अपेक्षाएँ
अपेक्षाएँ
"अरे विहान, अभी तक सोये हो ? कोचिंग नहीं जाओगे ?"
"सोया नहीं दादी, बस यूँ ही। आओ मेरे पास थोड़ा बैठो न।"
दादी, विहान के पास बैठ उसके बालों को सहलाते हुए बोली- "बेटू, कल तुमने फिर अपनी मम्मा को रुला दिया।बादाम क्यो नहीं खाए तुमने।"
"मैं परेशान हो गया हूँ, कभी बादाम, अखरोट, कभी देशी घी का हलुआ, ब्रैन टॉनिक, वो शन्खपुष्पी चूर्ण, बस पीछे पड़ जाती है खाने के लिये। जैसे मैं बोर्ड एग्ज़ाम नहीं, एवरेस्ट चढ़ने जा रहा हूँ।"
"बबुआ, तेरे भले के लिये ही तो करती है वो।"
"मेरा भला ? मम्मा,पापा ने जो अपेक्षाएँ पाल रखी है न मेरे से, उसके लिये किया जाता है ये सब।"
"इसमे बुरा क्या है। हर माँ-पिता चाहता है की उनकी सन्तान श्रेष्ठ हो।"
तैश में आ गया विहान, भँवें तन गई, माथे पर बल पड़ गये।
बोला- "मैं मेहनत कर रहा हूँ ,कोशिश है अपना100% दूँगा पर मुझे 100% मिलेगा ही इसकी गारन्टी तो नहीं है न। एग्ज़ाम को एग्ज़ाम की तरह ले,पेरेंट्स इसे प्रतियोगिता क्यों बना देते है ?"
थोड़ी देर चुप रहकरआँखे बंद कर ली उसने, दादी की उंगलियाँ उसके बालो को सहला रही थी, मानों मन की तपन पर ठंडी फुहार। अपनी भावनाओं को बड़े प्रयास से शब्दों में बाँध कर विहान ने कहा- "दादी मुझे अपना केलिबर पता है और मैं ये भी जानता हूँ कि मम्मा-पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं, अगर मैं उनकी उम्मीदों के माप दंड पर खरा नहीं उतरा तो उन्हें जो दुख होगा, उनके उस दुख को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा। यही चिंता मुझे परेशान कर रही है।"
गालों पर बह आये आँसूओं को आस्तीन से पोंछ खड़ा हो गया विहान- "चलता हूँ, कोचिंग जाऊँगा"