Nisha Gupta

Inspirational

4.0  

Nisha Gupta

Inspirational

रंग

रंग

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"श्रद्धा उठो कब तक ऐसे उदास रहोगी जीवन किसी के साथ चलता तो जरूर है पर उसके साथ खत्म नहीं होता बेटा अब तुम्हें धैर्य रखना ही होगा होनी पर किसी का बस नहीं" कहते हुए राधे श्याम जी ने बहू श्रद्धा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा ।

सरिता ने घूर कर राधेश्याम जी को देखा और आहत स्वर में बोली "खा गई मेरे बेटे को और तुम कह रहे हो ये धैर्य रखें हाय मेरा सुमित" कह कर पछाड़ खा रोने लगी

"कैसी बातें करती हो सुमित की माँ इसमें श्रद्धा का क्या दोष इस छोटी सी उम्र में इतना बड़ा दुःख कैसे कटेगा इसका जीवन इसके जीवन के धूमिल हुए रंग हमें वापस लाने होंगे " कहते हुए राधेश्याम जी ने एक कागज श्रद्धा के तरफ बढ़ा दिया ।

कागज आश्रित नौकरी का था श्रद्धा ने निरहि निगाहों से बाबू जी को देखा।

बाबू जी बोले बेटा जीवन निर्वहन के लिए जीविका उपार्जन तो करना ही है तुम हस्ताक्षर कर मुझे कागज दे दो।

कागज कार्यालय में जमा करवा कर लौटते हुए रमाकांत मिल गए , सांत्वना स्वरूप बातों के बाद दोनों ही जीवन के कटु सत्य पर विचार कर रास्ता काटते चल रहे थे कि राधेश्याम बोले रमाकांत अपने दिल की बात कहूँ, 

"हाँ हाँ कहिए न "

मैं चाहता हूं कि बहू की बेरंग जिंदगी में रंग भर दूँ उसने देखा ही क्या है अभी तो दूसरा साल शुरू ही हुआ था उसकी शादी का, कोई लड़का नजर में हो तो बताना अब वो मेरी बेटी है और मेरी ज़िम्मेदारी कहते हुए गला भर आया राधेश्याम का।

रमाकांत बोले बात तो ठीक कह रहे हो अभी उम्र ही क्या है 27 साल में तो जीवन शुरू होता है देखो राधे मेरी बहन का लड़का है बहुत अच्छी नौकरी है उसकी और सीधा सरल है पहली शादी असफल रही क्यों कि दोनों परिवार के रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था, कोई व्यसन भी नहीं है, कहो तो बात चलाऊँ।

"हाँ हाँ नेकी और पूछ पूछ "

"नहीं एक बार फिर भी श्रद्धा से पूछ लो "

"देखो रमा अभी तो तीन महीने हुए है सुमित को गए घाव हरे है उसके एक दम तो नहीं पूछ पाऊंगा मगर तुम बात शुरू करो होली तक ठीक समय आ ही जायेगा" कहते हुए राधेश्याम जी ने आश्वासन दिया।

ठीक है अभी तो होली के दो महीने है तब तक माहौल कुछ संभल जाएगा कहते हुए रमाकांत जी घर की ओर चल दिये।

समय धीरे धीरे बीतने लगा श्रद्धा को नौकरी मिल गई वो नए माहौल में ख़ुद को स्थापित कर जीवन के सफर में आगे बढ़ चली।

अचानक एक दिन बाबू जी ने ऐलान कर दिया श्रद्धा बिटिया यहाँ आओ ये गुलाबी साड़ी पहनो आज रमाकांत जी अपनी बहन के लड़के के साथ आ रहे है और मैं उससे तुम्हारी शादी की बात पक्की करने वाला हूँ। लड़का अच्छा है इंजीनियर है, अच्छा कमाता है। चाहो तो नौकरी करती रहना कोई तुम्हें छोड़ने को नहीं कहेगा मैंने सब नाते तय कर दिए हैं।

होली वाले दिन श्रद्धा व शिरीष ने एक दूसरे को देखा दोनों के मुरझाए चेहरे पलाश की भांति दहक गए। इस बार की होली ने दोनों के जीवन में रंग भर दिए।

 


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