मास्टरनी
मास्टरनी
"ए फोर एप्पल, बी फोर बोय,
सी फोर कैट, डी फोर डोंकी,
जानते हो ना डोंकी किसको बोलते हैं, डोंकी माने गधा !"
और सब बच्चों के साथ वो भी हंस पड़ती है।
"अरी ज़ुबैदा, ये कौन मास्टरनी आ गई, तुम्हारे इस मोहल्ले में !" आते ही फरीदा ने सवाल किया, जो दिल्ली से हैदराबाद आई है अपनी मुँह बोली बहन से मिलने।
लंबी सांस लेकर ज़ुबैदा कहती है, "अरे क्या बताऊँ आपा।"
क़िस्मत की मारी है बेचारी, यूपी के गांव की बतावें हैं, आठवीं किलास तक पढ़ी है, बहुत प्यारी बच्ची है। सब काम में होशियार है, गरीब घर की है पढ़ने लिखने का बहुत शौक था, गाँव में आगे स्कूल नहीं था, कोई दूर के रिश्ते का चाचा था। नीयत खराब हो गई उसकी, इसके बाप को बोला शहर में बड़ी स्कूल में दाखिल करवा दूँगा सरकार की तरफ से आजकल रहने खाने को भी होस्टल बने हैं जहाँ दूर गाँव की लड़कियों को रखा जावे है और मुफ़्त में पढ़ाई लिखाई भी करावें हैं। बूढ़े माँ बाप ने बिस्वास करके भेज दी छोरी को उसके साथ, वो चाचा क्या था हरामी था पूरा, जल्लाद था। पहले तो छोरी को खराब करा फिर बेच गया। मेरे पास तो दूजी बार बिक कर आई है, मौसी बोले है मुझे तो कलेजा फटे है मेरा, ये मुई मर्द जात, हम औरतों को चकलों कोठों पे बिठा कर अपनी कोख को गाली देंवें, और खुद मर्द कहलावें है।"
"आपा इसका नाम आशा है, माँ-बाप ने ये सोच कर रखा होगा कि ये उनके लिए उम्मीद बनेगी, लेकिन देखो इसकी तक़दीर ने कोठे पे पहुँचा दिया।" "आपा इत्ते नेम करम को माने है ये पूछो मत, सवेरे सबसे पहले उठे है, नहा धोकर पूजा पाठ करे है फिर सब छोरियों के वास्ते चाय बनावें है, खाना पीना चूल्हा चौका झाड़ू पोंछा सब काम फटाफट। एक दिन मुझसे बोली "मौसी एक बात कहूँ आपसे, मेरी ज़िंदगी तो अब ये कोठा ही हो गई। यहाँ से अब जाऊँ भी तो कहाँ। माँ बाप को कौनसा मुँह दिखाऊँ, इसलिए आपसे एक चीज मांगती हूँ।
"मेरी जैसी न जाने कितनी आशाएं यहाँ है, मैं नहीं चाहती उनकी भी ज़िन्दगी नरक बने, तो मैं यहाँ के बच्चों को दिन में पढ़ाना चाहती हूँ, आप ना बोल दोगे तो ज़िद नहीं करूँगी।" आँसू पोंछते हुए ज़ुबैदा बोली।
"आपा, हम औरतों की ही क़िस्मत में दुःख झेलना क्यों लिखा है ?"
अब भी दूर से आवाज़ आ रही है, ए फोर एप्पल, बी फोर बोय।