Nisha Gupta

Others

4.8  

Nisha Gupta

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पराकाष्ठा

पराकाष्ठा

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जीवन का सफर इतना कठिन भी नहीं होता जितना हम उसे समझते है । आज आये केस के बारे में सोचती राधिका ने चाय का घूंट भरा तो मुँह का स्वाद बिगड़ गया उसे पता ही नहीं चला कि चाय एक दम ठंडी हो गई , उसने रामप्रसाद को आवाज लगा कर दुसरीं चाय लाने को कहा ।फ़ाइल के पन्ने पलटी अचानक राधिका चौक गई रिपोर्ट जिस शख्स के खिलाफ थी वो चित्र उसके दिलो दिमाग में तूफान उठा गया उसने गौर से फ़ोटो को देखा और मन ही मन बुदबुदाई "हाँ शांतनु ही तो है" ,ओह तो शांतनु ने इस दौलतमंद के कारण मेरे प्रेम को तिरस्कृत किया था ।

मैं तो वो शहर छोड़ आई थी फिर ये यहाँ कैसे उसने जल्दी जल्दी फ़ाइल के पन्ने पलटने शुरू किए , अच्छा तो यहाँ इतना बड़ा कपड़ों का कारखाना है जो गौरी को तलाक के ऐवज में चाहिए ।

अच्छे से केस को पढ़ उसने फ़ाइल बन्द की और खो गई अतीत में, सीधे स्वभाव का शांतनु न जाने कब दिल में बस गया और वो भी न जाने कब उसकी पसंद बन गई थी । कितना अच्छा समय निकल रहा था जीवन एक दूसरे के साथ बिताने की रस्म अदा कर दोनों ने विवाह करने का निश्चय भी कर लिया था कि अचानक एक दिन अगूंठी किसी के हाथ भिजवा कर शांतुन फिर बिना कुछ कहे सुने उसकी जिंदगी से दूर हो गया था।

आज फिर इच्छा मिलने की ऐसी तीव्र उठी की उसने फैसला किया कि इस केस की तह तक जाएगी वो और हर संभव उसकी गृहस्थी बचाएगी अगर उम्मीद की कोई भी किरण बाकी हुई ।

केस कचहरी तक पहुँचाने के लिए गौरी ने जो हाल बयान किया उसे सुनने के बाद तो राधिका के पैरों तले जमीन ही निकल गई गौरी ने बताया कि शांतनु उसके पिता के दोस्त का बेटा है और गौरी को शुरुवाती दौर से ही शांतनु बहुत पसंद था । उसने अपने पिता से कहा कि उसे विवाह शांतनु से ही करना है नही तो वो विवाह नहीं करेगी। उसकी जिद के कारण पिता ने शांतनु के ना नकुर करने के बाद भी न जाने कैसे राजी कर लिया और हमारा विवाह हो गया ।गौरी थोड़ा अधीर होते हुए बोली मगर दीदी "क्या मैं आपको दीदी कह सकती हूं "।

"हाँ हाँ मुझे अपनी बहन ही समझो" मन के भाव छुपाती राधिका बोली ।

शायद कोई बड़ी बहन होती तो ये गलती मुझसे न होती कहते हुए गौरी ने कहना जारी रखा ,शादी हो गई , विवाह की गहमागहमी खत्म हुई शांतनु बहुत ही धीर-गम्भीर बने रहे प्रथम मिलन की रात्रि वो आये और बहुत ही प्यार से मुझसे बोलो देखो गौरी तुमने जिद की मैं तुम्हें मिल गया लेकिन तुमने कभी सोचा कि मेरा प्यार क्या तुम्हें कभी हासिल होगा ? नहीं मैं प्रेम समर्पण किसी और को तुमसे पहले कर चुका हूं । सप्तपदी तुम्हारे साथ चला हूँ तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करना, तुम्हारा सम्मान करना मेरा धर्म होगा मगर कभी कुछ रिक्तता लगे तो शिकायत तुम भी नहीं करोगी ।

मैं प्रेम में उन्मादी उस कथन को समझ न सकी जीवन चल निकला । समय तेजी से भागता रहा कभी शांतनु ने मुझे शिकायत का मौका भी नहीं दिया मगर जैसे जैसे मुझ में परिपक्वता आती गई ,मैं शांतनु का खाली पन महसूस करने लगी अब तो ऐसा हो गया कि वो मेरे पास होते जरूर हैं मगर मुझमें ही किसी और कि चाह उन्हें पागल कर देती हैं उनका एक पागल प्रेमी की तरह मुझसे व्यवहार मुझे सालने लगा, इस लिए मैंने सोचा कि अब मुझे शांतनु को मुक्त कर देना चाहिए बोलते बोलते गौरी हिचकी लेने लगी ।

राधिका प्रेम की पराकाष्ठा पर विस्मृत थी क्या कहे किसका प्रेम शुद्ध आत्मिक है नहीं समझ पा रही थी ।

वो उठी उसने शांतनु को फोन कर अपने केबिन में आने का आग्रह किया। 

अति व्यस्तता के चलते शांतनु ने शाम को मिलने का कह फोन काट दिया ।

राधिका ने स्नेह से गौरी के कंधे पर हाथ रख कर कहा कि "तुमने दीदी कह कर मुझे कुछ अधिकार दे दिया मैं तुम्हारा प्यार तुम्हें जरूर दिलवाऊंगी अब तुम घर जाओ" ।

शाम को बड़ी सी गाड़ी आफिस के बाहर आकर रुकी शांतनु गाड़ी से उतरे ऑफिस के अंदर से ही देख कर दिल धड़क गया राधिका का उसकी आँखें छलछला आई उसने ख़ुद को संयत किया ।

ऑफिस का दरवाजा खुला , शांतनु ने जैसे ही पैर अंदर रखा चिर परिचित खुशबू से उसका रोम रोम पुलकित हो गया, उल्टी बैठी फ़ाइल में ख़ुद को व्यस्त दिखाती राधिका उसकी सांसो को महसूस कर रही थी । शांतनु आगे बढ़ा और कुर्सी को सीधा करते हुए बोला "राधिका तुम मेरा प्यार, मेरा जीवन , तुम यहीं हो ,क्या तुम्हें पता था कि मैं यहाँ रहता हूँ मेरा फोन नम्बर कहाँ से मिला तुम कहाँ चली गई थी मैंने तुम्हें सब जगह ढूंढा तुम नहीं मिली फिर मैं वो शहर छोड़ कर यहाँ चला आया व्यापार किया और सफल रहा । मगर तुम तुम यहाँ कैसे "

राधिका ने धीरे से कहा "शांतनु एक ही सांस में इतने सारे प्रश्न ,इतने तो मैंने तुमसे अलग होने के बाद भी नहीं सोचे।

शांतनु हमारा मिलना न मिलना ईश्वर पर था वरना मैं भी उतने ही साल से इसी शहर में हूँ ,और वकालत कर रही हूं फिर भी नहीं टकराए और आज अगर मिलें तो एक छोटी सी गुजारिश के लिए । शांतनु अगर हमारा मिलन, हमारी तकदीर में होता तो हम जरूर मिलते । तुम गौरी के हिस्से का प्यार थे जिस पर मैंने अनाधिकृत अधिकार कर लिया था ।  शांतनु उसको उसका अधिकार एक पति के रूप में पूर्ण समर्पण भाव से दे दो । उसमें मुझे ढूंढना बन्द करो, मैंने अपनी राह चुन ली मैं बहुत आगे निकल गई हूं और तुमसे भी ये ही उम्मीद करती हूं कि अतीत से बाहर आकर वर्तमान का सम्मान करो ।

राधिका तो हमेशा से ही प्रेम का स्रोत्र रही है । गौरी मेरी बहन समान है आज वो आई थी तुम्हें स्वयं से मुक्त करने, उससे बात करने के बाद मुझे लगा कि वो तो मीरा है जो तुम्हारे लिए विष भी पीने को तैयार है । राधा तो मोहन से दूर हुई थी मगर मीरा तो अमर हो गई थी ।

शांतनु जाओ अब किसी मीरा को विष न पीना पड़े जा कर उसे संभालो । बस मैं अपने प्रेम का यही प्रतिदान माँगती हूँ तुमसे " कहते हुए राधिका ने धीरे से शांतनु का हाथ सहला दिया ।

शांतनु उठा और आगे बढ़ कर बोला राधिका आज मैं अपराध बोध से मुक्त हो गया बहुत भाग्यशाली हूँ मैं कि मुझे तुम सी दोस्त व गौरी सी पत्नी मिली

 " बहुत बहुत धन्यवाद हमारा जीवन बचाने के लिए मैं कल फिर गौरी के साथ आऊंगा तुम्हें मिठाई खिलाने" कहते हुए शांतनु राधिका के ऑफिस से बाहर निकल गया ।



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