पड़ाव
पड़ाव
"आज बहुत थक गई हूं सुनो एक कप चाय आज तुम बना कर दे दो मुझे, ताकि उठने की हिम्मत जुटा कर खाना बनाने की तैयारी कर सकूँ" कार्यालय से लौटी सुमन कहते हुए निढाल बिस्तर पर लेट गई ।
राजन के लिए अप्रत्याशित बात थी चौंक गया ,उसने तिरछी नजर से माँ को देखा चेहरे पर गुस्से के भाव दिख रहे थे । वो कमरे में गया और जोर से बोला "क्या है ये सब ऐसा कौन सा पहाड़ तोड कर आ रही हो तुम जो चाय मैं बनाऊं "। आज सुमन ने मन में ठान लिया था कि चाय तो राजन को बनाकर देनी पड़ेगी वरना आज शाम खाने की छुट्टी , आखिर कब तक बाहर व घर के कामों में ख़ुद को पीसती रहेगी । अब उम्र के मुकर्रर पड़ाव पर पहुँच रही है वो शरीर थक जाता है आखिर समझना होगा सबको कि मैं मशीन नहीं हूं । बिना कुछ कहे सुमन मुँह फेर कर लेट गई , अब तो राजन को कुछ समझ नहीं आया वो भुनभुनाता बाहर माँ के पास बैठ गया । माँ की बड़बड़ाहट शुरू हो गई थी ,असहाय राजन को कुछ समझ नहीं आ रहा था । सुमन को आज बेटी की बहुत याद आ रही थी जो उसे अक्सर ही समझाती थी "कि माँ अपने मूल्यों को पहचानों आप ही तो कहती हो जब तक बच्चा रोता नहीं माँ भी दूध नहीं पिलाती तो आप स्वयं क्यों नहीं समझती हो आपको भी आराम की जरूरत है । अपना समय निश्चित करो माँ वरना आपको आगे बहुत परेशानी होने वाली है" । सोचते सोचते सुमन की आँखों से पानी बह चला हाँ पानी ही तो है जब इनको कोई पौंछने वाला न हो तो आँसू कैसे कह दूं आँसू तो कीमती भी हो सकते हैं सोचते सोचते नींद की आगोश में खो गई सुमन । रात गहरा गई थी माँ जी ने झाँक कर कमरे में देखा बत्ती बन्द थी वो बड़बड़ाती रसोई घर कि तरफ चल दी ,इतने सालों में सुमन ने कभी कोई काम करने को न कहा था तो अब रसोई का ए बी सी भी याद नहीं कि क्या कहाँ रखा है उन्होंने खिजते हुए राजन को बुलाया और बोली मुझे तो कुछ पता नही कहाँ क्या रखा है , इससे तो तू चाय ही दे देता तो वो महारानी पी कर काम में तो लग जाती अब कैसे शुरू करूँ , राजन ने कनखियों से माँ को देखा और सोचा "न आप गुस्से में बड़बड़ाती न ये सब होता मैं चाय बना लेता सब पी लेते उसका सहयोग हो जाता और घर में काम व्यवस्थित" । राजन ने चुपचाप चाय का पानी चढ़ा चाय बनाई एक कप माँ को दे अपना व सुमन की चाय का कप ले कमरे में पहुँचा बत्ती जलाई तो थकी हुई सुमन को देख प्यार आ गया धीरे से उसके माथे को सहलाते हुए उसने पुकारा सुमन उठो चाय ले लो अब तुम्हारी थकान थोड़ी दूर हो गई होगी । सुमन अचकचा कर उठी आश्चर्य से राजन को देख मन की खुशी को दबा नहीं पाई और बहुत प्यार से "थैंक यू" बोलते हुए प्याला थामा तो राजन के हाथ से हाथ छू गया जो उसे आज बहुत ही सुखद लग रहा था , मन का भाव कह रहा था कि वो राजन के गले लग जाये बस एक प्याला चाय इतनी खुशी दे सकता है सुमन ने कभी सोचा न था सारा तनाव जैसे एक झटके में छूमंतर हो गया । राजन बोला" माफ करो सुमन सच में मुझे तुमसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था । मगर आज तक तुमने कभी कोई काम करने को कहा ही नही, हमेशा पहले से पहले कर देती रही हो, तो मैं अकस्मात समझ नहीं पाया । मगर जब तुम्हें थके हुए सोते देखा तो समझ आया । "विलक्षणा ठीक कहती है कि "पापा माँ का ध्यान रखिए वो कहती कुछ नहीं है पर अब थकने लगी हैं" कहते हुए राजन ने प्यार से माथे पर चुम्बन जड़ दिया। सुमन भाव विभोर थी कि देर से ही सही उसने उचित निर्णय ले कम से कम इस बात पर मोहर लगा दी कि घर में सभी का सहयोग जरूरी है ।
