महिला कैदियों के बच्चे

महिला कैदियों के बच्चे

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जेल के बैरक नंबर 370 में गुमसुम और मायूस-सी बैठी शोभना को लता ने टोका.. बहन, तुम्हें पता है,अब हम अपने बच्चों से हफ्ते में कम-से-कम तीन बार मिल सकेंगे। अच्छा,क्या तुम सच कह रही हो? मैं अपनी चिंकी से हफ्ते में तीन बार मिल सकूंगी। उसे दुलार सकूंगी, देख सकूंगी। शोभना ने चहकते हुए कहा, शोभना के चेहरे पर ममतामयी मुस्कान आ चुकी थी।

हां शोभना, बाहर मैंने सभी को बात करते हुए सुना है। पांच साल तक बच्चे माँ के साथ रहते हैं, और फिर अचानक ही उन्हें अलग कर दिया जाता है, ऐसे वक़्त में खुद को संभालना कितना मुश्किल होता है और बच्चे..वे भी अपनी माँ के लिए रोते होंगे, तड़पते होंगे। जैसे हम उनके के लिए तड़पते हैं। चिंकी भी अभी हाल में ही तुमसे अलग हुई है। हम जैसी महिला कैदियों के लिए ये बहुत बड़ी खबर है। हां लता, तुमने बिलकुल सही कहा।

शोभना की ममतामयी आँखों को अब बस अपनी बेटी चिंकी का इंतज़ार था कि वह दौड़कर उसे अपनी गोद में उठा सके।


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