जहाँ चाह ,वहाँ राह
जहाँ चाह ,वहाँ राह
"माँ ,माँ कहाँ हो तुम ?",चुन्नी ने घर में घुसते ही अपनी माँ निर्मला को आवाज़ लगाई।
रसोई से बाहर आते हुए निर्मला ने मुस्कुराते हुए पूछा ,"क्या हुआ ? कहाँ आग लग गयी ?जो इतनी ज़ोर -ज़ोर से आवाज़ लगा रही है। "
"अरे माँ ,आग तो अब लगेगी। बड़ी मास्टरनी जी ने इस बार गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि आपको बनाया है। यह रहा आमंत्रण पत्र। बड़ी मास्टरनीजी कल आपको आमंत्रित करने के लिए खुद आएँगी । अब मेरी सारी सहेलियों के दिल में आग लगेगी न। ",चुन्नी ने एक ही साँस में अपनी बात कहकर ख़त्म की।
"लेकिन मुझे ,क्यों ?",निर्मला ने आश्चर्य से पूछा .
"ये तो आप उनसे कल खुद पूछ लेना .लेकिन माँ बात तो बहुत ही ख़ुशी की है .आज तक किसी भी लड़की की मम्मी को नहीं बुलाया गया है .",चुन्नी ने गर्व से कहा .
अगले दिन जब चुन्नी स्कूल से लौटी ,तो उसकी प्रधानाध्यापिका भी उसके साथ निर्मला को आंमत्रित करने आयी .
" मेरे जैसी १० वीं पास महिला को मुख्य अतिथि बनाना ;आपके बड़प्पन की जितनी तारीफ की जाए ;उतनी ही कम है .",निर्मला ने विनम्रता से कहा .
"निर्मला जी आप जो कर रही हैं ,वह कई पढ़ी -लिखी महिलाएं भी नहीं कर पाती .आप अब तक लगभग २०० महिलाओं को परिवार कल्याण के बारे में जानकारी ही नहीं ;बल्कि उन्हें इसके लिए साधन उपलब्ध करवाने में भी मदद कर चुकी हैं .",प्रधानाध्यापिका ने कहा .
" अरे ,वह तो हम महिलाएं जब बातें करती हैं तो उन्हें थोड़ा सा समझा देती हूँ .स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाकर गर्भनिरोधक गोलियां दिलवा देती हूँ .इसमें डॉक्टरनी मैडम भी तो मदद करती हैं .मुझे जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दूसरी महिलाओं को उसका सामना न करना पड़े ;बस इतनी सी कोशिश करती हूँ .", निर्मला ने विनम्रता से कहा .
"निर्मला जी फलों से लदे हुए पेड़ हमेशा ही झुके हुए होते हैं .महान लोग हमेशा विनम्र ही होते हैं .आपको पता है लगभग १३ % महिलाएं गर्भनिरोधकों के अभाव में अनचाहा गर्भ धारण कर लेती हैं .बच्चों में अंतर न रख पाने के कारण हमारे देश में लगभग हर घंटे ५ महिलायें प्रसव पूर्व ,प्रसव के दौरान या प्रसवोत्तर दम तोड़ देती हैं .आपने हमारे स्कूल में मिड डे मील बनाने के लिए आने वाली रुक्मणि को भी अस्थायी गर्भनिरोधकों के बारे में बताया था और जब उसके पति ने लाकर देने से मना कर दिया ;तब आपने स्वयं उसे गर्भनिरोधक गोली लाकर दी .", प्रधानाध्यापिका ने निर्मला को बताया .
"मैडम जी ,आपकी प्रशंसा की बहुत ही आभारी हूँ .मैं तो बस इतना जानती हूँ कि जब बच्चा हम औरतों को पैदा करना है ;तो अपने और अपने बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के बारे में हमें ही आगे बढ़कर कदम उठाना होगा .",निर्मला ने कहा .
"चलिए ,अब मैं निकलती हूँ .उम्मीद करती हूँ कि गणतंत्र दिवस पर आप से दोबारा मुलाक़ात होगी .",प्रधानाध्यापिका ऐसा कहते हुए लौटने के लिए खड़ी हो गयी थीं .
"जी ,बिलकुल .",निर्मला ने अभिवादन करते हुए ,प्रधानाध्यापिका को विदा किया .
प्रधानाध्यापिका कि बातों ने निर्मला को उसके अतीत के गलियारों में पहुंचा दिया था .
" मैडम सही तो कह रही थी ;मुझे खुद को भी तो अस्थायी गर्भनिरोधक जैसी छोटी सी चीज़ के लिए कितना कुछ झेलना और सहना पड़ा था .",निर्मला ने अपने आप से कहा .
जब १८ वर्षीय निर्मला कि शादी हुई और शादी के एक वर्ष के भीतर ही निर्मला एक बेटे के माँ बन गयी और उसकी सास एक वर्ष बाद ही निर्मला पर दूसरे बच्चे के लिए दबाव बनाने लगी .तब निर्मला को महसूस हुआ कि अभी तो वह एक बच्चे को ही नहीं सम्हाल पाती और दूसरा भी हो गया तो वह क्या करेगी ? वह अपनी समस्या को लेकर झिझक के कारण बात भी नहीं कर पा रही थी .निर्मला को मंजिल पता थी ;लेकिन उस तक कैसे पहुंचा जाए ;यह नहीं पता था .
हम कितना ही आधुनिक होने का दम्भ भरें ,लेकिन गर्भनिरोध ,कंडोम ,माहवारी जैसे शब्द अभी भी टैबू समझे जाते हैं और इन विषयों पर बात करना ,चर्चा करना बहुत ही मुश्किल है .ऐसा कुछ निर्मला के साथ भी हो रहा था .
लेकिन कहते हैं न ;जहाँ चाह ,वहां राह .ऐसा ही निर्मला के साथ भी हुआ ;जब उसकी मुलाकात आशा वर्कर रेखा से हुई .रेखा ने उसे गर्भनिरोध साधनों के बारे में बताया .निर्मला ने पहली बार माला डी का नाम सुना .लेकिन नाम सुनने से तो गोली मिल नहीं सकती थी ;उसे रास्ता मिल गया था ;लेकिन अभी चलना शुरू करना था .अपनी समस्या का समाधान खुद ही ढूंढना पड़ता है .
आशा वर्कर मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य महिला कार्यकर्ता होती हैं जो गांव में महिलाओं के सुरक्षित प्रसव और बच्चे के सुरक्षित जन्म के तरीके और उपायों को बताने और जागरूकता फैलाने का काम करती हैं.रेखा भी ऐसी ही एक वर्कर थी।
रेखा ने निर्मला को कई गर्भनिरोधक उपायों जैसे कंडोम ,कॉपर टी ,माला डी आदि के बारे में बताया। निर्मला के सामने अब समस्या यह थी कि वह ये साधन कैसे प्राप्त करें। अपनी सास से तो इस बारे में बात कर ही नहीं सकती थी ;उनके अनुसार तो बच्चा ईश्वर की देन होता है और उस देन को अस्वीकार करना ईश्वर का ही निरादर है।
अब निर्मला के सामने एक ही विकल्प था ;अपने पति से इस बारे में बात करना। निर्मला की अपने पति से बहुत कम बातचीत होती थी ,वाकई में वह तो अपने पति से अकेले तो रात में ही मिल पाती थी। उस समय भी पति को उसकी बातों में कोई रूचि नहीं होती थी। अपनी संतुष्टि करके पति घोड़े तानकर सो जाता था। अगर यह कहा जाए कि अपनी संतुष्टि के लिए ही पति उसके पास रात को आता था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
अब इन हालातों में पति से ऐसी बात करना ,निर्मला को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे शुरू करे। ऐसे ही एक रात जब निर्मला का पति उसके नज़दीक आया तो उसने कहा कि ," मुझे अभी दूसरा बच्चा नहीं चाहिए। " निर्मला के पति ने समझा कि निर्मला उसे ,उसके पति होने के हक़ से वंचित करना चाहती है।
तड़ाक की आवाज़ के साथ ,एक पुरुष आवाज़ भी सुनाई दी। "बड़ी जुबान चला रही है। चुपचाप पड़ी रह ;यह तो मेरा हक़ है। तेरे पास नहीं आऊंगा तो क्या किसी बाज़ारू के पास जाऊंगा। अगर पैसे ही खर्च करने होते तो शादी क्यों करता। " ,निर्मला के पति ने कहा।
पति के इस रूप को देखने के बाद निर्मला कुछ और कहने की हिम्मत नहीं कर पायी और चुपचाप पड़ी रही। निर्मला ने ३-४ बार कोशिश की ,लेकिन हर बार उसके पति ने थप्पड़ से उसका मुँह बंद कर दिया।
निर्मला को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बात करे ? अगर बात नहीं की तो वह पुनः गर्भवती हो जायेगी। इन्हीं विचारों में डूबी निर्मला आखिर की रोटी कुत्ते को देने के लिए गयी। निर्मला ने आज फिर रोटी मरियल से दिखने वाले कुत्ते के सामने डाली। निर्मला रोज़ ही ऐसा करती थी ;लेकिन पिछले ४-५ दिनों से एक मजबूत कद -काठी का कुत्ता आ जाता और मरियल कुत्ते को डराकर उसकी रोटी छीन ले जाता था। लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ ;जैसे ही मजबूत कुत्ता भोंकने लगा ;मरियल कुत्ते ने उससे भी तेज़ भोंकना शुरू कर दिया। आज पहली बार मरियल कुत्ते ने मजबूत कुत्ते को चुनौती दी ;उसके सामने सपर्पण नहीं किया और मजबूत कुत्ता उसकी रोटी छीनकर नहीं ले जा सका।
निर्मला को मरियल कुत्ते ने जाने -अनजाने में एक मजबूत सीख दे दी थी। उसने तय कर लिया था कि इस बार चाहे कुछ भी हो जाए ;वह अपने पति से बात करके ही रहेगी।
अगली बार जब निर्मला का पति उसके नज़दीक आया ,तब निर्मला ने फिर वही बात दोहराई। तब ही एक तड़ाक की आवाज़ सुनाई दी ; दोबारा फिर उससे भी तेज़ आवाज़ में तड़ाक की आवाज़ सुनाई दी। फिर इस बार स्त्री का स्वर सुनाई दिया ," मुझे कमजोर मत समझना। इससे भी तेज़ थप्पड़ मार सकती हूँ और जरूरत हुई तो लट्ठ भी। तुझे जो करना है कर लेना ;लेकिन मेरी बात तो सुन ले। ",निर्मला ने हाँफते हुए अपने पति से कहा।
"बोल। ",अपने गाल सहलाते हुए ,उसके पति ने धीमे से कहा।
"तेरे हक़ से तुझे दूर नहीं कर रही। बस इतना चाहती हूँ कि अस्थायी गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल करें। तू मुझे गर्भ निरोधक गोली लाकर दे। " ,निर्मला ने एक ही सांस में अपनी बात कह दी।
निर्मला के पति ने बच्चों में अंतर रखने की बात को स्वीकार कर लिया। लेकिन गोली लाकर देने से साफ़ इंकार कर दिया और कहा ,"तुझे जो करना है कर ;लेकिन मैं तुझे कुछ लाकर देने वाला नहीं । "
"गोली नहीं ला सकते ,तो तेरे लिए कंडोम ले आओ। ",रेखा द्वारा बताये गए साधनों में याद करते हुए निर्मला ने कहा।
"तू ऐसी बातें कहाँ से सीख रही है। ऐसा बोलते हुए तुझे ज़रा शर्म भी नहीं आती। तूने तो लाज शर्म सब बेच खायी। मैं न तो कंडोम लाऊँगा ,न ही तेरी वो गोली। कंडोम से हम मर्दों की मर्दानगी कम हो जाती है .", निर्मला के पति ने कहा।
निर्मला समझ गयी थी कि पति से ज्यादा बहस करने का कोई फायदा नहीं। कहीं अंतर रखने की बात से भी इंकार न कर दे।
निर्मला ने खुद ही दुकान जाकर गोली खरीदकर लाने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही वह दुकान पर पहुंची ;उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। वह बिना कुछ बोले वापस लौट गयी।
निर्मला 3 -४ दिन तक लगातार दुकान जाती और वापस लौट जाती। निर्मला के इस तरह रोज़ -रोज़ चक्कर लगाने के कारण लोग कुछ कानाफूसी करने लगे। निर्मला के पति तक भी यह कानाफूसी पहुंची।
निर्मला के पति ने उसे कहा कि ," आगे से उस दुकान पर जाने की कोई ज़रुरत नहीं है। "
निर्मला अपनी मंज़िल के इतना निकट आकर वापस लौटना नहीं चाहती थी। उसने अपने पति से कहा कि ," कल आप मेरे साथ चल लेना। आप दूर खड़े हो जाना ;मैं खरीद लाऊँगी। "
आज शायद भगवान निर्मला की सभी ख्वाहिशें पूरी करने के मूड में थे या निर्मला के पति का अच्छा मूड था ;निर्मला के पति ने कहा ,"ठीक है ;लेकिन उसके बाद नहीं जाऊँगा। "
अगले दिन निर्मला अपने पति के साथ पहुंची। उसने हिम्मत करके दुकान वाले से पूछ ही लिया ," भैया ,माला डी है क्या ?" दुकान वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा और बहुत ही धीरे से बोला ," हां है ;लेकिन एक ही पत्ता है। आप लेती हो ये गोली ?"
"हाँ ,मैं गर्भ निरोधक गोली लेती हूँ। और यह कोई अपराध नहीं। ",निर्मला ने थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा। निर्मला के अंदर की मरियल निर्मला अब हिम्मती और मजबूत हो गयी थी ; दुकान वाला थोड़ा सकपका गया था ;उसने निर्मला से बिना नज़रें मिलाये ;चुपचाप गोली का पत्ता उसे पकड़ा दिया था।
निर्मला आज समझ गयी थी कि अपने डर और झिझक को अपनी स्वयं की हिम्मत से ही काबू किया जा सकता है। जब कुछ अपराध करें ;तब डरना चाहिए,सही बातों के लिए नहीं।
यह निर्मला की ज़िन्दगी का निर्णायक मोड़ था ;निर्मला ने उसके बाद धीरे -धीरे इन विषयों पर औरतों से बात करना शुरू किया। प्रारम्भ में कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था ;लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। जैसे रेखा ने उसे राह दिखाई ,वैसे ही वह 200 औरतों की ज़िन्दगी में रेखा बनकर आयी और उन्हें राह दिखाई।
अपनी हिम्मत और सोच के कारण आज निर्मला अपनी बेटी की आँखों में अपने लिए गर्व देख सकी। सच ही है जहाँ चाह ,वहाँ राह।