऑटोग्राफ प्लीज।"

मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो सामने खड़ी होती है "अदिति"

मैं समझ नहीं पाता हूँ कि इस पल को मैं कैसे जीऊं, हँस के, चिल्ला के, शोर मचा के अपनी खुशी जाहिर करूँ या फिर कुछ पल के लिए इस लम्हे को रोक कर चुपचाप उसे महसूस करुं। मैं यही सोच रहा होता हूँ कि वो मेरे आंखों के सामने अपनी हथेली हिलाती है।

"क्या सोच रहे हो।"

"कुछ नहीं।"

उसने मेरी तरफ एक ग्रीटिंग कार्ड बढ़ाया "ऑटोग्राफ"

अब उस पर उसका नाम लिखता हूँ, वह मुस्कुरा रही है और मैं भी।

उसका नाम लिखकर मेरा पेन रुक जाते है, वो मुस्कुरा के धीरे से कहती है,

"नीचे विथ लव लिख दो ,अच्छा लगेगा।"

ग्रीटिंग कार्ड मुझसे लेती है और मुझे एक लिफाफा देकर, बाय बोलकर चली जाती है।

मैं कार में बैठता हूँ और बेचैनी में उस लिफाफे को खोलता हूँ, देखता हूँ तो उसमें कुछ नहीं है। मैं समझ नहीं पाया कुछ पल के लिए, लिफाफा खाली क्यों है, कुछ पल के लिए मेरा दिल बैठ सा गया। मन नहीं माना तो मैंने लिफाफे को एक बार फिर से चेक किया। इस बार उसमें एक छोटी सी पर्ची मिलती है।

उस पर किसी रेस्टोरेंट का एड्रेस और टाइम लिखा है और नीचे लिखा है,

"मैं इंतज़ार करुँगी।"


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