23. "सत्ता की कुंजी"

23. "सत्ता की कुंजी"

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"मुनीम जी, सब देनदारों का सूद जमा हो गया?"


अपनी रोबीली आवाज़ में साहूकार ने जब मुनीम से पूछा तो डरते-डरते मुनीम ने बताया ....


"नहीं मालिक, आप तो जानते हैं इस बार भी वर्षा बहुत कम हुई। गांव में सूखा और अकाल पड़ा है, फसल भी नहीं हुई। ऐसे में किसान सूद कहाँ से दे पाते?"


आग बबूला होते हुए साहूकार गरजता है,


"मुनीम जी, तुमको बड़ी हमदर्दी है उनसे, तो क्या तुम चुकाओगे मेंरा रुपया ? मैं कुछ नहीं जानता मेंरी एक एक पाई वसूल होनी चहिये बस। आइंदा मेंरे सामने किसी की हिमायत लेने की जरूरत नहीं है समझे"


"जी मालिक"


तमाम तक़ाज़ों के बावजूद जब किसान कर्ज़ में लिया रुपया तो क्या उसका सूद भी नहीं लौटा पाए तो साहूकार ने उन सबकी ज़मीन अपने नाम करवा ली और साहूकार अपने नाम की गई ज़मीन पर खेती करवाने लगा। खेतों में काम करने के लिए भी उन्हीं किसानों को बाध्य किया गया। अपने परिवार का पेट भरने के लिए कल तक जो ज़मीन के मालिक थे आज अपनी ही ज़मीन पर मजदूरी करने को विवश हो गए। कुछ लोग गांव छोड़कर शहर को पलायन कर गए। यूँ धनवान और धनवान बनते गए और गरीब और ज्यादा गरीब होते गए।


गांव के गांव ही नहीं बल्कि अस्सी प्रतिशत गांव में रहने वाला भारत इस त्रासदी का शिकार हो गया। कहीं से आशा की कोई किरण नज़र नहीं आ रही। धीरे धीरे जब सत्ता का विकेंद्रीकरण शुरू हुआ, सामाजिक समरसता की आवाज़ बुलंद होने लगी तो गांव देहात में भी इसकी बयार चलने लगी। लोग समझने लगे कि संगठित होकर अपनी दयनीय दशा को बदला जा सकता है।


भारतीय लोकतंत्र की स्थापना हुई। आशा की किरण नज़र आने लगी, लेकिन पहले तो साहूकार अथवा मुखिया के दबाव में जिसे भी कहा जाता उसी पर ठप्पा लगा दिया जाता। उन्हें मालूम ही नहीं था उनके एक एक वोट से सत्ता बनती और बिगड़ती है और सत्ता के बनने बिगड़ने से उनके जीवन रहन सहन पर उनकी समस्याओं पर भी असर पड़ सकता है।


गांव से पलायन करके गए गरीब किसानों में से एक का बेटा जगन जो बुद्धि चातुर्य के साथ साथ शिक्षित और जुझारू भी था। अपनी पढ़ाई के दौरान ही जगन ने जाना कि हमारे मत का क्या क्या अधिकार है और हमारे ही वोटों से सत्ता का समीकरण बनता बिगड़ता है। अपनी तरह ही अनेकों किसानों की दयनीय दशा देख कर जगन सोच लेता है कि अब संघर्ष करने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। धीरे-धीरे लोगों को जागरूक करना शुरू कर देता है। चुनावों की घोषणा होते ही जगन और ज्यादा सक्रिय हो जाता है। एक-एक घर जा कर लोगों को समझाता है।


एक तरफ धनबल, बाहुबल का पूरा लवाजमा तो दूसरी तरफ बूढ़ी मां का इकलौता बेटा। साहूकार ने चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। भय और आतंक का माहौल बना दिया। शराब धन रुपया सब बांटे गए। नियत दिवस पर वोट डाले गए।


आज परिणाम का दिन है साहूकार आश्वस्त है अपनी जीत को लेकर, लेकिन ये क्या, ये क्या हुआ, ऐसा कैसे हो सकता है? साम दाम दंड भेद अपनाकर भी बाहुबली हार गए और एक साधारण सा निर्धन परिवार का लड़का जगन भारी मतों से विजयी घोषित हो गया।


यही है वोट की ताकत और लोकतंत्र की खूबसूरती कि एक सामान्य व्यक्ति भी सत्ता के शिखर पर पहुंच गया। हर व्यक्ति के हाथ में है सत्ता की कुंजी, जिससे सत्ता का ताला खोला जा सकता है।


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