बिल्ली रास्ता काट गई
बिल्ली रास्ता काट गई
उस शाम को ऑफिस खत्म होने के पहले प्रिया अपने बाॅस के केबिन में पहुँचीं और अपना इस्तीफा टेबल पर रखकर वापस हो ली। राकेश के बेवफाई के साथ ही प्रिया का सब कुछ खत्म हो चुका था।उसका मोह इस संसार से टूट चुका था। राकेश का प्रिया के साथ तीन साल का अफेयर था और अब राकेश किसी और से शादी करने जा रहा था।
प्रिया एक कम्पनी में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर थी। उसी कंपनी में राकेश की एंट्री उससे छह महीने बाद हुई थी ।राकेश को वह पहली मुलाकात में ही पसंद करने लगी थी। उसमें गजब का आकर्षक व्यक्तित्व था। बोलना, उठना, बैठना, सब कुछ बेहतरीन था। राकेश में उसने अपने सपने का राजकुमार को पाया था।
प्रिया को बचपन से ही लोग कहते थे कि तुम लाखों में एक हो, खूबसूरत हो, होशियार हो,देखना तुम्हें राजकुमार जैसा वर मिलेगा ।और, सपनों का यही राजकुमार प्रिया को राकेश में नजर आया था।
धीरे -धीरे आफिस में प्रिया और राकेश की नजदीकियाँ काफी बढ़ गई। पूरे दो साल तक दोनों गहन प्रेम में डूबे रहे। राकेश ने हर बार प्रिया को दिलासा दिया कि वह प्रिया से शादी कर लेगा। फिर एक दिन प्रिया को खबर लगी कि वह किसी और से शादी करने जा रहा है।
उस दिन राकेश के केबिन में ही प्रिया ने उससे घमसान किया और दोनों में काफी कहा सुनी हुई।
पूरे आफिस के सामने हो-हल्ला हंगामा हुआ और वह इस्तीफा रखकर वापस आ गई।
जाते समय शोभा ने उसे रोकने की कोशिश की और पूछा था, कहाँ जाएगी ?
यहाँ से बहुत दूर ! फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
घर पहुंच कर उसे चैन न था। घर में प्रिया " पुशी" बिल्ली के साथ अकेली रहती थी। पुशी को गोद में लेकर प्रिया खुब रोयी। उसे अपनी जिंदगी अर्थ हीन लग रही थी।
उसने पुशी को एक ओर उछालते हुए कहा---
जा---! तू भी भाग जा ! माँ ने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था, पर मैंने उनकी एक न सुनी ! अपनी अवस्था की मैं खुद दोषी हूँ। माँ, मैंने राकेश के लिए तुझे त्याग दिया था ! माँ ऽऽऽ तुम कहाँ हो?? माँ ऽऽऽ---------।
प्रिया जोर जोर से चीत्कार कर रोती रही। बिल्ली कुछ देर उसकी ओर टुकुर- टुकुर देखती रही फिर कुद कर उसके पास आकर अपना सर प्रिया के पैरों से रगड़ने लगी। प्रिया उसे गोद में लेकर रोने लगी, नहीं- नहीं तुम बेवफा नही हो सकती !
फिर प्रिया उठकर राकेश की एक तस्वीर लेकर उस पर काला रंग पोतकर तस्वीर को फाड़कर जोर- जोर से हँसने लगी। उसकी हँसी घर की चारहदिवारी से टकराकर गूम हो गई।
रात के दो बज चुके थे। प्रिया के आखों से नींद कोसो दूर थी। उसने अपनी माँ को फोन लगाया पर माँ शायद सो रही थी। अपने माँ के नाम मैसेज लिखा, "माँ तुम्हारी बहुत याद आ रही है।"
भोर ही गया था। बाहर कुछ रौशनी नजर आने लगी थी। मेन गेट खोलकर लिफ्ट से वह दसवीं मंजिल पर चली गई। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि पुशी भी उसके पीछे- पीछे छत पर चली गई थी। छत पर जाकर उसका दिमाग शून्य हो चुका था। वह छत पर रखे सूखे फूलों के गमलों पर खड़ी होकर दीवार पर चढ़ गई। नीचे झांका और हाथ पैर शुन्य हो गये। आँखें बंद कर नीचे कुदने ही वाली थी कि बगल में उसे म्यांयु-म्यांयु सुनाई दिया। आँखें खोलकर देखा तो दीवार पर पुशी भी खड़ी थी, नीचे की ओर झाँकते हुए! ये क्या पुश ? तू क्यों दीवार पर चढ़ी ? पुशी नीचे उतर ! और घबड़ाकर पुशी नीचे कुद गई ! हे भगवान ! प्रिया पीछे की ओर गमले पर पैर रखकर छत पर कूदी और नीचे की ओर भागी। लिफ्ट से नीचे उतरती हुई रोती जा रही थी, मैंने पुशी को मार दिया है ------
नीचे आकर चारों तरफ देखा, कहीं बिल्ली का अता-पता नहीं था। अचानक आम के पेड़ के ऊपर से बिल्ली ने छलाँग लगाई और प्रिया के कन्धें पर आ गिरी। प्रिया उसे अपने साथ चिपटा कर निहाल हो गई।
दरअसल बिल्ली ने जैसे ही छलाँग लगाई थी, वह आम के पेड़ में आकर फंस गयी थी। वह डर कर दुबकी बैठी रही और जब प्रिया को देखा तो उसके गोद में कूद गई। पुशी के कारण उसे जीवन दान मिला था ।
उसने मन में ठान लिया कि अब नये सिरे से जीवन आरंभ करेगी। सुबह का सूर्योदय उसके जीवन में एक नया प्रकाश लेकर आया था।
समय से पहले ही वह आफिस पहूँची और दौड़ी-दौड़ी बाँस के केबिन में गई।उसने चैन की साँस ली,अभी तक उसका इस्तीफा जस का तस मेज पर पड़ा था। उसने अपना इस्तीफा फाड़ कर डस्टबीन में फेंक दिया।
प्रिया आराम से जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गई।
बगल में बैठी शोभा उसे देखकर पूछा, अरे प्रिया ! तुम तो लम्बी छुट्टी पर जाने वाली थी ? नहीं गई ?
नहीं जा पायी क्योंकि बिल्ली रास्ता काट गई। प्रिया ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।