मुलाकात

मुलाकात

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"अपना 'चिन' यहां रखिये। अब बिल्कुल सीधे देखिये। 

"हाँ, सीधे मेरी आँखों की तरफ। ठीक है" 

अब लेफ्ट वाली आँख से इस लाइट की ओर देखिये। बिल्कुल स्ट्रैट, हाँ ऐसे ही। 

अब राईट। हं स्ट्रैट।

ओके। हटा लीजिये अब। कितने दिनों से चश्मा लगा रहे हैं" डॉक्टर ने चेक अप मशीन को पीछे की तरफ किया और अपने चेयर पर जाके बैठ गईं।

"करीब 2 सालों से" मैंने धीमें स्वर में बोला और उंगलियों से इशारा किया।

ओके। अभी क्या तकलीफ हो रही है।

"आँख में और सर में दर्द" अबकी बार भी मैंने बोला कम और अपने हाथों से आँखों के ऊपर और सर को दबाते हुए इशारा किया। 

अच्छा।

"टीवी की ओर देख के लेटर्स पढ़िए" पास में खड़ी असिस्टेंट ने आँखों पर एक फ्रेम और उसमें लेंसेस लगाने के बाद बोला।

Z X C V D Y

S G K Q P A

जब तक अक्षर साफ़ साफ़ दिख रहे थे मैं सिर्फ "ठीक है" कहते हुए सर हिलाता रहा। 

और जब अक्षर ब्लर दिखने लगे तो मैंने "ना" में सर हिलाया।

फिर एक एक कर के 4-5 लेन्सेस लगाये उसने फ्रेम पर और फिर दिखने लगा पहले थोड़ा क्लियर, फिर एच डी और फिर "अल्ट्रा-एच डी"

हाँ, ये ठीक है। थम्स अप का इशारा करते हुए मैंने अपनी काफी देर की उदासी को चीरते हुए एक हल्की सी स्माइल दी।

इस बीच डॉक्टर कभी कंप्यूटर स्क्रीन की तरफ देखती तो कभी रिपोर्ट्स की ओर और पर्चे पर अपने रिपोर्ट्स लिखने में व्यस्त थीं। और मैं उन्हें देखने में। 

सुना तो काफी था कि मेडिकल फील्ड में लड़कियां ज्यादा होती है। सुन्दर लड़कियां। खैर, सुनते तो और भी बहुत कुछ है लेकिन आज इस सुनी सुनाई बात पर यकीन करने का भी दिल कर रहा था।

मन में अभी एक ही बात आ रही थी 

"चेक अप थोड़ी देर और चले तो अच्छा"

"एक बार और ये मशीन मेरी ओर लाये और फिर बोलें

"अपना 'चिन' यहां रखिये। अब बिल्कुल सीधे देखिये। 

हाँ, सीधे मेरी आँखों की तरफ।

"आप बाहर बैठ जाइए। अभी आपकी आँखों में एक ड्राप डाला जाएगा, उसके बाद फिर चेक होगा" - असिस्टेंट ने बोला तो मेरी नज़रे डॉक्टर से हट के असिस्टेंट की ओर मूड़ी।

मैं "हाँ" में सर हिला के बाहर निकलने लगा तो डॉक्टर ने पूछा। 

"आप कम बोलते हैं या सर दर्द की वजह से बोलने का मन नहीं हो रहा"

मैंने फिर से हाथों से सर दबाते हुए सर दर्द का इशारा किया तो उसने एक स्माइल के साथ बाहर बैठने का इशारा किया।

"डॉ. मंजू सिन्हा"

ये डॉक्टर्स इतनी सुंदर क्यों होती है ? 

ऐसा लग रहा था जैसे छिन्नी हथौड़ी लेके किसी कारीगर ने एक शार्प शेप दिया हो। बड़ी-बड़ी आँखे,लम्बी नुकीली नाक और नाक को अंडरलाइन करते हुए पतले गुलाबी होठ। बाल बिल्कुल स्ट्रैट किये हुए कमर तक आ रहे थे। ग्रीन कलर का सूट, सफ़ेद लेगिन्स, पैरो में बिल्कुल सिंपल सा एक चप्पल और सफेद कलर की जैकेट पहने पैरो पर पैर चढ़ाए वो हँसते हुए मेरी ओर से मुड़ कर कंप्यूटर स्क्रीन की तरफ देखने लगी।

करीब साढ़े पांच फीट लम्बा कद, दूधिया बदन और इस दैहिक सुंदरता में चार चांद लगता हुआ उसके चेहरे का सादापन। शायद ही कोई मेकअप किया हो उसने। कानो में दो छोटे झुमके और नाक में छोटी सी नथ। बिल्कुल स्वाभाविक रूप से सजी हुई चेहरे पर मासूमियत साफ़ झलक रही थी।

बात उम्र की करूँ तो वही करीब 25-26, अभी बिल्कुल नयी जॉइनिंग लग रही थी। ऑप्टेमिक अस्सिटेंट का पद जो उसके उसके नाम के नीचे लिखा हुआ था।

सुंदरता का कोई पैमाना तो मुझे नहीं मालूम लेकिन अगर होता होगा तो ये उसमे बिल्कुल फिट बैठती होगी।

डॉ मंजू के बारे में फराज़ साहब की गज़ल के कुछ शेर बिल्कुल मेरे मन की बात कह देते हैं

हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें

सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है

कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं

मैं बाहर बैठ के उसकी लिखी रिपोर्ट्स को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। तभी फ़ोन का रिंग बजा।

"दिखाया भाई" 

"हाँ"

"क्या बोला डॉक्टर ने"

"अभी एक बार चेक हुआ है और बाहर बैठने को बोली है। अभी कोई 'आई ड्राप' डालेंगे और फिर से चेक होगा।

"हाँ- हाँ। चेक करा मैं बस पहुँच रहा हु विद इन ऑवर"

दोस्त शशांक का फ़ोन था, डॉक्टर है जयपुर में। आँख का डॉक्टर है जयपुर के किसी हॉस्पिटल में।

आज सुबह सुबह मैंने फ़ोन किया शशांक को

"भाई सर दर्द अचानक बहुत हो गया है"

"तुझसे बोलता रहता हूँ आ जा जयपुर तो सुनता नहीं। अभी की बस पकड़ और आ जा 5-6 घंटे में पहुँच जाएगा। आ मैं देखता हूँ क्या प्रॉब्लम है" शशांक ने डांटते हुए बोला।

"यार नहीं आ सकता समझ ना, एग्जाम्स है सर पे भाई" मैंने अपनी वही पुरानी लाइन दोहरा दी जो कह के हर बार मैं उसकी बात टाल देता था।

"ऐसा है तुझे एक एड्रेस सेंड कर रहा हूँ आई हॉस्पिटल का वहां जाके चेक अप करा अभी। मैं भी आ रहा हूँ। दिल्ली में एक और काम है मेरा दोनों हो जायेगा।

डांटते, समझाते शशांक ने फ़ोन रखा और मैं अलसायी सुबह कंबल से निकल के बड़ी हिम्मत के साथ यहां पंहुचा। पहले काउंटर से अपने नम्बर का स्लीप लिया फिर रजिस्ट्रेशन कराया। एक फाइल रजिस्ट्रेशन स्लीप के साथ देकर मुझे ब्लॉक B में जाके आई प्रेशर चेक कराने को बोला गया और फिर मैं यहां ब्लॉक C में आके चेकअप करा के बैठा था।

अभी अफ़सोस ये हो रहा था कि शशांक की बात पहले ही मान लेनी चाहिए थी। उसने एक बार पहले भी इस हॉस्पिटल का एड्रेस बताया था मुझे कि वहाँ जाके चेक करा, कुछ फ्रेंड्स है मेरे वहां मैं बात कर लूंगा। वहीं ठीक से चेक हो जाएगा। लेकिन मैं हर बार उसकी बात किसी ना किसी बहाने से टाल देता था। हर बार दोस्तों की बातें टालना सही नही नहीं होता।

"ये दवा आँख में डालने के बाद थोड़ा सा ब्लर दिखेगा। फिर ठीक हो जायेगा" हिदायत के साथ असिस्टेंट ने आँख में न जाने कौन सी दवा डाली जो मिर्च से भी तीखी लगी। यकायक मैं कुर्सी के दोनों हैंडल कस के पकड़ छटपटा उठा, 

"अरे, क्या था ये"

"कुछ नहीं सर, बस ठीक हो जाएगा"

"जल रही है आँख"

"रिलैक्स सर, बस 25-30 सेकेंड्स। ठीक हो जायेगा।"

यार एक बार दवा चेक कर लो एक्सपायर तो नही हो गयी।

मैं कुर्सी का हैंडल कस के पकड़ आँखों को मिचते हुए पैर को जमीन पर पटक रहा था कि हाथों पर किसी हाथ का ठंडा स्पर्श महसूस हुआ और कानों में स्वर सुनाई दिए।

"बस कुछ सेकेंड्स"

"ये दवा थोड़ी कड़वी लगती है" 

"ओके, लेकिन सच में ये कुछ ज्यादा ही कड़वी है"

दवा का असर धीरे-धीरे कम हुआ। आँखों की जलन कम हुई और डॉ. मंजू की छुअन ने भी थोड़ी राहत दे दी थी।

जब आँखों की जलन मिटी और मैंने आँखे खोली तो डॉ. अपने केबिन में जा चुकी थी।

केबिन का दरवाजा खुला था लेकिन मैं जहाँ बैठा था वहां से पेसेंट के बैठने वाली चेयर दिख रही थी डॉ. की नहीं। डॉ. कभी कभी दिख जाती। मैं वहीं बैठा रहा। वो तीखी, कड़वी दवा एक बार और डाली गयी। करीब आधे घंटे बाद फिर से बुलाया डॉ. ने

मैं जाके चेयर पर बैठ गया। इस बार लेन्सेस लगा के चेक करने का काम डॉ. मंजू ने खुद किया।

अपनी चेयर से उठ मेरे पास आ खड़ी होगयी। फ्रेम को बीच से पकड़ बड़ी सावधानी से आँखों पर लगाया और उसे एडजस्ट किया ( उस असिस्टेंट ने तो बिना फ्रेम सेट किये ही लग दिया था जो कानों के ऊपर आके कस गया था)

रिमोट से टीवी पर दिख रहे वर्ड्स एक एक कर बदलने लगी

"इसे पढेंगे सर"

मैं पढ़ने लगा S D J L P

"अब ये पढ़िए"

"Z Y K T F, दिख तो रहा है बट थोड़ा ब्लर है

"हाँ, अब पढ़िए" डॉ. ने एक और लेंस चेंज किया।

वो एक एक कर लेन्सेस चेंज करने लगी। जब तक मुझे सब क्लियरली दिखने नहीं लगा। पहले लेन्सेस चेक किये फिर स्क्रीन पर रेड और ग्रीन बोर्डस पर लिखे अक्षर पढ़वाए।

इस बार वो सारे काम डॉ. मंजू ने खुद किये जो पिछली बार असिस्टेंट ने किये थे।

"आप इस फ्रेम को लगा कर बाहर दस मिनट बैठिए, फिर बताइये कैसा फील हो रहा है"

मैं बाहर आके बैठ गया। अब क्या बताता कि क्या क्या फील कर रहा हूँ। हाँ, आँखों का दर्द थोड़ा कम हो गया था।

"पहली नज़र में प्यार हो जाना" इस बात पर तो मेरा कुछ खास यकीन नहीं है लेकिन अभी ऐसा लग रहा था कि अगर पहली नज़र में कोई मेरी आँखों को कभी भा जाएगा तो वो डॉ. मंजू जैसा ही होगा।

थोड़ी देर बाद लेफ्ट आँख का दर्द तो कम हो गया लेकिन राईट में अभी भी था।

डॉ. खुद थोड़ी देर बाद मेरे पास आयी। 

"अब कैसा फील कर रहे हैं"

"पहले से ठीक बट बिल्कुल ठीक नहीं" मैंने जवाब दिया

"ओके, थोड़ी देर और बैठिए फिर बताइये"

लोहे का भारी सा फ्रेम जिसमे लेंसेस लगा के मुझे बैठाया गया था कानो के ऊपर चुभ रहा था। मैंने उसे जब खुद से एडजस्ट करने की कोशिश की तो वो ढीला होके खुल गया। मेरी समझ में ये नही आ रहा था कि अब इसे फिर से ठीक कैसे करें। ये सारी बातें डॉ. मंजू अपने केबिन से बैठी ये सारा दृश्य देख रही थी और जब लगा कि ये फ्रेम मुझसे सेट नहीं होगा तो उठ के मेरे पास आ गयी।

"ये थोड़ा तो टाइट होगा ही" डॉ मंजू ने मेरे हाथों से वो फ्रेम लेके उससे ठीक किया और फिर से मेरी आँखों पर पहना के चली गयी।

"लेफ्ट आई में बिल्कुल भी दर्द नहीं है बट राईट में हल्क दर्द बना हुआ है" करीब 10 मिनट बाद मैं डॉक्टर के बिल्कुल करीब जाकर इतना धीमें स्वर में बोला कि शायद ही असिस्टेंट को सुनाई दिया हो। 

वो मेरी और डॉ. मंजू की ओर देख के हँस पड़ी

मैं उसकी ओर मूड़ा ये देखने के लिए कि वो क्यों हँस रही है तो वो मुँह दबाए हँसते हुए बाहर चली गयी।

मैंने डॉ. मंजू की ओर देख के इशारा किया "क्या हुआ" तो वो भी हँस पड़ी।

कोई बात नहीं आप बैठिए।

"वैसे आप क्या करते है" डॉ. ने फ्रेम में एक और लेंस लगाते हुए मुझसे पूछा।

"अभी हिस्ट्री सब्जेक्ट से रिसर्च कर रहा हूँ 'दिल्ली विश्वविद्यालय' से और साथ में यूपीएससी सिविल सर्विसेज की तैयारी भी कर रहा हूँ"

"ओह्ह, प्रोफेसर बनना है या IAS ऑफिसर बनना है आपको। वैसे यूपीएससी वाले इतने शांत होते तो नहीं है। मेरे कुछ दोस्त हैं उन्हें तो बस मौका चाहिए होता है बोलने का फिर सारी हिस्ट्री जियोग्राफी बता के ही मानते है। 

आप एक तो यूपीएससी वाले और ऊपर से रिसर्च स्कॉलर फिर इतने शांत स्वभाव के कौसे है। आप अभी कम बोल रहे हैं या स्वभाव से ही शांत हैं।"

"नही नही ऐसा नही है" मैंने हँसते हुए उनकी बातों को बिच में रोका।

"दरसअल, सुबह जब मैं आया तो सर दर्द बहुत तेज था इसलिए बोलने का मन नहीं कर रहा था। अभी कुछ आराम है। वो तो एक दोस्त के कहने पर मैं आ गया दिखाने वरना कोई दवा लेके सो गया होता।

"चलिये अच्छा किया आपने वैसे भी आँख की प्रॉब्लम में ऐसे लापरवाही नहीं करनी चाहिए। ये फ्रेम लगा के अब आप 10 मिनट बैठिये। ये ठीक आना चाहिए।"

मैं केबिन से बाहर निकला ही कि हॉस्पिटल गेट से शशांक अंदर आते दिखा। मैं जाके बाहर पीछे की सीट्स पर बैठ गया जिससे कि उसे मुझ तक आने में थोड़ा वक्त लगे। क्योकि मुझे पता था वो आते ही चिल्लायेगा मेरे ऊपर।

वो एक एक कर दो तीन डॉक्टर्स से मिला जो उसे रास्ते में मिलते जा रहे थे। शायद।वो सब उसे जानते थे जैसा उसने पहले भी बताया था। 

एक एक केबिन में झांकते हुए वो जैसे ही डॉ. मंजू की कैबिन की ओर मूड़ा मैंने आवाज दी

"डॉक्टर"(हम यूजअली उसे इसी नाम से बुलाते थे। क्योंकि हमारे ग्रुप में बस वही एक डॉक्टर था)

"ओ भाई" वो अपनी भौहें चमकाता हुआ मेरी मूड़ा। आपको बता दूं दरअसल, उसके अंदर डॉक्टर्स वाले कोई लक्षण नहीं है एक नम्बर का लोफर लगता है। हाँ, ये है कि अपने ऑफिस में जाते ही प्रोफेशनल बन जाता है।

शशांक मेरी और मूड़ा ही था कि डॉ. मंजू अपनी केबिन से निकली " हां, आपने बुलाया क्या"

मैं कुछ जवाब देता उससे पहले शशांक ने अपना रिएक्शन दे दिया। "ओह्हो, तो इन्होंने चेक अप किया आपका। डॉ मंजू कैसी हैं आप"

दोनों ने एक दूसरे को गले लग के ग्रीट किया और मेरे पास तक आये।

"अच्छा तो इनके कहने पर आप यहां आये"डॉ मंजू ने मेरी ओर भौहें उचकाते हुए पूछा।

मैंने हँसते हुए 'हाँ' में सर हिलाया।

"साले तुझे कितने दिनों से कह रहा हूँ दिखा ले आज आया है तू वो भी अगर मैं ना आ रहा होता दिल्ली तो तू आज भी नहीं दिखता" 

"अरे बैठ ना। वैसे भी तेरे चेक करने पर मुझे भरोसा भी नहीं होता।"मैंने शशांक का हाथ पकड़ के उससे अपने बगल में बैठाया। 

"हाँ, हाँ अभी ठीक से चेक हुआ ना।" शशांक ने जिस कुटिल मुस्कान के साथ पूछा उससे उसके हम दोनों वाकिफ थे।

"हाँ, बिल्कुल बहुत अच्छे से" मैंने डॉ. मंजू की ओर देखते हुए बोला तो उन्होंने हँसते हुए मेरी बातों में हामी भरी।

"वैसे तूने बताया तो होगा नहीं इनसे मेरे बारे में। बताता तो थोड़ा स्पेशल ट्रीटमेंट मिलता ना तुझे" शशांक ने छेड़ा

"अरे ऐसा नही हैं, काफी अच्छे से चेक अप हुआ है, स्पेशल जैसे ही समझ लो" डॉ मंजू ने शशांक से कहा

 "हां हां बस चेकअप ही हुआ है ना। और कुछ तो नहीं हुआ। कहीं दिल विल तो नहीं आ गया। वैसे भी ये जितनी सुन्दर तू उतना ही दिलफेंक" 

 "अभी हुआ तो नही लेकिन कुछ देर और रुका तो होने की प्रबल संभावना है"मैंने डॉ मंजू की तरफ देखते हुए बोला तो हम तीनों हंस पड़े।

"वैसे तुम भी दूर ही रहना इनसे यह हमारे अजीज मित्र बड़े अच्छे शायर भी हैं। थोड़ी देर भी रही ना साथ तो शब्दों के जाल में फसा लेंगे" शशांक ने एक कुटिल मुस्कान के साथ डॉ मंजू को हिदायत दी।

"हां सच में, ये तो नहीं बताया तुमने अभी" डॉ मंजू ने मेरी ओर भौहे उठा के देखते हुए कहा

"अच्छा तो आप लोगों का इंट्रो हो चुका है मैं ही लेट हो गया चलिए फिर जारी रखिए मैं आता हूं बाकी लोगों से मिलकर"

शशांक बाकि लोगों से मिलने के लिए चला गया।

"तुम दोनों कैसे दोस्त बने। कॉलेज में तो तुम थे नहीं उसके बाद क्या?" डॉ मंजू ने पूछा

"अच्छा, आप से तुम"

मैंने छेड़ते हुए बोला तो वो हँस पड़ी।

"अरे बताओ तो"

"हम लोग बचपन से इंटरमीडिएट तक साथ में पढ़े हैं। बचपन वाले दोस्त हैं"

"ओह्हो, वैसे तुम्हे ये पहले ही बताना चाहिए था"

"मुझे क्या पता तुम भी दोस्त हो उसकी"

"अरे फिर भी ये तो बताना चाहिए था कि तुम्हारा दोस्त भी ऑप्टिमिस्ट है जिसके कहने पर तुम यहां दिखाने आये हो। दोस्त ना भी होती तो भी थोड़ा ज्यादा अटेंशन देती ना"

"अच्छा अगर मैं पहले बता देता तो क्या वो जो मशीन से चेक अप कर रही थी पास आकर वो कुछ देर और होता क्या" मैंने बोला तो मंजू ने एक चपत दी मेरे सर पर

"सही कह रहा है शशांक, तुम सच में तुम दिलफेंक लगते हो।आये तो बड़े शांत थे अभी सर दर्द थोड़ा आराम नहीं हुआ कि शुरू हो गए। अभी बैठो मैं कुछ और पेसेंट्स है देख लूँ उन्हें" मंजू कंधे पर एक थपकी देके अपने केबिन में चली गयी।

थोड़ी देर बाद जब आँखों का दर्द बिल्कुल ठीक हो गया तो मैंने जाके बताया डॉ मंजू से। 

"जाओ आगे काउंटर से चश्मे का नम्बर ले लो मैंने वहीं भेज दिया है। वहीं बनने को भी दे देना" मंजू ने मेरी आँखों से वो भारी सा फ्रेम उतार के रख दिया और मुझे काउंटर की ओर जाने का इशारा की।

मैंने चश्मा बनने को दे दिया था। डॉ मंजू अपने पेसेंट्स देखने में व्यस्त थी और शशांक किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था।

करीब 1 बज चुके थे। लंच ब्रेक होने वाला था। 

"हाँ, भाई हो गया सब" शशांक फ़ोन रख मेरे पास आके बैठ गया"

"बस 10 मिनट, फ्रेम में लेंसेस लग रहे हैं। तुम्हारा क्या काम है अभी ये बताओ" मैंने पूछा

"अरे बस आधे एक घंटे का काम है चलते है। या फिर चलो पहले लंच करते है फिर चलेंगे।" शशांक ने बोला

"ओके" मैंने बोला

"रुक मैं सबको बोल दूँ, आज सब साथ में लंच करेंगे" शशांक उठ के हॉस्पिटल में अंदर की तरफ चला गया।

थोड़ी देर बाद शशांक ने मुझे बुलाया। सब स्टाफ़ रूम में इकट्ठे थे। मेरे शशांक और मंजू के अलावा वहां दो लोग और थे डॉ अनंत और डॉ सुनिधि। 

" ये दोनों लोग भी जनकपुरी ही जा रहे हैं और काम भी एक एक ही जगह है हमारा तो तू बता मैं चला जाऊँ साथ में या थोड़ी देर बाद हम दोनों चले" शशांक ने मुझसे पूछा।

"अरे जब एक ही जगह जाना है तो साथ में ही चले जाओ ना, वैसे भी मैं वहां बैठ के क्या करूँगा" मैंने बोला।

"ठीक है फिर तुम यहीं रुको मैं वापस आता हूँ तो घर चलते हैं" शशांक बोला

"और लंच?" मैंने पूछा।

"हं, क्या करे" शशांक ने सबकी ओर नज़रें घुमाते हुए पूछा।

"ऐसा है आप लोग लंच करो। हम बाहर ही लंच कर लेंगे कहीं। वैसे भी बस यही एक घण्टे का टाइम है इसी में दोनों काम करना है" पास में खड़े डॉ अनंत ने मेरी और मंजू की ओर देखते हुए बोला।

"तो ऐसा है मिस्टर मंजनू और डॉ मंजू आज आप लोग साथ लंच करिये हम आके मिलते है आपसे।वैसे मुझे नहीं मालूम था की आपकी इनसे पहली मुलाकात में ही लंच तक बात पहुँच जायेगी" 

शशांक ने छेड़ते हुए बोला तो मैं और मंजू एक-दूसरे की तरफ देख के हँस पड़े।

शशांक ने अपने कार की चाभी मेरी ओर उछाली "आप लोग लंच करके आइए। तब तक हम भी वापस आ जाते है"

शशांक ने फिर अपनी वही कुटिल मुस्कान छेड़ते हुए मुझे "बेस्ट ऑफ़ लक" बोला और तीनों बाहर चले गए।

वो तीनों उधर चले गए... और डॉक्टर मंजू अभी भी असमंजस की स्थिति में स्थिर खड़ी रहीं।

मैंने कहा "डरिये नहीं अभी मंजनू ही है हम आशिक नहीं हुए और मंजनू इतने बुरे भी नही होते।"

इस सड़े हुए जोक पर वो हंस पड़ी और हम दोनों चल पड़े लंच डेट पर...

इतनी जल्दी होने वाली पहली डेट...

कुछ मुलाकातें वाक़ई स्पेशल होती हैं.. नहीं ?

कहते हैं। 

"खुशिया किसी की मोहताज नहीं होती, दोस्ती यूँही इत्तेफ़ाक़ से नहीं होती

कुछ तो मायने होंगे इस पल के, वरना यूँ ही किसी से मुलाक़ात नहीं होती।


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