एक ज़िद
एक ज़िद
रेडियो पर आने वाला रात्रि प्रोग्राम "हमसफ़र" राजेश कभी सुनना नहीं भूलते थे। रात्रि भोजन के बाद राजेश रेडियो ऑन कर लेते और आरजे पूजा की आवाज़ सुनकर गर्व महसूस करते।
एक रात रेडियो सुनते - सुनते अचानक मानस पटल पर बीती यादें तैरने लगीं। "मां, पापा को समझाओ ना, मुझे आईआईटी, मेडिकल या आईआईएम। इस तरह के कोर्स नहीं करने हैं। मुझे रचनात्मक फील्ड में आगे बढ़ना है। मुझे रेडियो जॉकी बनना है।" "क्या करेगी आरजे बनकर? देर रात प्रोग्राम होते हैं और आजकल सुनता ही कौन है रेडियो?" अपनी बेटी पूजा के ज़िद पर राजेश ने अपना तर्क रखा।
आखिर लंबे बहस के बाद पूजा जीत गई और अपने सपनों की ओर रुख कर लिया। संघर्ष के पलों ने पूजा के हुनर को और भी निखार दिया। कुछ सालों बाद पूजा एक रेडियो में बतौर आरजे चुन ली गई।
"अगला गाना है ' मेरी आवाज़ ही पहचान है, अगर याद रहे।' इस आवाज़ के साथ राजेश जी भी बीती बातों से बाहर आ गए और गुनगुनाने लगे यह गाना।
सचमुच बच्चों को अपनी मर्ज़ी के अनुरूप ही आगे बढ़ने देना चाहिए ताकि वो अपने सपनों को जी सकें।