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Nisha Gupta

Tragedy

4.6  

Nisha Gupta

Tragedy

बाँझ

बाँझ

2 mins
673


"बंद करो ये व्यंग बाण छलनी हो गई हूं सुनते सुनते" आज नीलांजना अपनी सारी शक्ति इक्कठा कर चिल्ला उठी ।  पूरे घर में निःशब्दता छा गई इस पल से पहले जो जिसके मुँह में आता बोल देता जब जिसका जो मन हुआ सुना देता एक ही ताने को सुनते सुनते जीवन का आधा सफ़र पर कर लिया था नीलांजना ने। अचानक जैसे सावित्री को होश आया अपना दबदबा बनाये रखने की गरज से वो बोली

"ओह छाज बोले सो बोले छलनी भी बोल उठी जिसमें सत्तर छेद क्यों चिल्ला रही हो कमी है तो सुनना तो पड़ेगा ही । पंद्रह सालों में घर को वारिस नहीं दे पाई और आज जबान चलाती है" । "नहीं माँ जबान नहीं चलाती, न चलाना चाहती हूँ मगर जिस बात पर पर्दा इतने समय से पड़ा है, पड़ा रहने दीजिए क्योंकि बात निकली तो दूर तलक जाएगी और उसके नश्तर आपको छलनी करेंगे, क्यों कि मुझमें छलनी होने को अब कुछ नहीं बचा"कहते हुए नीलांजना ने अपने बहते आँसू पौंछ दिए। 

"ऐसा क्या है जो तू आज इतना ऐंठ कर बोल रही है जरा मैं भी सुनु" सावित्री बोली ।  

सारा घर अब तक कमरे में इक्कठा हो गया था नीलांजना ने आव देखा न ताव और बोल दिया कमी मुझमें नहीं है आपके सुपुत्र में हैं और इस बात को अब तक इस लिए छुपाए थी कि मुझे किसी से शिकायत नहीं मेरी किस्मत में ये ही लिखा था,मगर आज जब बड़े तो बड़े छोटे भी जो चाहे बोल कर निकल गए तो सबको पता होना चाहिए कि कमी किसमें हैं ।" नीलांजना के शब्दों से दिल चाक हो गया सावित्री का उसने नजर उठा उमेश की ओर देखा जिसकी निगाहे जमीन में गड़ी सच बिन बोले बयान कर रही थी।


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