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Saumya Jyotsna

Inspirational

4.8  

Saumya Jyotsna

Inspirational

सोम काकी

सोम काकी

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समीर आज ही अपने ऑफिस के काम से लौटा है| कुछ काम था जिसके कारन वह बाहर गया था| आते हीं उसे नेहा ने बताया की सोम काकी कई दिनों से नहीं आ रही हैं| नेहा बहुत गुस्से में थी और कह रही थी की इस बार उन्हें पैस काटकर ही दूंगी|तुमने ही उन्हें सिर प बिठाकर रखा है|समीर कहता है ठीक है, मैं उन्हें देखकर आता हूँ|इसके बाद वह काकी के यहाँ पहुँच जाता है|

सोम काकी का घर, या यूँ कहे तो ठिकाना| चार खम्भों के बल पर खड़ा वह घर, जहाँ पर्दों के नाम पर इक मैली साड़ी का टुकड़ा| जिसे हटाकर समीर अंदर जाता है| चारपाई पर लेटी काकी और उनके घर में पड़े कुछ सामान | समीर काकी के पास गया और उनके शरीर को छूकर देखा जो बुखार से ताप रहा था| समीर ने उन्हें फलों के जूस दिए और पानी छिड़क कर उन्हें उठाया| बुखार में कोई सुधार नहीं होने के कारण उसे चिंता हुई और उसने डॉक्टर को फ़ोन लगाया| डॉक्टर ने जाँच कर के बताया की सोम काकी को jaundice है जो की अपने आखिरी स्टेज में है और तो और इनका ब्लड शुगर भी बहुत बढ़ा हुआ है| ये सब देखभाल की कमी और अनदेखी का नतीजा है| समीर का दिल बैठा जा रहा था| उसने पूछा,” अगर अस्पताल में भर्ती कर दे तो कोई सुधार की उम्मीद है”| डॉक्टर ने कहा,” बीमारी का अंतिम चरण है पर कोशिश कर सकते हैं”| समीर ने हाँ, ठीक है| आप इन्हें अस्पताल में भर्ती कर दीजिये| काकी को अस्पताल में भर्ती कराया गया| रात हो गई और समीर के घर नहीं आने पर नेहा चिंता हुई, तो उसने समीर को फ़ोन लगाया और पूछा,” तुम कहा हो” ? अब तक घर क्यों नहीं आए? समीर ने कहा, “मैं अस्पताल में हूँ”| काकी की तबीयत बहुत ख़राब है|” तो इस पर नेहा ने कहा,” तो क्या हुआ| मर थोड़े न गई हैं| तुम क्यों इतना सब कुछ कर रहे हो| इस पर समीर गुस्सा हो गया और उसने कहा,” वाह, कितने उच्च ख्यालात हैं तुम्हारे| सोचो अगर वह तुम्हारी माँ होतीं तो...| क्या तब भी तुम ऐसा ही बोलती?” इतना कहकर समीर ने फ़ोन काट दिया| वह सोचने लगा, कि कैसे जब सोम काकी उसके घर के बाहर काम मांगने आईं थीं तो उसके बच्चे को कितनी प्यार से पुचकारा था और अंश भी सोम काकी के साथ घुल मिल गया था| जब भी नेहा सोम काकी को डांटती थी, तब भी वह अगले दिन उसी ख़ुशी के साथ काम पर लौट आती थीं| जैसे घन घोर वर्षा के बाद भी सूरज पुनः अपने दायित्व पर लौट आता है| समीर ये सब सोच ही रहा था कि उसे नींद आ गई और रात भर वह अस्पताल में ही रह गया| अगले दिन ऑफिस से छुट्टी ली और सोम काकी के पास ही बैठ गया| सोम काकी को जब होश आया तो उन्होंने समीर के तरफ़ अपना कांपता हाथ बढ़ाया और समीर ने तुरंत उसे अपने हाथों से थाम लिया| सोम काकी के आँखों से आंसू निकल आए जो उनके झुर्रीदार चेहरे के गढ़ों में धस कर एक लकीर के तरह दिख रहे थे| मानों ये दर्द के नहीं किसी हमदर्द के मिलने के आंसू थे|

         समीर ने सोम काकी से पूछा,” आपका कोई है क्या इस दुनिया में, आपका कोई बेटा या बेटी....| इस पर सोम काकी ने अपने कांपते होठों से कहा,” है पर कोई नहीं है| मतलब... (समीर ने पूछा) “ उसके लिए मैं नहीं हूँ, पर मेरे लिए वह है”| मेरे दो बेटे थे|एक को भगवान ने मुझसे छीन लिया और दूसरा...इतना कहकर काकी के आँखों से आंसू छलक आए ...अब उसे देखे हुए छह महीने हो गए| मेरे पति मजदूर थे| उनकी मौत एक हादसे में हो गई| मेरा बेटा उसी हादसे में मर गया|हमारा हँसता खेलता परिवार था पर, इनके मौत के बाद सब कुछ बदल गया|  हमारा हँसता खेलता परिवार था पर, इनके मौत के बाद सब कुछ बदल गया| उस वक़्त मेरा दूसरा बेटा पांच वर्ष का था| मैंने मजदूरी की उसे पाला पोसा| उसका अच्छे स्कूल में दाखिला करवाया ताकि वह नौकरी कर सके| मैंने उसे हर सुविधा देने की कोशिश की| कुछ समय पहले आया था, तो मैंने उससे कहा, बेटा अब यहाँ रहते मन उब गया है| एक लड़की ढूंढ दू तू उससे शादी कर ले| इस पर उसने कहा,” माँ मैंने शादी कर ली है”| “उसने तो मुझे एक पल में ही पराया कर दिया”| मेरा बेटा मुझे भूल गया , शादी भी कर ली और मुझसे पूछने भी नहीं आया| उस समय के बाद से मैंने उसे नहीं देखा”| पर जो इक बेटे को करना चाहिए वह, तूने किया है| सोम काकी ने फिर समीर से कहा ,” बेटा मेरे घर में इक बक्सा होगा, वह तुम ला दो”| समीर ने तुरंत बक्सा मांगवाया | काकी ने उसे खोलने को कहा| उसमे से कुछ कपड़े निकले जो काकी के बेटे के बचपन के थे| जिसे करीने से सहेज कर रखा गया था| उसी में काकी के बेटे की फोटो भी थी और सबसे नीचे थे दो जोड़ी पायल| काकी ने उसे ले कर समीर के हाथों में दे दिया और कहा,” ये पायल मैंने अपनी बहु के लिए बनवाए थे कि जब मेरे बेटे की शादी होगी तो मैं अपनी बहु को दूंगी और ये कपड़े भी मैंने सहेज कर रखे थे पर.....तुम ये पायल लो और इसे बेचकर मेरा अंतिम संस्कार कर देना”| इतना बोलने के कुछ देर बाद ही काकी का जीवन अपने बेटे की याद संजोये समाप्त हो गया| पर आखिरी क्षण में समीर के सिर पर काकी का हाथ और उसे बेटा संबोधित करना उसे अपनी गलती का एहसास करा गया| समीर ने ही काकी को अंतिम बिदाई दी|

       सोम काकी ने समीर की जिंदगी ही बदल दी, अब वह हर रविवार वृधाश्रम जाकर , बूढ़े लोगों को ख़ुशी देने की कोशिश करने लगा|


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