फर्स्ट प्राइज
फर्स्ट प्राइज
माँ, माँ, देखो मुझे क्या मिला है ? फर्स्ट प्राइज ! वो भी सुलेख प्रतियोगिता के लिए। 'कमाल कर दिया ! इतना सुंदर लिखा कि प्रथम स्थान मिला ,' माँ ने राजू को प्यार करते हुए कहा। हाँ, माँ, यह सब आपकी मेहनत का फल है, मुझे तो रोज़ स्कूल में डांट पड़ती थी। सुंदर नहीं लिखते हो ! क्या करते हो ! इतना गंदा लिखते हो! मासूमियत से राजू टीजर की आवाज़ की नकल करते हुए कह गया। यह केवल आपकी वजह से हो पाया है। माँ ने बड़े प्यार से बेटे को गले लगा लिया और कहा ,' ऐसा नहीं है यह तुम्हारी मेहनत का फल है, तुमने दिल लगाकर मन से लिखना शुरू किया तभी तो इतना सुंदर लिख पाए।'
सर्टिफिकेट को हाथ में लेकर खुशी के आँखों में आंसुओं के साथ सोचने लगी - कितना रोया था उस दिन राजूृ,जब सारी क्लास के सामने टीचर ने उसकी कॉपी का पेज फाड़ दिया था यह कहते हुए कि तुम तो कभी सुंदर लिख नहीं सकते हो। फिर उसके बाद बड़ी मुश्किल से उसको कैसे-कैसे संभाला था और कलम से लिखना सिखाया था। कलम हालांकि आजकल नहीं थी और जब उसने लिखने का शौक पैदा हुआ तो दिल से लिखने लगा इतना सुंदर लिखने लगा मानो उसकी आत्मा ही लिखने में बस गई हो।
धीरे-धीरे उसने सुंदर लिखने की कोशिश करनी शुरू की। रोज़ घर आते हो लिखने बैठ जाता था। पहले कलम व स्याही से मोटे मोटे अक्षर लिखे। शब्दों की बनावट समझ आते ही धीरे-धीरे पेंसिल से लिखना शुरु किया और उसके बाद पैन। आज इतना खुश कि उसको फर्स्ट प्राइज मिला। मन ही मन भगवान को धन्यवाद देते हुए माँ ने मन में कहा - मेरा नहीं उसकी मेहनत का फल है अगर उसने मन से लगन से ना लिखा होता तो शायद उसे आज पुरस्कार ना मिलता।