चोर
चोर
"निकालो इसको बाहर शर्मा जी ये देखिए तो दुकान से चोरी कर के भाग रहा था पकड़ने की कोशिश की तो आपके यहाँ छुप गया है, निकालिए इसे बाहर अभी पुलिस को बुलाकर पकड़वातें हैं बहुत उपद्रव मचा रखा है इन लोगो ने" जोर जोर से बोलते कपिल सभी मोहल्ले वालों की ओर देखने लगे । शर्मा जी ने उस बारह साल के बच्चे की ओर देखा उसके होंठ सूख रहे थे आँखों में पानी के साथ कातरता थी । वो रोते हुए बोला "बाबू जी ये मुझे मार डालेंगे मुझे बचा लीजिये मैंने कोई चोरी नहीं की ।"
"अच्छा, तो फिर ये तुम्हारे पीछे क्यों पडे हैं, तुम भागे क्यों" शर्मा जी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा।
"बाबू जी माँ तीन दिन से काम पर नहीं गई ,मैं सब्जी की रेडी लगा भी लेता मगर इस आंदोलन ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया न मंडी में सब्जी आई ,न मैं ले सका फिर ये लूटपाट । जितने पैसे थे घर में सब इतने दिनों में खर्च हो गए । माँ को बुखार है कल से कुछ खाया नहीं है उसने,तो मैं बाहर ढाबे के पास डिब्बे से खाना उठा रहा था । इतने में ही चोर चोर ये रहा इसी ने चुराया होगा मेरा पर्स कहते हुए भीड़ मेरी ओर बढ़ी मैं डर गया और आपके घर में घुस आया कहते हुए उसने हाथ में पकड़े झुठन के लिफाफे को दिखाया ।
शर्मा जी का सिर वेदना से झुक गया उन्होंने लड़के का हाथ पकड़ा और बोले "ये मेरे शरणागत है अब मैं पुलिस बुलाऊंगा और आप सब से जवाब मांगूगा की क्या इसे झुठन खाने का भी अधिकार नहीं है। शर्म आनी चाहिए हमें की हमारे ही आस पास आंदोलन के नाम पर बढ़ती गुंडागर्दी ने वंचित समाज को असहाय बना दिया है ।" गुस्से से चेहरा लाल हो गया शर्मा जी का, हाथ से झुठन का लिफाफा दिखाते हुए कहा "देखिए क्या चुराया है इसने,बीमार माँ के लिए जूठा निवाला, ढ़ाबे वाले भैया तुम इतना खाना बेकार फेंकते हो क्या पीछे बस्ती में जा कर जिनको जरूरत है नहीं दे सकते तो हमें बताओ हम दे आया करेंगे कम से कम इस महामारी में कुछ इंसानियत हम सब में जिंदा रहें , हमारे आस पास कोई भूखा न सोए क्या हम मिल कर इस जिम्मेदारी का वहन नहीं कर सकते । हर घर से दो जनों का खाना ले कर हम आप पीछे की बस्ती में रहने वालों का ध्यान रखे तो कितना अच्छा हो सोचिये सभी इतना तो हम कर ही सकतें हैं " शर्मा जी ने सयंमित होते हुए कहा ।
सब ने स्वीकृति में सिर हिलाया ,सभी निःशब्द सिर झुकाए खड़े थे शायद आत्मा पर कुछ प्रहार हुआ था ।