चौरी चौरा एक्सप्रेस
चौरी चौरा एक्सप्रेस
“एक ही बर्थ पर दो साये सफर करते रहे, मैंने कल रात ये जाना है की जन्नत क्या है”
राहत साहब हर वक़्त ऐसे ही साथ निभा जाते है। वो रात भी कुछ ऐसी ही थी।
अभी मैं गोरखपुर से इलाहाबाद जा रहा हूँ, माफ करियेगा प्रयागराज जा रहा हूँ। हाँ भाई प्रयागराज ही कह लो वरना गोरखपुर में ही है अभी क्या पता योगी जी के सिपाही पहुँच आये
"का बे इलाहाबाद काहे बोले अब उ प्रयागराज हो गया है"
तो बात ये है कि चौरी चौरा एक्सप्रेस में बैठे है प्रयागराज जा रहें है वैसे आज बर्थ एक है और साया भी एक सिर्फ मैं ही हूँ वो कहानी पुरानी है जब एक बर्थ पर दो साये सफ़र कर रहे थे।
निखिल और अनु।
सब् खामोश रात, एक दूसरे के हाथ में दोनों का हाथ। पूरी बॉगी में करीब सब सोये हुए, साथ थी तो सिर्फ खिड़कियों से आती ठंडी हवा और दोनों के बीच का गर्म स्पर्श। एक दूसरे की आँखों में देखते हुए दोनों शांत चित्त एक हुए जा रहे थे।
पूरी कहानी सुनना पसंद करेंगे क्या ? चलिए कहानी शुरू से सुनाते हैं तो कुर्सी की पेटी बांध लीजिये और थोड़ा वक़्त भी, फिर शुरु करते हैं...
“ट्रेन का टिकट कन्फ़र्म नहीं हुआ है माँ, क्या करूँ ? बात करूँ क्या निखिल से ”
अनु मोबाइल मे अपने टिकट का पीएनआर चेक करते हुए बोली
“उसने तो बोला था, 24 वेटिंग है कन्फ़र्म हो जाएगा, बात करो देखो क्या कहता है”
अनु की माँ ने अनु के बैग मे कुछ समान रखते हुए बिना अनु की ओर देखे ही जवाब दिया।
दरअसल, आज अनु को अपनी मम्मी के साथ बनारस जाना है BHU मे bsc Nursing का एंट्रैन्स एक्जाम है उसका।
अनु यानि अनुप्रिया सिंह। रूप रंग से बड़ी ही सुंदर, स्वभाव से चुलबुली और एक नंबर की पढ़ाकू।
इसी वर्ष इंटरमीडियट की परीक्षा पास की हैं और मम्मी से ये शर्त उसने एक्जाम शुरू होने से पहले ही लगा ली थीं की अगर इंटर्मीडियट मे उसके 90% से ऊपर नंबर आ जाएंगे तो वो आगे की पढ़ाई के लिए बनारस जायेगी। मम्मी ने भी हामी भरी थी तो बस उसके बाद पूछना की क्या पूरा जी जान लगा दी थी पढ़ाई मे और रिज़ल्ट आया तो नंबर मिले 93% और कैमिस्ट्रि मे तो कॉलेज टापर भी थी पूरे 98% नंबर के साथ।
आगे की पढ़ाई के लिए बनारस जाने की दो वजहें थी पहली ये की अनु को ये लगता था की घर मे उसे कैद कर के रखा गया है, उसकी और दोस्तो की तरह कॉलेज और कोचिंग को छोड़कर वो अपने मन से दोस्तो के साथ न कहीं घूमने नहींं जा सकती है और न कही कभी फिल्म देखने और उसे अगर कहीं जाना भी होता है तो मम्मी से पुछ के जाना पड़ता है और इजाजत भी इस हिदायत के साथ मिलती है की जल्दी वापस आ जाना।
पापा ने हाइस्कूल पास होने पर ही स्कूटी खरीद तो दी लेकिन कहाँ जाना है, कितनी स्पीड से जाना है और किस दोस्त के साथ जाना है सब एक लाइन से समझाया था और इसका बेहद खयाल रखने को कहा था और ये सब पापा ने बस ऐसे ही नहीं समझाया था। वो तो जब अनु की स्कूटी खरीदी जा रही थी तो चाचा और चाची के तानों को कि “जवान लड़की है ऐसे ही खुली छूट मिलती रही और हर बात मानते रहे तो बिगड़ने मे देर नहीं लगेगी” को अनसुना न कर पाने कि वजह से भी अनु को समझाया था कि अनु ऐसी किसी शिकायत का मौका न दे।
और दूसरी वजह जिसे आप पहली वजह भी कह सकते हैं वो था ‘निखिल’
नीखिल त्रिपाठी। अनु के बचपन का दोस्त या कह लें सबसे अच्छा दोस्त। एक ही मोहल्ले मे रहते थे दोनों, 9th तक की पढ़ाई भी दोनों ने साथ मे की थी लेकिन 9th मे एड्मिशन होने के कुछ ही दिनो के बाद अनु को तेज बुखार के साथ पहले टाईफाइड हुआ और फिर उसके ठीक होते ही ज्वाइंडिस।
वो क्या है ना कि ठेले पर का चाट, फुल्की, चाउमीन और समोसे खाना उसकी दिनचर्या मे था। हाँ, पर जब 6 महीने बिस्तर पर रही और उसके बाद 1 साल की पढ़ाई बर्बाद हुई तब जाके ये आदत छूटी थी उसकी और इस तरह अनु अब निखिल की एक क्लास जूनियर हो गयी थी।
निखिल पिछले साल इंटरमीडियट पास होने के बाद बनारस चला गया था वहाँ BHU से bsc कर रहा है और साथ मे कम्पटीसन एक्जाम की तैयारी भी कर रहा है।
निखिल और अनु दोस्त ही थे, निखिल के बनारस जाने के पहले तक।
अब उनके बिच क्या रिश्ता है ये तो मुझे भी ठीक ठीक नहीं पता क्योंकि दोस्ती और प्यार कि कोई ऐसी परिभाषा मेरे पास नहीं है जिससे मै आपको ठीक ठीक ये बता दूँ कि उनके बीच का रिश्ता क्या है, खैर अभी निखिल घर आया हुआ है और आज उसे भी बनारस जाना है वैसे तो आने जाने के लिए उसने कभी रिजेर्वेशन नहीं कराया क्योंकि चौरी चौरा एक्सप्रेस ज़िंदाबाद है जो रात के 10 बजे गोरखपुर से ट्रेन पकड़ो और बस पूरी गाड़ी ही अपनी समझ के किसी जनरल डिब्बे मे सो के जाने की सीट मिल जाती है जो सुबह होते होते बनारस पहुचा देती है। लेकिन आज अनु को भी जाना और साथ मे उसकी मम्मी भी जाने वाली है तो उनके कहने पर निखिल ने 3 रिजेर्वेशन करा दिये जो अभी तक वेटिंग लिस्ट मे है।
निखिल ने अनु को और उसकी मम्मी को ये दिलासा दिलाया है की शाम को ट्रेन के जाने से पहले चार्ट बनने पर टीकेट्स कन्फ़र्म हो जाएंगे जो अभी तक नहीं हुये है।
“हैलो, निखिल टिकेट्स कन्फ़र्म नहीं हुये है, देखा तुमने”
अनु ने बोला तो आवाज से थोड़ी परेशान नज़र आयी
“अरे टेंशन न लो अभी चार्ट नहींं बना है ना, हो जाएगा कन्फ़र्म तुम अपना बैग सही से रख लो। कुछ छोड़ना नहीं एड्मिट कार्ड और बाकी सब भी अच्छे से रख लेना और हाँ, मेरे लिए वेज बोरयानी बना के जरूर ले आना”
निखिल ने अनु को समझाते हुए बोला और वेज बिरयानी पर थोड़ा एक्सट्रा ज़ोर देते हुये रिक्वेस्ट भी किया।
“यार तुम ना, मै नहीं ला रही कोई वेज बिरयानी तुम्हारी। तुमको तो बस खाने की पड़ी रहती है हमेशा। टिकेट्स नहीं कन्फ़र्म हुये ना तो देखना” अनु ने गुस्से मे झिड़कते हुये बोला
“अरे मेरी जान, मै हूँ ना तुम क्यों टेंशन ले रही हो” निखिल ने मज़ाकिया अंदाज़ मे बोला तो अनु बिफर गयी
“यार, तुम ना ये जान वान ना बोला करो मुझे समझे, जब से बनारस गए हो बिगड़ गए हो” अनु ने कहा
“तो तुम सुधारने ही तो आ रही हो” निखिल ने फिर छेड़ते हुये बोला
“यार, निक तुम अभी मज़ाक ना करो” अनु ने लगभग झिझकते हुये बोला
“सुनो अभी तुम्हारा काम है अपना बैग सही से रखना और मस्त सी बिरयानी बनाना तो तुम अपना काम ठीक से करो। टिकेट्स की टेंशन मुझपे छोड़ दो, ओकके” निखिल ने समझाते हुये बोला तो अनु ने उसके लास्ट वर्ड ‘ओकके’ को दोहराते हुये फोन रख दिया।
चार्ट बनने पर 2 सीट कन्फ़र्म हो गयी थी और एक वेटिंग रह गयी थी। निखिल अपना बैग लेके अनु के घर पहुचा।
“टिकिट का क्या हुआ” अनु की मम्मी ने पूछा
“कन्फ़र्म हो गया है, आप लोग तैयार नहीं हुए है अभी ?” निखिल ने जवाब भी दिया और पूछा भी।
“हाँ, बस 5 मिनट बेटा, निकलते है”
अनु अपनी बुक्स मे लगी हुयी दोनों की बातें सुन रही थी और साथ मे अपना सिलैबस रीवाइज़ कर रही थी और निखिल वहीं खड़े हुये उसकी मम्मी से नज़र बचा के उसे बस देखे जा रहा था और जवाब मे अनु भी थोड़ी थोड़ी देर मे अपनी पलकें किताबों के पन्नों से ऊपर उठा के निखिल को देख लेती थी।
इस लुकाछिपी को सिर्फ दोस्ती का नाम दे पाना बेईमानी लगता है। खैर,
थोड़ी देर मे सब लोग स्टेशन के लिए निकाल लिए।
“प्लैटफ़ार्म न॰2 के साइड ले लो भईया” निखिल ने ऑटो वाले को निर्देशित करते हुये बोला।
“प्लैटफ़ार्म 2 से ही जाती है, स्योर हो ना” अनु ने सवालिया अंदाज़ मे पूछा
“अरे, हाँ यार हर बार इसी से तो आता जाता हूँ” निखिल ने जवाब दिया
ऑटो वाला ऑटो को प्लैटफ़ार्म 2 के एंट्री गेट के पास खड़ा कर चुका था। 2 बैग्स थे एक निखिल का बैकपैक और एक छोटा सा बैग अनु का जिसमे कुछ कपड़े थे और कुछ बुक्स, निखिल अपना बैग पीठ पे रखते हुये और दूसरा बैग हाथ मे लिए आगे आगे चलने लगा।
अच्छा ऐसा होता है कि अगर हमारे साथ कोई महिला है तो उसके बैग को भी अपने हाथ मे ले लेना और आगे आगे चलना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी लगती है, खैर
“रिजेर्वेशन S3 बोगी मे है, आगे की ओर चलते हैं” निखिल ने अनु की माँ की ओर देखते हुये बोला तो उन्होने ठीक है के इशारे मे सर हिला दिया।
निखिल ने आगे जाकर एक बेंच पर बैग रख दिया और उन दोनों लोगों को वहीं बैठने को बोल अपना फोन कान से लगा किसी से बात करते हुये दूर चला गया, अनु उसे जाती हुयी देखती रही।
“रूम बिलकुल अच्छे से साफ हो गया है ना, कीचेन और बाथरूम भी अच्छे से साफ कर दिये हो ना” निखिल ने अपने रूममेट सुमित से पूछा तो उसने एक लाइन मे जवाब देकर निखिल को निश्चिंत कर दिया कि
“आप बिल्कुल टेंशन ना लो राम भैया, माँ सीता और कौशल्या जी के स्वागत की भी सारी तैयारी पूरी हो गयी हो है”
“अबे तू मज़ाक छोड़ और सुन स्टेशन से मै सीधे उनलोगों को रूम लेके आऊँगा। वहाँ से नहा-धो के नाश्ता करके आराम से निकलेंगे एक्जाम दिलाने के लिए” निखिल ने सुमित को अगले दिन का पूरा प्लान समझाते हुये बोला
“हाँ, ठीक है तुम आराम से आओ। टिकेट्स कन्फ़र्म हो गए हैं ना” सुमित ने पूछा
“हाँ, दो कन्फ़र्म हो गया है एक वेटिंग है” निखिल ने बताया
“फिर तो सही है, मम्मी जी को एक सीट दे देना और एक मे आप दोनों लोग एडजस्ट कर लेना, सही है ना” सुमित ने मज़े लेते हुये कहा
“हाँ हाँ, चल रखता हूँ, बाय” कहकर निखिल फोन कट कर के फोन को दाहिने हाथ मे लिए दो उँगलियों से पकड़ कर नचाते हुये वापस आया तो अनु ने बिना कुछ बोले इशारे मे ही चेहरे पर सवालिया निशान बनाते हुये निखिल से पूछा, कौन था ?
निखिल ने हल्की स्माइल के साथ दोनों आंखो की पलकें एक साथ झुकाते हुये सर ‘ना’ मे हिलाते हुये इशारे मे ही कहा ‘कोई नहींं’ तो अनु गुस्से का चेहरा बना के फिर से अपनी किताब मे लग गयी।
ये अनजानी सी चिढ़न पहले नहींं थी अनु की निखिल के प्रति, खैर इसमे प्यार है और बेहद अपनापन भी जिससे दोनों थोड़े अनजान है।
ट्रेन स्टेशन पर आके लग गयी, सब अपनी अपनी जगह लेने लगे।
“35-36 सीट है हमारा” निखिल ने अनु की मम्मी की ओर देखते हुये कहा
“3 सीट थी ना” अनु की मम्मी ने पूछा
“हाँ, लेकिन दो ही कन्फ़र्म हो पायी” निखिल ने जवाब दिया
“वैसे भी अनु सोने कहा वाली है, वो तो पढ़ेगी ना रात भर कल उसका एक्जाम है” अनु की मम्मी ने अनु की ओर देखते हुये अनु को चिढ़ाने के लिए निखिल से कहा तो निखिल ने भी हँसते हुये उनकी हाँ मे हाँ मिला दिया।
“कौन सा बर्थ है हमारा” अनु की मम्मी ने पूछा
“35-36 एक लोअर और उसके सामने वाला एक अपर”
निखिल ने सीट के पास लिखे हुये सीट न॰ की ओर इशारा करते हुये बोला।
बैग को सीट पर रख के तीनों सीट पर बैठ गए।
"बनारस कितने बजे पहुँचती है ?" अनु की मम्मी ने निखिल से पूछा
"4:35 का टाइम है पहुँचने का, लेकिन थोड़ी लेट रहती है हमेशा। वही करीब 5 बजे तक पहुँच जायेंगे" निखिल ने बताया।
जब ट्रेन चलने को हुयी तो अनु की मम्मी ने बैग से खाने की टिफिन निकाला
“खा लो फिर आराम से ऊपर वाली सीट पर बैठ के पढ़ना या सोना” अनु की मम्मी ने अनु से कहा
“ये तुम्हारे लिए” उन्होने एक टिफिन निखिल की ओर बढ़ाते हुये कहा
निखिल खुशी से झूम उठा जब उसे अपनी मनपसंद वेज बिरयानी मिली, अनु के हाथो की बनी।
उसे मालूम था अनु ने ही बनाया होगा। निखिल को बेहद पसंद जो है। उसने अनु की मम्मी से नजरे छुपाते हुये बस अनु की हथेली पर अपनी हथेली रख के हल्के से दबा दिया। निखिल का शुक्रिया बिना कहे अनु ने उसकी आंखो मे पढ़ लिया था।
दरअसल, ये बिरयानी का मसला शुरू ही इसी ट्रेन मे हुआ था जब पहली बार निखिल बनारस जा रहा था और जाते वक़्त जब अनु उसके घर आई तो दो टिफिन लायी थी एक मे वेज बिरयानी थी और दूसरे मे अनु की पसंदीदा मोतीचूर के लड्डू। अनु के हाथो की बनी बिरयानी निखिल ने पहले भी खाई थी लेकिन उस वक़्त अनु की यादों के साथ इसका स्वाद बढ़ गया था और तब से निखिल जब घर आता, जाते वक़्त अनु बिरयानी का टिफिन लिए उससे मिलने जरूर जाती।
सबने खाना खाया और फिर अनु की मम्मी ने सोने की ईच्क्षा जाहीर करते हुये निखिल से पूछा “तुम्हें सोना है अभी ?”
निखिल ने ना मे सर हिलाते हुये बोला “अभी क्या टाइम ही हुआ है, हमारा तो सोने का टाइम है 1 बजे। आप सोईए आराम से”
अनु ऊपर के बर्थ पर सोने चली गयी अपनी एक बुक लेकर और निखिल नीचे की सीट पर ही बैठा हुआ अपने मोबाइल मे फेसबूक, व्हाट्सअप और इंसटाग्राम की उपडेटस देखने लगा।
काफी देर तक अनु अपनी किताबों में लगी रही और निखिल अपने फ़ोन पर। अनु की मम्मी और अगल बगल के लोग भी करीब करीब सो चुके थे। ट्रेन के चलने की आवाज और अंदर आने वाली सरसराती ठंडी हवा और कभी कभी बगल से निकलती दूसरी ओर से चली आ रही तेज रेलगाड़ी की आवाज के सिवा और कोई आवाज नहीं आ रही थी।
“अगर अभी अपने दोस्तों के मैसेज से फ्री हो गए हो तो ऊपर आ जाओ” निखिल के मोबाइल पर अनु का एक मैसेज ब्लिंक हुआ।
निखिल ने ऊपर की ओर देखा तो अनु उसे ही देख रही थी। निखिल फोन ऑफ करके पॉकेट मे रखा और ऊपर की बर्थ पर अनु के पास चला गया।
अनु अपनी सीट पर लेटी हुई उठ के बैठने लगी तो निखिल ने उसे लेटे रहने का इशारा किया और उसके पेट के पास यानि सीट के बीच के हिस्से में सामने की सीट पर पैर रख बैठ गया।
"हो गयी पढ़ाई ?" निखिल ने पूछा
"जितनी होनी है हो चुकी है" अनु ने थोड़ी बेतरतीबी से जवाब दिया
"एग्जाम क्वालीफाई तो कर लोगी ना"
"हाँ, तुमने कर लिया था ना लास्ट ईयर, मैं भी कर ही लुंगी" अनु ने जवाब दिया तो उसका रूखापन उसके शब्दो में साफ़ नज़र आ रहा था।
"क्या हुआ, ऐसे चीढ़ क्यों रही हो ?" निखिल ने अनु के चेहरे को अपनी ओर करते हुए पूछा तो अनु ने निखिल का हाथ अपने गाल से हटाते हुए उसी बेरुखी से जवाब दे दिया "कुछ नहीं"
"क्या हुआ अनु, क्यों ऐसे गुस्सा कर रही हो" निखिल ने फिर अनु को मानाने के लहजे में पूछा
"जब दूर रहती हूँ तो फ़ोन पर बहुत कहते हो ' i miss u' अभी पास है तो तबसे न जाने क्या फ़ोन में टिप टीप कर रहे हो" अनु ने कहा तो निखिल के चेहरे पर हल्की हसीं छा गयी
"अरे वो मैने सोचा तुम पढ़ रही हो तो क्या डिस्टर्ब करूँ"
"हाँ तुम बहुत सोचते हो"
"और क्या क्या सोचे ?"
"कुछ नहीं, बोलो। अब तो पास आ गया हूँ"
"क्या बोलूं ? बोलना कुछ नहीं है। आज इस वक़्त साथ हो तो कम से कम मेरे पास तो बैठो" अनु ने निखिल की हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए कहा। बदले में निखिल कुछ बोला नहीं बस अनु की हथेली को अपनी हथेली में कस के पकड़ते हुए उसे एकटक देखता रहा।
"क्या देख रहे हो ऐसे ?"
"कुछ नहीं। देख रहा हूँ आज ज्यादा सुन्दर लग रही हो"
"सब तो ठीक है ये बस तुम्हारी नाक थोड़ी छोटी रह गयी" निखिल अनु की नाक को पकड़ते हुए बोला तो अनु अपने दूसरे हाथ से निखिल की हथेली को अपने गालों पर रख के उसके हथेली का गर्म स्पर्श गालों पर महसूस करने लगी।
"पता है तुम्हारे बनारस जाने के बाद तुम्हारी कमी महसूस हुई। तुम मेरी ज़िन्दगी में क्या जगह रखते हो, पता नहीं लेकिन ये पता है कि वो जगह कोई और नहीं रखता। पहले जब मन होता था बुला लेती थी तुमको या खुद चली आती थी तुम्हारे घर किसी ना किसी बहाने लेकिन तुम चले गए तबसे खाली खाली लगने लगा था। बीच-बीच में आते भी थे तो एक दो दिन के लिए और उसमें भी अपने दोस्तों के साथ इधर उधर घूमते रहते, मेरे लिए तो टाइम ही नहीं रहता था तुम्हारे पास। कभी कभी बस मिलने का कोटा पुरा करने आ जाते थे। आज पास बैठे हो तो मन हो रहा है सारी कसर आज ही मिटा लूँ वरना फिर ना जाने कब ऐसे मिलोगे" कुछ बूंद आंसुओं के अनु की पलकों पर आ टिके थे जिनकी परवाह किये बगैर अनु बस अपने मन की बात कहती जा रही थी।
निखिल बिल्कुल निःशब्द हो चूका था। गलती तो उसकी थी पर सारी गलती उसकी नहीं थी। पहले जैसे वो अनु के घर चला जाता था बिना किसी संकोच के अब सब वैसा नहींं रहा था। अब उसके घर जाने पर उसके घर वाले भी काफी फॉर्मेलिटीज करने लगते जैसे कैसे हो, कब आये, पढाई कैसी चल रही है वगैरह वगैरह। अनु से बैठ के अकेले बात करने का टाइम नहीं मिल पाता था सो उसने धीरे धीरे जाना भी कम कर दिया था और दोस्तों का क्या कहे वो तो उसके आने की खबर मिलते ही धमक जाते तो बस निकल जाता था उनके साथ घूमने।
अनु और निखिल सिर्फ दोस्त थे या बहुत अच्छे दोस्त थे या दोनों को एक दूसरे से प्यार था साफ़ साफ़ कह पाना मुश्किल है क्योंकि आजतक दोनों ने एक दूसरे से ऐसी कोई बात नहींं की जिससे ऐसे प्रश्न उन दोनो में से किसी के मन में उपजे लेकिन आज जब दोनों ऐसे एक-दूसरे के करीब आ रहे थे जिसमे इनका प्यार साफ़ झलक रहा था।
अनु की पलकों से नीचे आ चुके आंसुओ को निखिल ने अपने हाथों से पोछा और अनु का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में ले उसके माथे पर अपने प्यार का प्यार पहला इज़हार अपने होठो के स्पर्श से कर दिया। सब कुछ बिल्कुल स्वाभाविक था। कुछ देर अनु की आँखों में देखते हुए निखिल उसके होठो पर अपने होठ रख आज वो सब कुछ कह चुका था जिसे व्यक्त करना शब्दो की पहुँच से कोसो दूर था।
अनु निखिल को अपनी बाहों में भीच लेना चाह रही थी। थोड़ी देर के लिए उसकी कैद में हो जाना चाह रही थी पर होठ निखिल के होठो की नमी से सील चुके थे।
"तुम मुझे अपनी बाहों में ले लो" सिर्फ इतना ही कह पायी निखिल से।
निखिल अपनी जगह से उठते हुए अनु के सिरहाने के पास चला गया। अनु के सर को अपनी गोद में रख उसके बालों को सही किया और उसे अब सोने का इशारा किया।
"कल एग्जाम है तो तुम्हारा अभी तुम सो जाओ"
अनु निखिल की गोद में सर रख थोड़े देर उसके हाथों का स्पर्श अपनी बालों में महसूस करती रही और फिर सो गयी।
अगली सुबह दोनों बाबा विश्व्नाथ की नगरी में उतरे तो मौसम खुशनुमा लग रहा था।

