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लक्ष्मी की इज़्जत

लक्ष्मी की इज़्जत

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"आशा ..अरी ओ आशा..कहाँ है गेट खोल ना..कब से बजा रहा हूँ सुनाई क्यों नहीं देता तुझे।"

गेट को खुलवाने के लिए ज़ोर ज़ोर से पीटते हुए विजय जी बस बिना आस पड़ोस की परवाह किए हुए अपनी पत्नी को बार बार बुलाने पर भी उसके ना सुनने के कारण उसके प्रति अपशब्द बोले जा रहे।

तभी अंदर से आवाज़ आयी “आ गयी..एक सेकंड रुकिए तो ज़रा..दौड़ती हुई आशा आयी और गेट खोलते ही बोली..माफ करना, थोड़ी लेट हो गयी पिछले कमरे में थी इसीलिए आवाज़ नहीं सुनाई पड़ी..बिजली वाले को भी बुलाया था लेकिन तेज़ बारिश के चलते वो डोर बेल ठीक करने नहीं आया इसीलिए फोन करके खुद कह रहा था कि कल आऊँगा।" एक ही सांस मे आशा अपने पति विजय जी को बिना देखे आँखें नीची करते हुए बोलती चली गई।

लेकिन विजय जी बस आशा को घूरे ही जा रहे थे और बड़बड़ करते जा रहे थे कि “कितनी बार समझाया है इसे कि जब भी मेरा दुकान से आने का समय होने वाला हो टेलीविजन बन्द कर दिया कर..यह अपने रोने धोने वाले सीरियल दोपहर में देख लिया कर। एक तो दिन भर मेहनत करके खुद को तोड़ कर आओ ऊपर से घर आकर और दिमाग खराब कर देती है। कहीं शांति नहीं है बस इस औरत को तो बहाना चाहिए मुझे गुस्सा दिलाने का।" कहते कहते विजय जी बाथरूम में जाकर अच्छे से हाथ मुँह धोकर निकले ही थे कि अचानक से उनकी नज़र बाथरूम के पास सीधी खड़ी झाड़ू पर पड़ गयी जिससे उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

“अरे, यह क्या आज फिर से वही ग़लती कर दी, हे भगवान! कौन समझाए इस औरत को..कितनी बार कहा है कि झाड़ू सीधा नहीं खड़ा करते..लक्ष्मी जी रूठ जाती है..घर में कलह क्लेश बढ़ जाता है लेकिन ये नहीं समझती। ना जाने किस मिट्टी की बनी है ..कैसी फूटी किस्मत थी मेरी जो ये औरत मेरे पल्ले पड़ गई.."कहते हुए विजय जी ने गुस्से में सीधे खड़े झाड़ू को ज़मीन पर लिटा दिया और अंदर चले गए।

यह सब कोई आज की बात न थी, शादी के बाद इन पच्चीस सालों में आज तक विजय जी हर समय आशा को हर बात में गलत ठहरा अपमानित करते आये थे इसीलिए उसकी यही कोशिश रहती थी कि सारा काम सही प्रकार से करती रहे लेकिन कभी कभार दिमाग में कुछ छूटने के बाद अगर काम में कोई भी गलती हो जाती तो विजय जी उनको ज़लील करने में दो मिनट ना लगाते, लेकिन आशा कुछ ना कहते हुए बस सब बर्दाश्त ही करती रहती थी शायद यही सीख मिली थी उन्हें। इसीलिए आशा चुपचाप रसोई घर में जाकर रोटी सेंकने में लग गयी ताकि विजय जी को और गुस्सा ना आ जाये क्योंकि कई बार ज्यादा गुस्से के कारण वह खाना तक छोड़ देते थे जिससे आशा का दिल बहुत दुखता था, अभी एक रोटी बनायी ही थी कि तभी अचानक से बाहर के गेट के खटकने की आवाज़ सुनाई दी।

इस समय कौन हो सकता है सोचते हुए गैस बंद कर आशा ने गेट खोला तो सामने अपनी इकलौती बेटी रूचि जिसकी शादी को अभी 6 ही महीने हुए हैं को खड़ा हुआ पाया।

अरे! क्या हुआ रूचि बेटा?? रूचि को अंदर बिठा कर बौखलाहट में आशा ने पूछा और रूचि के आँसू पोछते हुए जल्दी से पानी का गिलास ले आयी। विजय जी भी दौड़ते हुए बाहर आ गए चूंकि रूचि उनकी इकलौती बेटी थी तो विजय जी की जान बसती थी उसमें, बड़ी सोच समझ व जांच परख कर उन्होंने रूचि का हाथ राहुल के हाथ में दिया था ताकि उसका जीवन सही से व्यतीत हो लेकिन आज उसे इस हालात में देखकर विजय जी के मन में अजीबोगरीब खयाल आ रहे थे।

"क्या हुआ मेरी बच्ची बता तो सही?? " राहुल से कोई बात हुई?

"जी पापा", कहते हुए रोते रोते रूचि विजय जी के गले लग गई।

"उसकी इतनी हिम्मत की मेरी बेटी को, अभी फोन करके बात करता हूँ" विजय जी बात को बिना जाने ही आक्रोशित हो गए।

"लेकिन सुनिये तो ज़रा, रूचि और राहुल दोनो समझदार हैं..आप धैर्य रखें, पहले पूरी बात तो .."आशा इससे आगे कुछ बोलती लेकिन विजय जी की गुस्से में दिखाई हुई आँखों से चुपचाप सहम कर खड़ी हो गयी।

"हेलो! राहुल जी, क्या बात हो गयी जो रूचि रोते रोते रात को घर आगयी यह अच्छा नहीं किया आपने जो मेरी बेटी को रुलाया। अब रूचि वहां वापिस नहीं लौटेगी..बेहतर होगा आप कल सवेरे आ जाये ताकि आमने सामने बैठ कर बातचीत कर सके।"

विजय जी ने एक ही सांस में राहुल को सब कुछ बोल दिया मानो कि मन की भड़ास निकाल दी हो..लेकिन आशा को चिंता सताई जा रही थी कि पूरी बात जाने बिना वो ऐसा कैसे कर सकते है आखिरकार छोटी मोटी बातें तो हर मिया बीवी के बीच होती है व अगर हर माँ-बाप इस तरह से करने लगे तो शायद किसी बच्चे का घर ही नहीं बस पायेगा। बच्चे तो ग़लतियाँ करते ही है लेकिन बात को बढ़ावा देने से वह और बिगड़ती जाएगी जिसमें सबसे ज्यादा असर रूचि और राहुल के उस रिश्ते पर पड़ेगा जो अभी कुछ ही महीनों पहले बना है! लेकिन इस समय विजय जी को समझाना मुश्किल था इसीलिए आशा ने प्यार से रूचि को समझा कर चुप करवाया व उससे पूरी बात जानना चाही तो पता चला कि “रूचि द्वारा सब्ज़ी में तेज़ नमक डाल देने के कारण राहुल ने उसे गुस्से में डांटते हुए बोल दिया कि उससे कोई काम सही से नहीं होता व यह बात उसे इतनी बुरी लग गई कि वो रोते रोते घर लौट आई।"

विजय जी यह बात सुनकर गुस्से में तिलमिलाते हुए फ़रमान जारी कर चुके थे कि जिस घर में उनकी बेटी का अपमान होगा उस घर में वह हरगिज नहीं जाएगी वो पूरी ज़िंदगी उसे बिठा लेंगे अपने घर, आखिरकार यह सब उसका ही तो है। परंतु कहीं न कहीं आशा को यह बात उतनी बड़ी नहीं लगी थी जितना कि विजय जी ने उसका बतंगड़ बना दिया था क्योंकि वो तो रोज़ ही हर पल किसी न किसी बात पर तिरस्कृत होती आयी थी परंतु अपनी बेटी के लिए कुछ गलत नहीं सोच सकती थी इसलिए बस यह चाह रही थीं कि इस समय गुस्से में वह कोई गलत फैसला न ले ले।

"अब तू खाना खिलायेगी या नहीं..एक काम ढंग का नहीं है इस औरत का" विजय जी ने गुस्से में बोला कि तभी फटाफट से आशा रसोई घर में जाकर रोटियाँ सेंकने लगी व रात का खाना खाकर जब रूचि के कमरे में पानी रखने गयी तो चुपचाप बैठी रूचि के सिर पर हाथ फेरकर बोली “देखो रूचि बेटा, कल जब राहुल घर आएगा तब अपनी ज़िंदगी से संबंधित सारा फैसला तुम्हारा होगा, जैसा तुम्हें सही लगे वैसा ही करना”,ऐसा कहकर आशा चली गई।

सवेरा हो गया था आशा की पूजा अर्चना की आवाज़ से रूचि की नींद खुल गई थी वह तैयार हो कर रसोई घर में अपनी माँ का हाथ बंटाने आ गई थी, थोड़ी देर में जब डोरबेल बजी तो मेन गेट खोलने पर राहुल को सामने खड़ा पाया।

"अरे! आ गए आप..आइये बैठिए देखिये आज मैंने माँ के साथ मिलकर आपके पसंद का नाश्ता बनाया ..मुस्कुराते हुए रूचि बोली।"विजय जी ने जैसे ही राहुल को देखा उन्हें गुस्सा आ गया लेकिन रूचि का मुस्कुराता हुआ चेहरा उन्हें असमंजस में डाल रहा था।

“देखिये जमाई जी, जो कल रात हुआ वह बिल्कुल सही नहीं था, मैं अपनी बिटिया को ऐसे रोते हुए नहीं देख सकता इसलिए वो अब आपके साथ नहीं जाएगी।" यह सारी बात सुनते ही रूचि तपाक से बोली “पापा, राहुल मेरे पति है और मैं उनके बिना नहीं रह सकती..मैंने यह शादी तोड़ने के लिए नहीं की थी और वैसे भी छोटी मोटी बातें तो हर पति पत्नी में होती है इसका मतलब यह तो नहीं कि वह अलग हो जाए।"

"लेकिन रूचि बिटिया आत्मसम्मान भी कुछ होता है कि नही??" अपने पापा की बात सुनते ही रूचि का गुस्सा सैलाब बन कर उमड़ पड़ा “पापा अगर आत्मसम्मान की बात करे तो माँ को तो कब का आपको छोड़ कर चले जाना चाहिए था क्योंकि जितना तिरस्कृत आप उन्हें करते आये है किसी न किसी व छोटी छोटी सी हर बातों पर शायद ही कोई पति अपनी पत्नी को करता होगा..कल रात जब आपको माँ को कोई काम सही से ना कर सकने का ताना मारते हुए सुना तो जाना कि क्या होती है एक औरत की जिंदगी..मैंने तभी ठान लिया था कि मुझे अपनी माँ की तरह बनना है जिन्होंने अपने अच्छे संस्कारों के कारण बिना कोई बेइज्जती को मन में लिए बस अपने घर को ,आपको व मुझे खुश रखने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। और वैसे भी पापा राहुल एक बहुत अच्छे इंसान हैं तो क्या हुआ अगर कल उन्होंने मुझे डांट दिया समझ सकती हूं कि वो ऑफ़िस से थक कर आये थे वह मेरा दिल नहीं दुखाना चाहते थे कहते हुए रूचि राहुल की ओर देख कर मुस्कुराने लगी।"

"माफ़ी चाहूँगी पापा मानती हूं मैं आपके जिगर का टुकड़ा हूं लेकिन माँ भी तो किसी की जान थी फिर क्यों आपने उन्हें हमेशा तिरस्कृत किया..आपके हिसाब से घर में झाड़ू सीधा खड़ा करने से लक्ष्मी जी नाराज़ हो जाती हैं लेकिन माँ तो इस घर में लक्ष्मीजी का ही रूप है तो आप उन्हें बेइज्जत करके कैसे घर में शांति व धन प्राप्ति की उम्मीद रखते हों”...कमरे में सन्नाटा पसर गया था कि तभी आशा ने बात संभालते हुए बोला, "अरे! छोड़ो बेटा यह सब बातें आओ राहुल और रूचि बेटा गर्मागर्म नाश्ता लगा देती हूं आप सब लोग एक साथ बैठ कर नाश्ता कर लो.."कहते हुए आशा रसोई में चली गयी।

रूचि की यह सारी बातें सुनकर विजय जी निःशब्द से बैठ गए शायद आज उन्हें काफी बातें समझ में आ गई थी लेकिन किस मुँह से अपनी ग़लतियों की माफ़ी मांगते आखिरकार पुरूष प्रधानता की राह पर जो चलते आये हैं इसीलिए बड़ी हिम्मत से आशा को नाश्ता लगाते समय बोल ही डाला कि “आजा तू भी हमारे साथ बैठ कर नाश्ता कर ले।" यह बात सुन घर के माहौल में थोड़ी खुश नुमा सुगंध सी फैल गयी।



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