आज़ादी
आज़ादी
शांत मन अरमानों का जखीरा होता है, जिसमें अनगिनत ख्वाब, एहसास और दिल की परतों में बसी ख्वाहिशें हिलोरे मारती हैं। कुछ किनारों पर आकर साहिल से टकराकर वापस अपने वतन लौट जाती हैं, तो कुछ साहिल को चीकरक नया वतन तलाशती हैं। अनन्या का मन भी कुछ ऐसा ही अल्हड़ और बेबाक-सा बनने को तड़पते रहता था। हजा़रों ख्वाहिशों का एक पुलिंदा, एक गठरी के तरह उसके दिल में समाया रहता था, जो वक्त-बेवक्त आकर उसे बैचेन करता और उसके कदम बहकने लगते मगर घर-परिवार और समाज की लकीर की गहराई इतनी ज्यादा थी कि ख्वाहिशों का दम घोंटकर वह चेहरे पर मुस्कुराहट का आंचल फैला लेती थी। अनन्या जब भी लड़कियों की आजाद और बेफिक्र उड़ान की खबरे देखती उसका मन भी मचलने लगता कि काश, वह भी इन लड़कियों की तरह एक आजाद और अल्हड़-सी उड़ान भर पाती।
एक रोज जब उसके सामने समाज का काला चेहरा लिए कुछ लोग बैठकर उसकी आजादी का सौदा कर रहे थे, उस वक्त अनन्या की ख्वाहिशों ने सौदे की बेड़ियों की तोड़ने का प्रयास किया और उसके प्रयास से वह चोटिल भी हुई मगर बेड़ियों की चोट ने उसके पैरों को मजबूती प्रदान कि और वह आजादी की ओर मयस्सर हो गयी। अपने कंधों पर बैग टांगकर अपने हिस्से की आजादी को सौदेबाजी पर हावी करके वह निकल पड़ी अपनी आवारगी और यायावरी पर।