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ARUN DHARMAWAT

Drama

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ARUN DHARMAWAT

Drama

29. "कुआं और खाई"

29. "कुआं और खाई"

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"पापा स्कूल से ये लेटर मिला है और टीचर ने बोला है सब बच्चे अपने पेरेंट्स से साइन करवा कर लाना"


"देखूं तो क्या लिखा है "


"डियर पेरेंट्स....


जैसा कि आप जानते हैं हमारा यह स्कूल अब शहर के प्रतिष्ठित स्कूलों में जाना जाने लगा है । हमारे यहां बच्चों को जो सुविधाएं दी जा रही है वो विश्व स्तर की है । इसी क्रम में और अधिक वृद्धि करने हेतु अगले सत्र से पूरे विद्यालय को वातानुकूलित बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है । साथ ही अब, बच्चों को यूनिफॉर्म, पुस्तकें, पानी की बोतल, स्कूल बैग भी हमारे विद्यालय की प्रतिष्ठा के अनुकूल विद्यालय से ही उपलब्ध करवाई जाएगी ।

अतः आप समस्त अभिभावकों से विनम्र अपील की जाती है कि अगले सत्र से स्कूल की फीस में 50% की वृद्धि का निर्णय लिया गया है ताकि आपके बच्चों को बेहद सुखद वातावरण में शिक्षित किया जा सके ।

हमारा यह विद्यालय आपके बच्चों को उच्च गुणवत्ता एवम विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने को कृत संकल्प है । आपके पूर्ण सहयोग की आशा में ।


हार्दिक धन्यवाद के साथ


प्राचार्य ......


मनीराम भारतीय”


पत्र पढ़ते ही अविनाश धम्म से सोफे में धंस जाते हैं । पत्नी उनकी ये दशा देख चिंतित स्वर में पूछती है ....


"अजी क्या हुआ, कुछ बताइए तो सही"


निढाल पड़े अविनाश निराश स्वर में बोलते हैं,


"अब बताने को क्या रह गया अरुणा। हमने तो पढ़ा था "सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरब बात, ज्यों ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढ़े, बिन खर्चे घट जात", लेकिन ये देखो सरस्वती के नाम पर लक्ष्मी के उपासक अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। अब से स्कूल फीस डेढ़ गुना कर दी गई है। अब तुम्हीं बताओ मेंरे जैसा सामान्य आय का व्यक्ति जो निम्न मध्यम वर्ग से आता है अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए हर माह इतना बोझ कैसे सहन कर पायेगा। शिक्षा के नाम पर इतनी भयंकर लूट मची हुई है कि इसकी रोकथाम का कोई मार्ग नजर नहीं आता।

पहले ही सरकारी स्कूल से बच्चे को मजबूरी में निकाला, टूटी मेंजें, फटी टाट पट्टियां, न शौचालय, न पीने का पानी, न पंखे न और कोई सुविधाएं ऊपर से सबसे बड़ी परेशानी अकर्मण्यता । वर्तमान समय में अध्यापकों को मोटी मोटी तनख्वाहें जरूर मिलती है लेकिन अध्ययन के स्तर पर बहुत बुरा हाल है। न अध्यापक समय पर स्कूल आते हैं न बच्चों की पढ़ाई पे ध्यान देते हैं। इसी कारण अधिकांश सरकारी स्कूल या तो बंद हो गए हैं या बंद होने के कगार पर हैं। अपने बच्चों का भविष्य बनाने की खातिर अपना पेट काट कर उन्हें निजी स्कूलों में भेजना पड़ता है लेकिन वहाँ तो शिक्षा के नाम पर व्यापार हो रहा है। समझ ही नहीं आ रहा हम लोग करें तो क्या करें? एक तरफ कुँआ है, एक तरफ खाई है और बीच में है हमारे बच्चों का भविष्य"


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