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Saumya Jyotsna

Inspirational

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Saumya Jyotsna

Inspirational

अनोखा रक्षा-सूत्र

अनोखा रक्षा-सूत्र

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अपराजिता ने सारे पकवान और राखी को थाली में सजा कर भाई को आवाज़ देकर बुलाया, “जल्दी आ जा, गौरव। राखी का समय हो गया है।” “इतनी देर से तैयार हो रहा है।” “हां दीदी, आया।” इतना कहते हुए अपनी मुट्ठी में किसी किसी चीज़ को छुपाते हुए वह कमरे में दाखिल हुआ। अपराजिता ने पूछा, “क्या छुपा रहा है, मुझे भी बता।” इतने में गौरव ने कहा, “कुछ नहीं, बाद में बताउंगा।” “पहले राखी तो बंधवा लूं।” इतना कहते हुए गौरव ने अपनी कलाई अपराजिता की ओर बढ़ा दी। अपराजिता ने राखी बांधने के बाद फिर पूछा, “अब बता सकता है ना कि क्या हुआ है तुझे।”

इस पर गौरव ने बताया, मां-पापा के जाने के बाद तुमने ही मेरी सारी ज़िम्मेदारियों के साथ मेरी बदमाशियों को भी उठाया है इसलिए यह रक्षा-सूत्र मैं भी तुम्हें बांधना चाहता हूं। यह कहते हुए गौरव ने अपनी मुट्ठीयों को खोलते हुए राखी को सामने रख दिया। उसने आगे कहा, “दीदी, तुम्हें जानकर और भी ज्यादा खुशी होगी कि मुझे जॉब भी लग गई है। तुम पूछती थी ना कि मैं रोज़ कंप्यूटर पर घंटों समय क्यों लगा रहा था? वह मेरे जॉब का ही एक हिस्सा था।” 

गौरव ने आगे कहा, "मैं हर बार राखी में गिफ्ट देना चाहता था मगर मेरे पास ना पैसे थे और न ही कोई ज़रिया जिससे मैं अपनी दीदी के लिए कुछ ला पाता मगर इस बार मैं गिफ्ट लेकर आया हूं। अब आपका भाई ज़िम्मेदार हो गया है।" “हां-हां,” इतना कहते हुए अपराजिता ने भी अपनी कलाई गौरव की ओर बढ़ा दी। स्नेह की कोमल वर्षा ने दोनों की आंखों में प्यार भर दिया।



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