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ARUN DHARMAWAT

Drama

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ARUN DHARMAWAT

Drama

31. "पहचान"

31. "पहचान"

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अचानक आये भूकंम्प ने पूरे शहर का नक्शा ही बदल दिया। चारों तरफ हाहाकार मच गया। चीख पुकार मच गई, जिसको जिधर जगह मिली दौड़ पड़ा, मदद के लिए तो, कोई अपनी जान बचाने के लिए। स्कूल, अस्पताल, ऑफिस, घर सब देखते देखते मलबे के ढेर में तब्दील हो गए। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे। चारों तरफ लाशों के ढेर और खून ही खून नजर आ रहा था। छोटे मासूम बच्चे मलबे में दब गए। ऑफिस और अस्पतालों में भी लोग काल के गाल में समा गए बड़ा भयानक मंजर था।


लोग अपने आपको भूल कर मदद को जुट गए। अस्पतालों के बाहर अस्थाई कैम्प लगे हुए थे। लोग घायलों की मदद कर रहे थे। खून देने वालों की कतारें लग गई थी। जिसको जो समझ आया मदद कर रहा था।


जो इमारतें सही सलामत बच गई थी उनको ही अस्थाई रेन बसेरा बना दिया गया था। लोगों को वहां लाया जा रहा था। इस भूकंम्प ने लोगों की ज़िंदगी बदल डाली और सबसे हृदय विदारक दृश्य तो वो था जब रोते बिलखते मासूम बच्चे संभल नहीं पा रहे थे। ये वो बच्चे थे जिनके माता पिता इस भूकंम्प में समाप्त हो गए थे।


डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे थे लेकिन स्टॉफ की कमी के चलते बड़ी दिक्कत आ रही थी। डॉक्टरों द्वारा उन बच्चों को संभालने की अपील की जा रही थी।


कुछ घंटों बाद जब इस प्राकृतिक आपदा का दुःखद मंजर थम गया और जीवन पुनः सामान्य होने लगा। अनेक समस्याओं का भी आरम्भ हो गया। सबसे बड़ी समस्या उस मासूम बच्चों की थी जो अनाथ हो गए थे।


सामाजिक संस्थाओं और वरिष्ठ नागरिकों की कमेटियां बनाई गई। सबके मन में यही सवाल था, बच्चों का क्या करें। तब ही एक व्यक्ति ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न इन बच्चों को एक एक परिवार गोद ले ले, लेकिन कुछ लोगों ने झिझक जताई जाने कौन है, इनकी जाति क्या है। तब एक बुजुर्ग आगे निकल कर आये और बोले,


“देखो भाइयों अब ये बच्चे किसके हैं इनकी जाति क्या है, कोई नहीं जानता। अब ये न हिन्दू हैं ना मुसलमान न सिक्ख हैं न ईसाई। बस इंसान के बच्चे हैं ये ही इनकी पहचान है। अभी इस आपदा के समय जैसे हम अपना धर्म मज़हब भूल गए और कंधे से कंधा मिला कर सबकी मदद को जुट गए यही सच्चा हिंदुस्तान है। भविष्य में भी हमें जाति धर्म से ऊपर उठकर सच्ची मानवता का धर्म निभाना होगा। अनेकता में एकता यही हमारे देश की पहचान होनी चहिये बस”



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