"यादगार लम्हें"
"यादगार लम्हें"
जल की तरंगों पर इठलाती ,बलखाती लहरों के साथ अठखेलियाँ करती बड़ा सा शिप पर्यटकों ले कर चली जा रही थी।आलोक और सविता अपनी मस्ती में मस्त दोनों प्रेमी युग्ल प्यार में डूबे हुए शिप के डेक पर थे मन्द- मन्द हवाओं के झोके आ रहे थे।दीन -दुनिया से बेख़बर वो दोनों हनीमून के लिए लक्ष्य द्वीप गए थे, शिप का सफ़र बहुत लम्बा था शिप फाइवस्टार लक्जरी था केबिन और शिप में हर तरह का आराम था शाम की गोधूलि बेला में सूर्य के डूबने का मंज़र विशाल समंदर में बहुत ही रमणीक लग रहा था। डेक पर बहुत लोग इस दृश्य को कैमरे में कैद कर रहे थे।मिस्टर खन्ना की दूरबीन से समंदर में एक बहुत विचित्र आकृति दिखी उन्होंने अपनी वाइफ और बेटी कहा देखना ज़रा ये लहरों की सतह पर थोड़ी- थोड़ी देर में तैरती सी लग रही है।क्या व्हेल मछ्ली है।मगर उनकी बेटी जो 11साल की है दूरबीन से देखने के बाद चीख़ कर कहती हैं "ओह माय गॉड" पापा ये तो "मरमेड" (जलपरी) लग रही है। बहुत सुन्दर लड़की का शरीर और नीचे मछली जैसी आकृति है।" सब उधर कैमरे से फोटो खींचने की कोशिश करने लगे पर किसी को दिखाई नहीं दे रही।कुछ कहने लगे अरे बच्ची का वहम है खन्ना साहब की बेटी "इशिता यक़ीन दिलाती रही।
आजकल बच्चे फिल्मों में देखतें है।इमेजिंनेश कर ली " मरमेड "है अंधेरा भी होने लगा था।कुछ लोग शिप पर नीचे रहे थे।इतने में ही एक ज़ोर का धमाका हुआ।डेक पर मध्यम रोशनी थी जो लोग उपर थे उस आवाज़ की दिशा में देखने लगे।विशालकाय जलपरी लहरों से उछल कर शिप आ गई है।इशिता चहक पड़ी वो सबसे और अपने मम्मी- पापा से कहने लगी देखिए आप सब मेरी आँखों का धोखा बता रहे थे।ये वही है जो दूरबीन से लहरों पर तैरती देखी थी। सब ही अचंभित देख रहे थे कुछ फोटो खींचने लगे मगर ये क्या ...? कुछ के कैमरों में कै़द हुई।एक ज़ोर की छलांग के साथ समंदर में फिर से लौट गई। जिन्होंने देख लिया था वो धन्य थे।सच में ईश्वर का समंदर, पहाड़ो, जंगलों में नदियों में बड़े ही विचित्र जीव-जन्तु बनाए है उस दिन शायद आलोक और सविता भी जलपरी के देख कर के उनकी हनीमून को यादगार बना दिया...! शायद इशिता को देखे को सच करने ही कुछ समय के लिए ही ईश्वर ने लहरों से उछाल कर डेक पर भेजा था...! इन्सान को ये संदेश देने हमारा समंदर में भी अलग ही संसार है।