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Ekta Rishabh

Romance

4.0  

Ekta Rishabh

Romance

प्रेम के पंछी

प्रेम के पंछी

8 mins
558


"सोनू, जल्दी कर मुझे लेट हो जायेगा बेटा.. ! "

"हाँ, पीसी माँ आया..."

"अच्छा देख मैंने नास्ता टेबल पे रख दिया है अच्छे से खा लेना.. और डब्बा भी यही रखा है पूरा ख़तम करना और फिर से कैंटीन मे मत खाने लगना!"

"क्या पीसी माँ? रोज़ रोज़ डब्बा दे देती हो अब मैं बच्चा नहीं हूँ जो डब्बा ले के कॉलेज जाऊ!" चुप कर देख मोनू को घर के खाने को तरस गई है! अच्छा मैं निकल रही हूँ गेट बंद कर देना ठीक से चल बाय... और राधा निकल गई अपनी 9.05 की मेट्रो पकड़ने!

ये रोज़ सुबह की हलचल थी कृष्णा निवास की.. कृष्णा निवास जहाँ रहते थे सोनू, मोनू और उनकी प्यारी पीसी माँ यानि की राधा ! राधा के माता पिता का निधन जब वो दस बारह साल की रही होंगी तब हो गया था ! एक बड़े भाई थे उम्र मे राधा से दस वर्ष बड़े रहे होंगे तो रिश्तेदारों ने माँ बाबूजी के जाने के बाद उनकी शादी करवा दी थी!

जब भाभी आयी तो अपने ममता के आँचल मे समेट लिया राधा ने बहुत प्यार दिया उस अनाथ को! समय से सोनू मोनू हो गए तो घर खुशियों से भर गया ! लेकिन भाग्य से ज्यादा किसको मिला है, क्रूर काल भैया भाभी को अपने साथ ले गया और पीछे रह गए बिलखते राधा और सोनू मोनू!

एक बार फिर अनाथ हो गई राधा ! किसी तरह समेटा बच्चो को और खुद को ! भैया के ऑफिस मे नौकरी लग गई तो जिंदगी भी धीरे धीरे ही सही पटरी पे लौट आयी !

"उफ़ आज फिर लेट हो गई मैं... कहीं मेट्रो निकल ना जाये.. ! ये मेरे बाल भी ना जाने क्यूँ इतने सिल्की है एक पिन एक रबर नहीं टिकता इनपे...! "खुद से बातें करती राधा जल्दी जल्दी कदम बढ़ाती स्टेशन पे पहुंच गई !

ऑफिस टाइम पे कितनी भीड़ हो जाती है ट्रैन मे चढ़ना भी एक किला फ़तेह करने के बराबर है और खुद ही मुस्कुरा दी सोच कर! किसी तरह चढ़ अपने पल्लू से पसीना पोछते हुई नज़रे खाली सीट को ढूंढ़ने लगी तभी कोने मे एक चेहरा पहचाना सा लगा अपने लैपटॉप मे कुछ काम करते हुई, एक पल लगा पहचाने मे...और झट से पलट गई राधा ! वही तो है," थोड़ा बदल सा गया है, कलमो पे थोड़ी सफेदी सी आ गई है और शरीर भर सा गया है, बदल तो वो खुद भी गई थी.. "!

कैसे भूल सकती है, अपने वासु को कनखियों से देखा फिर से राधा ने.. हाँ वही तो है..." वासु उसका वासु.... "|

"आप यहाँ बैठ जाइये आंटी," तभी एक लड़के ने अपनी सीट राधा को देते हुई कहा और एक साथ कई नजरें राधा की ओर उठ गई उनमे वासु की नज़रे भी थी... !

राधा सकुचाहट से भर उठी ओर उस खाली सीट पे बैठ गई.. !

दो सीट के बाद ही वासु बैठा था ! वासु की नज़रो को राधा महसूस कर रही थी! दिल की धड़कने बेकाबू हो रही थी..,  ये क्या हो रहा है? मैं कोई कॉलेज जाने वाली लड़की नहीं रही... खुद को समझाती रही राधा तभी उसका स्टेशन आ गया ! जल्दी से ट्रैन से उतरी बहुत जी चाहा एक बार पलट के देख ले वासु को पर हिम्मत नहीं हुई!

"राधा राधा रुको तो सही," पीछे से आवाज़ आयी तो कदम खुद ब खुद रुक गए... ! ये वासु ही था, उसी ने आवाज़ लगाई थी ! इतने सालो बाद भी लोगो की भीड़ मे भी ये आवाज़ राधा पहचान गई! कदम रुक गए ओर धड़कने तेज़ बहुत तेज़ हो गई.. "कैसी हो राधा? मुझे पहचाना नहीं ऐसा तो हो नहीं सकता, फिर बिना मिले कैसे जा रही हो !" वाशु ने राधा से पूछा... !

"नहीं तो !" सकुचाते हुई राधा ने कहा, कैसे हो?

"सारी बातें यही करोगी अगर समय हो तो कहीं बैठ के बातें करते है वाशु ने कहा.. ! " आज तो नहीं फिर कभी आज एक मीटिंग थी राधा ने किसी तरह अपने आप को रोका !

" ठीक है फिर ये मेरा कार्ड लो जब फ्री होना मुझे कॉल कर देना" ओर हाथों मे कार्ड थमा वाशु चला गया! भारी कदमो से मुट्ठी मे कार्ड दबाये राधा ऑफिस आ गई, आज किसी भी काम मे मन नहीं लग रहा था... मन बार बार पीछे की ओर भाग रहा था....|

अल्हड़ चंचल सी राधा अपने भाई भाभी की लाडली किसी बात की कमी ना होने दिया था दोनों ने! कॉलेज के वो दिन कैसे मस्ती भरे थे, सहेलियों के साथ कैंटीन मे घंटो गप्पे मरना, क्लास बंक कर सिनेमा देखने जाना ! इन सब के बीच एक नज़र थी जो राधा को ताकती रहती थी.. लेकिन अल्हड़ राधा को इसकी फ़िक्र कहा थी, वो तो संजना, राधा की पक्की सहेली ने इशारा किया तब दोनों की नजरें टकराने लगी! ना जाने कब नज़रो ही नज़रो मे एक दूसरे को दिल दे बैठे दोनों... सबकी नज़रो से छुप छुप कर पार्क मे मिलते!

एक निर्दोष प्यार जिसमे उँगलियाँ भी ना कभी टकराई...,! एग्जाम ख़त्म होते ही एक अच्छी सी नौकरी फिर भैया से उनकी लाडली बहन का हाथ भी तो मांगना है| बारात ले कर आऊंगा तुम्हे लेने, जब वासु कहता तो शर्म सी लाल हो जाती थी राधा!

भैया भाभी की खबर सुन आया था वासु, कॉलेज के सभी दोस्तों की साथ डबडबाई नज़रो सी ताकती रह गई थी राधा... सोनू मोनू को कलेजे से लगाए, "जैसे कह रही हो जिससे हाथ मांगने आते वो निर्मोही तो चले गए, अब क्या करोगे वासु तुम..."?

"तेरहवीं के बाद संजना से खबर भिजवा तुम्हे बुलवाया था घर पे.. वासु अब मैं तुम्हारा साथ नहीं चल सकती हमराही बन".. !

"ऐसा मत बोलो राधा मैं हूँ ना साथ सब ठीक कर दूंगा!"

"नहीं वाशु ! अब मैं वो "अल्हड़ राधा नहीं रही "| अब इन बच्चों की माँ बन गई हूँ ! भैया भाभी के जाने के बाद ये मेरी जिम्मेदारी है इन्हे मैं अनाथ नहीं होने दूंगी!"

"तुम्हारे परिवार के भी कुछ सपने होंगे कुछ अरमान होंगे.. अपनी होने वाली बहु से एकलौते बेटे हो तुम ! मुझे माफ़ कर दो."..वासु ने बहुत मिन्नतें की पर अपने निर्णय पे टिकी रही राधा!

जाते जाते वासु ने राधा के माथे पे अपने प्यार की निशानी छोड़ दी ! दोनों प्यार के पंछी अपने अपने जिम्मेदारीयों को पूरा करने निकल पड़े..और आज इतने सालो बाद इस तरह वासु मिलेगा कभी सोचा भी ना था राधा ने!

"दिल को बहुत समझाया राधा ने फिर भी वो नहीं माना ...", हेलो वासु मैं राधा, मैं इंतजार ही कर रहा था तुम्हारे कॉल का राधा, कल कनाड प्लेस मे मिले वासु ने कहा तो इंकार ना कर सकी राधा ! अब दोनों फिर से मिलने लगे.., तुम बिलकुल नहीं बदली वही चंचल ऑंखें, सुन्दर बाल आज भी नहीं बंध पाते बंधन मे, वासु ने कहा तो शर्मा गई राधा!

"वाशु, तुम्हारी पत्नी जानती है की तुम मुझसे मिलने आते हो?" एक दिन राधा ने पूछा, तो जोर से खिलखिला उठा वासु.." कौन सी पत्नी? मैंने शादी की ही नहीं..दिल मे जो जगह तुम्हे दे दी थी फिर किसी को दे ही नहीं पाया!" अचरज से ताकती रह गई राधा... :मुझसे शादी कर लो राधा, मैं आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ.." वाशु ने कहा!

"अब ये नहीं संभव एक दो सालो मे मोनू की शादी होंगी, सोनू बड़ा हो रहा है ओर मेरी भी उम्र हो गई है".. ये कह राधा ने बात टाल दी!

एक दिन रात को मोनू का कॉल आया.. "हेलो पीसी माँ ! कैसी है आप? ठीक हूँ, तू बता कैसी है और कब ज्वाइन करना होगा कंपनी मे .? बस बस पीसी माँ कितना सवाल करोगी आप, "मोनू ने हॅसते हुए कहा !

आपसे एक बात करनी थी पीसी माँ, मोनू ने गंभीर हो के कहा ! क्या बात बेटा? माँ देखो आप गलत मत समझना वो ऋतू है ना मेरी सहेली उसने आपको किसी के साथ कॉफ़ी हॉउस मे देखा था कौन है वो? पीसी माँ कुछ ऐसा है जो आप मुझे बताना चाहती हो!

मोनू की बात सुन राधा को कुछ समझ ही नहीं आया क्या जवाब दे फिर कुछ पल रुक कहा, देख बेटा तू कुछ गलत मत समझना हम तो एक दोस्त की तरह दुख सुख बाँट लेते है!" ठीक है पीसी माँ, मोनू ने कहा मैं दो -तीन दिन मे आ रही हूँ फिर बात करते है", कह फ़ोन रख दिया!

दो दिन बाद मोनू आयी... आते ही झुक गई अपनी पीसी माँ के चरणों मे.." अरे उठ ये मेरे पैरों को क्यूँ पकड़ लिया राधा ने अपने पैर छुड़ाते हुए कहा, देखा तो मोनू रो रही थी.. क्या हुआ बेटा तुझे?"

"पीसी माँ आपने हम दोनों के लिए इतना बड़ा त्याग किया संजना बुआ ने मुझे सब कुछ बता दिया है ! अब एक पल की भी देरी नहीं होंगी आप इसी वक़्त मेरे साथ चलेंगी", मोनू ने हाथ पकड़ राधा को कहा ! "ये क्या हो रहा है? कोई मुझे भी तो बताओ.." सोनू ने पूछा!

तू चुप कर मोनू ने उसे डांटा ओर अपनी पीसी माँ को रूम मे ले गई सोनू बेचारा उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.. ! थोड़ी देर बाद रूम खुला तो राधा दुल्हन के रूप मे थी !

"बेटा ! अब बहुत देर हो गई है.., आपको मेरी कसम पीसी माँ अब एक शब्द नहीं पहले ही बहुत देरी हो चुकी" है, मोनू ने पीसी माँ को रोक कर कहा ! सोनू ने अपनी पीसी माँ को इस रूप मे देख चौक गया आपकी शादी है ओर किसी ने मुझे बताया भी नहीं... सोनू की भोलेपन पे राधा ओर मोनू हॅंस पड़े!

कैब से सब मंदिर पहुँचे वहां संजना ओर उसके पति ने सारी तैयारी कर ली थी! वाशु भी वही दूल्हा बन अपनी राधा की राह देख रहा था ! दोनों की नजरें मिली, आँखों मे आयी नमी पोछ दोनों मुस्कुरा दिए!

दोनों प्यार के पंछी फिर से मिल रहे थे अब कभी ना जुदा होने के लिए ! सबकी ऑंखें भर आयी.. प्रेम मे त्याग और तपस्या का ऐसा अनोखा रूप देख कर !

चांदनी की बारात में, पंडित जी ने फेरे करवाये... हाथों में हाथ ले, तारों को साक्षी मान दोनों ने कसमें खाई.. फिर कभी ना जुदा होने के लिए!




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