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Vandana Bhatnagar

Tragedy

4.9  

Vandana Bhatnagar

Tragedy

घातक कदम

घातक कदम

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मम्मी जल्दी से बाहर आओ देखो वर्मा अंकल के घर के बाहर बहुत भीड़ लगी है, पुलिस भी आई हुई है ऐसा कहकर नितिन ने अपनी माँ को आवाज़ लगाई। नितिन की आवाज़ सुनकर रश्मि दौड़ती हुई बाहर आई और वहाँ भारी भीड़ एवं पुलिस को देख कर रश्मि ने नितिन को घर के अंदर भेज दिया एवं स्वयं वर्मा जी के घर की तरफ चल दी। जैसे ही वो वर्मा जी के घर में घुसी वहाँ का दृश्य देखकर उसकी चीख निकल पड़ी। वर्मा जी पंखे से झूल रहे थे उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। रश्मि मिसेज वर्मा के पास गईं जिनका रो रो कर बुरा हाल था। वह रोते हुए कह रही थीं कि वर्मा जी अपने ऊपर लगे झूठे आरोप को बर्दाश्त नहीं कर पाए और यह आत्मघाती कदम उठा लिया।

पुलिस ने घर में घुसते ही भीड़ को हटाया और लाश को उतार कर पोस्टमार्टम के लिए ले गए। रश्मि भी उनके घर से बाहर आ गई। बाहर लोग आपस में बातें कर रहे थे। मिसेज़ शर्मा कह रहीं थी कि मियां बीवी की बनती ही नहीं थी और अपनी पत्नी से परेशान होकर ही वर्मा जी ने ऐसा कदम उठा लिया। तभी मिसेज़ लाल बोलीं- आप नहीं जानती मिसेज़ वर्मा का अपने कलीग से चक्कर चल रहा है और यही लड़ाई की जड़ थी। वह थोड़ा आगे बढ़ी तो मिस्टर माथुर की आवाज़ कानों में सुनाई दी, वो कह रहे थे- वर्मा जी तो बहुत सज्जन इंसान थे लेकिन अपने लड़के के चाल चलन से बहुत परेशान थे आए दिन कोई ना कोई फसाद खड़ा ही रहता था। उनकी जान को। शायद परेशानी में ऐसा कदम उठा लिया। रश्मि थोड़ा और आगे चली तो उसे मिसेज़ गुप्ता मिल गईं जो बता रहीं थी कि मिस्टर वर्मा ने गबन कर लिया था और जब जेल जाने की बात आई तो उन्होंने सुसाइड कर लिया।

पता नहीं गलत काम करने से पहले लोग क्यों नहीं सोचते।

अब रश्मि का वहाँ टिकना दूभर हो गया था और वह तेज़ कदमों से चलकर अपने घर आ गई। रश्मि के घर आते ही नितिन ने उससे भीड़ के बारे में पूछा तो उसने उसे वर्मा जी के सुसाइड की बात बता दी और बोली- वर्मा जी के परिवार पर भारी विपत्ति आ गई है और लोगों को मखौल सूझ रहा है। एकाध घंटे बाद रश्मि के पति सुशांत भी ऑफिस से आ गए।

सुशांत के आते ही नितिन ने उन्हें वर्मा जी के सुसाइड की बात बताई। ये सुनकर सुशांत एकदम हक्के बक्के रह गए और बोले कल ही तो वर्मा जी अपने ऑफिस की प्रॉब्लम मेरे साथ डिस्कस कर रहे थे और कह रहे थे कि साज़िशन उन्हें फंसाया जा रहा है। वर्मा जी तो निहायत शरीफ आदमी थे पर शायद अपने ऊपर लगे झूठे वित्तीय घपलों के आरोप को बर्दाश्त ना कर सके।

रश्मि बोली पता नहीं लोग सुसाइड क्यों करते हैं पहले तो इक्का-दुक्का ही सुसाइड की घटनाएँ सुनने को मिलती थीं पर अब तो आए दिन अखबार में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती रहती हैं। बाप ने मोबाइल नहीं दिलाया तो बच्चे ने सुसाइड कर लिया, नंबर कम आए, परीक्षा में फेल हो गए तो सुसाइड। टीचर ने डाँट दिया तो सुसाइड, मनपसंद साथी ना मिला तो सुसाइड। ना जाने कितनी ही छोटी-छोटी चीज़ों से हार मान कर लोग अपनी इह-लीला समाप्त कर लेते हैं।

रश्मि की बात सुनकर सुशांत बोले पर तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो तो रश्मि बोली क्योंकि मैं इस दर्द से गुज़र चुकी हूँ और अब जब भी ऐसी घटना सुनने में आती है तो मेरा ज़ख्म हरा हो जाता है। रश्मि की बात सुनकर सुशांत एकदम चौंक पड़े और बोले पहेली मत बुझाओ ठीक से बताओ क्या कहना चाहती हो। तब रश्मि बोली- यह बात मैंने आपको कभी नहीं बताई पर आज इस बात का ज़रूर पर्दाफाश करूँगी।

रश्मि बोली- बात उन दिनों की है जब मैं सातवीं कक्षा में थी और मेरी अनु दीदी दसवीं कक्षा में। अनु दीदी का मन पढ़ने में कम ही लगता था। दीदी के प्री बोर्ड शुरू होने में कुछ ही दिन रह गए थे पर उनकी पढ़ाई ढीली-ढाली ही चल रही थी। मम्मी ने दीदी को पढ़ाई को लेकर ज़रा ज़ोर से डांट दिया था दीदी उस समय तो कुछ नहीं बोलीं लेकिन थोड़ी देर बाद अपनी सहेली से नोट्स लेकर आने की बात कहकर घर से बाहर चली गईं।हमारे घर के पास ही नहर थी और जाकर सीधे उस में छलांग लगा दी। पड़ोस में रहने वाली शर्मा आंटी ने उसे छलांग लगाते देख कर शोर भी मचाया। कुछ लोग उसे बचाने के लिए नहर में कूदे भी पर कुछ हासिल ना हुआ। शर्मा आंटी ने ही घर आकर अनु दीदी के नहर में डूबने की सूचना हमें दी थी। तभी पापा को भी फोन करके बुलाया। पापा ने भी गोताखोरों की मदद से उसे ढूंढा पर जब तक उसे खोजा गया तब तक वह दम तोड़ चुकी थी।

अनु का शव मिलते ही घर में कोहराम मच गया। मम्मी का तो रो-रो कर बुरा हाल था। वह तो सिर पीट पीटकर उस मनहूस घड़ी को कोस रहीं थी जब उन्होंने अनु दीदी को पढ़ाई के लिए डांटा था पर आस पड़ोस के लोग तो मम्मी को ऐसी नज़र से देख रहे थे जैसे वो हत्यारिन हों। कोई कह रहा था अरे बच्चों को प्यार से समझाया जाता है इस तरह डांट कर नहीं, कोई कह रहा था अरे बच्चा ही तो थी पढ़ लेती जब समझ आ जाती एकदम से कलैक्टर तो बनने से रही थी, कोई कह रहा था पता नहीं सही बात क्या है जो उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा। लोग हमारे दु:ख में शरीक होने के बजाय हमारे ज़ख्मों पर नमक छिड़कने हीं आए थे। रश्मि, सुशांत से बोली आप ही बताओ क्या माँ-बाप का फ़र्ज़ केवल अपने बच्चों की सुख सुविधा का ध्यान रखना ही है उन्हें कोई बात समझाने का अधिकार नहीं है ? अगर मम्मी ने दीदी को डांटा था तो केवल उसके सुनहरे भविष्य की कामना को लेकर।

बच्चे पढ़-लिखकर सम्मान से अपनी ज़िंदगी गुज़ारते हैं तो माँ-बाप को आंतरिक खुशी मिलती है। उन्हें कुछ नहीं चाहिए होता है अपने बच्चों से। बस सारा समझने का फेर था। दीदी तो चल बसीं पर असली मरण हमारा हो गया। अब मौहल्ले वाले हमें बड़ी उपेक्षित भरी नज़रों से देखा करते थे। पापा को अपने मिलने वालों से और मुझे अपने स्कूल के बच्चों से उल्टी सीधी बातें सुनने को मिलती थीं। हमें बिना किसी कसूर के कसूरवार घोषित कर दिया गया था। हमारे रिश्तेदार भी कहा करते थे कि अब रश्मि की शादी में भी बहुत अड़चन आएगी क्योंकि लोग ऐसे घर में रिश्ता नहीं करना चाहते जहाँ किसी ने सुसाइड कर रखा हो। इन सब बातों से परेशान होकर पापा ने अपना ट्रांसफर लखनऊ करा लिया।

रश्मि आगे बोली मम्मी तो अब बिल्कुल चुप रहने लगी थीं। उन्हें बहुत गहरा सदमा लगा था। मुझसे तो उनकी उदासी देखी नहीं जाती थी। मैं जानबूझकर ऐसे काम करती जिससे मम्मी मुझे डांटे पर अब मम्मी कुछ नहीं कहती थीं। पापा भी उन्हें बहुत समझाने की कोशिश करते थे पर कोई फायदा नहीं होता था। अंदर ही अंदर मम्मी को ग़म खाये जा रहा था। दीदी के गुज़र जाने के लगभग दो महीने बाद ही मम्मी को हार्ट फेल हो गया और वह भी हमसे जुदा हो गईं। दीदी के एक गलत कदम की वजह से दो दो ज़िदगियां कुर्बान हो गईं। रश्मि की बात सुनकर सुशांत बोले तुमने तो अपने मन में बहुत पीड़ा छुपा रखी थी। रश्मि की बात से सहमति जताते हुए सुशांत बोले इतनी मुश्किल से हमें मानव योनि प्राप्त होती है और हम उसे यूँ ही गवा दें, यह तो कोई बात ना हुई। कोई भी समस्या हमारी ज़िंदगी से बड़ी नहीं हो सकती। समस्या से भागना कोई हल नहीं है बल्कि उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए।

आत्महत्या तो कायरता की निशानी है एवं जघन्य अपराध है। मनुष्य ही अगर अपने विवेक से काम नहीं लेगा तो क्या जानवर लेंगे ? नितिन जो अभी केवल सातवीं कक्षा में है वह भी सारी बातें ध्यान से सुन रहा था सारी बातें सुनकर वह रश्मि से लिपट गया और बोला मम्मी आप जितना मर्ज़ी मुझे डांट लेना मैं कभी आत्महत्या नहीं करूँगा। यह बात सुनकर रश्मि की आँखों से अश्रु धारा बह निकली और इस अश्रुधारा के साथ उसके मन की सारी पीड़ा एवं डर दोनों ही बाहर आ गए थे।


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