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सर्द होती सम्वेदनाएँ

सर्द होती सम्वेदनाएँ

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सामने की बड़ी हवेली नुमा अट्टालिका में से जनवरी की इस हाड़ कम्पा देने वाली ठंड में एक आर्तनाद--- नहीं:ही-,ही,$$ !बेबसी की चीख रात के सन्नाटे को चीरती हुई -- पूरे वातावरण को सर्द कर गई व मैं भी अचकचा कर बैठ गई।

मेरी नवजात बेटी बहुत छोटी थी ,जिसे संभालने के लिए मुझे बार-बार उठना पड़ता था ।

६ महीने पहले जब मैं यहां अपने पति के साथ मज़दूरी करने आई थी ,तबसे हवेली वाली बहूजी को देखती थी ।वे भी शायद पेट से ही थीं व अपनी ३ वर्षीय गुड़िया के साथ कमरे की खिड़की से झांकती हुई कई बार मुझे दिख जाती थीं ।

मुझे उन्हें देखकर रश्क होता था कि कितने बड़े भाग लेकर पैदा हुई हैं,बीबीजी ,जो इतने बड़े घराने की बहू हैं !लेकिन उनके चेहरे पर एक उदासी सी छाई रहती थी ,वह मुझे बेचैन कर देती थी।

"जब मैं यहां आई थी तब मैं ३ महीने के पेट से थी -- मकान बनाने की सामग्री की भी देखभाल हो जाए व हमारे रहने का भी ठिकाना मिल जाए ,दयालु मकान मालिक ने बाहर ही एक तम्बू बनवा कर दे दिया था व जब मकान का खाका बन गया तब हम बरामदे में सोने लगे थे ।"

मैं भी थोड़ा बहुत मेरे घरवाले को सहयोग कर देती है व खाली समय में मेरे होने वाले बच्चे को लेकर सपने बुनती थी ।सोचती थी कि मेरे बेटी होगी तो बीबीजी की बेटी के कपड़े ले आऊंगी ,फिर मेरी बेटी भी परी-सी लगेगी ।

और सच में! मैंने एक प्यारी सी गुड़िया को ही जन्म दिया था ।मेरी बेटी के जन्म के ठीक एक महीने बाद,बीबीजी को भी २ दिन पहले हॉस्पिटल लेकर गए थे व आज शाम को ही वापिस लेकर आए थे ।

बीबीजी की लगातार रोने की आवाज़ बन्द होने का नाम ही नहीं ले रही थी ,तभी मैंने देखा कि एक औरत और एक आदमी उनके मुख्य दरवाजे से बाहर निकले ,जब वे हमारे रहवास के पास से गुजरने लगे तो मैंने देखा, उनके हाथ मे कपड़े में कुछ लपेटा हुआ था ।मेरे शरीर मे इन सर्द हवाओं के बीच भी झुरझुरी दौड़ पड़ी ।

मैंने मेरे घरवाले को जगाया व हम दोनों उनके पीछे हो लिए ।

थोड़ी ही देर में वे दोनों खाली हाथ वापिस लौट रहे थे ।

हम ने एक ओट ली व जैसे ही वे गुजर गए !वहां पहुंच गए,जहां से इस सन्नाटे को चीरता हुआ ,बच्चे का क्रंदन आ रहा था ।

वहां एक छोटी-सी गुड़िया-सी बच्ची पड़ी थी, जो इस हिम युग में लोगों की सर्द हुई संवेदनाओं को जगाने के लिए उच्च स्वर में क्रंदन कर रही थी ।

मैंने लपक कर उसे उठा लिया व छाती से चिपका लिया ,वह भूखी बच्ची सीने से चिपकते ही चुप हो गई ।

जब मैंने मेरे पति की ओर देखा तो वे बोले ,क्या करेंगे इसका ? कहाँ छोड़कर आएं अब इसे !

मैंने कहा , हमारी बच्ची का भाग तो ऐसा न निकला कि राजकुमारी जैसी पले परन्तु इस गुड़िया का भाग भी ऐसा न बनने दूँगी कि कुत्ते नोंच खाएँ।


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