साक्षात्कार
साक्षात्कार
कर्मपथ का तू मुसाफिर
चलना तुझे अकेला ही है
साथ कोई न चले मंज़िलों को
यह हसरतों का मेला ही है
आज अपनी ही लिखी पंक्तियों की सार्थकता नजर आ रही थी नमिता को। बहुत मुश्किलों का सामना कर आखिर इस मुकाम पर पहुँची थी। आज हुए साक्षात्कार के बाद उसे लग रहा था मानो दुनिया मुट्ठी में आ गई थी उसकी। याद आ रहे थे साक्षात्कार समिति के कठोर प्रश्न जो कुछ पल के लिए ऐसा लगा मानो युधिष्ठिर के समक्ष यक्ष प्रश्न रख दिए गए हों।
"हाँ तो मिस नमिता, आपको इस नौकरी के लिए किस आधार पर चुना जाए?"
"आदरणीय, मेरी शैक्षणिक योग्यता आपके द्वारा स्थापित सभी मापदंडों को पूरा करती है।"
"आप एक दिव्यांग हैं और पोलियो की वजह से आपकी एक टाँग बहुत कमजोर है, क्या आपको लगता कि इस अस्पताल में एक नर्स के नाते आप मरीज़ों की सेवा जैसा काम पूरी ईमानदारी से कर पाएंगी?"
"आदरणीय, मैंने इस कमज़ोरी के साथ बचपन से संघर्ष किया है। सबके द्वारा मज़ाक उड़ाए जाने के बावजूद मेरे माता पिता ने मेरा सहयोग दिया। पिछले साल एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद भी मैंने अपने शुरू किए नर्सिंग के कोर्स को पूरी लग्न से पूरा किया है।"
"पर यह बहुत मेहनत का काम है। दिन रात कभी भी ड्यूटी पर आना पड़ सकता है।"
"तो क्या हुआ। शारीरिक कष्टों से कैसे लड़ना मैं अच्छी तरह जानती और यही मुझे मरीज़ों की सेवा पूरी निष्ठा से करने में मदद करेगा।"
अब इस के बाद और सवालों की गुंजाईश ही नहीं थी।..।।