महा मानव
महा मानव
कुंभ के मेंले के दौरान बहुत से संत मंहतों से मिलने का अवसर मिला, पर कुछ एक लोगों से मुलाकात मन के पटल पर छप जाते है और जीवन भर याद रहते है या कुछ सीख दे जाते हैं। जिस दिन हम गये, उस दिन हमारी तीन संतों से मुलाकात हुई और तीनों ही अलग मतों को मानने वाले थे।
पहले वाले तो थोडे ढोगीं लगे क्योंकि उनके आँखे नारियों पर से हट नहीं रहीं थी। दूसरे वाले ठीक ठाक जानकारी कम पर खानदानी रिवायत थी तो बन गयें, पर तीसरे वाले संत जी से बाते करके यही लगा कि हाँ यही महामानव हैं।
अब आप लोगो से बातें साझा करते हैं कि क्या क्या बातें हुई। हमने पूछा कि कैसे बन गये संत तो उनका जबाब था कि हम सब भाई बहनों में सबसे बडे थे। बडा सा कारखाना था, दादाजी जी ने मालीकाना हम को ही दिया। सब टीक ठाक चल रहा था, दीवाली का बोनस बँट रहा था। लेकिन बोनस बांटते समय मजदूरो की बोनस में कटौती काट दी गयीं। वह लोग रो रहे थे।
हमने पूछा क्या हुआ तो बोले साहब कैसे होगा। हमने कहा कि चलो हम बोनस दोहरा देतें है। अब जब घर पहुँचें तो हम से हमारे बेटे सरीखे भाइयों ने पूछा कि आपने कैसे पैसा बाँटा? मालिक तो हम लोग भी है। बस उसी दिन ने हमने अपनी जायदाद उन मजदूरो के नाम किया और निकल गये घर छोडकर।
अब आप ही बतायें कि ऐसे लोग महामानव नहीं तो और कौन है? बस अफसोस है कि नाम ना पूछ सकें।