नकाबपोश दरिंदे

नकाबपोश दरिंदे

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“शाम को अंधेरा होने से पहले घर आ जाना” कहते हुए मंजरी ने अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी सपना को हाथ में टिफ़िन पकड़ाया। ठीक है माँ, बोलकर सपना ने रोज़ की तरह डिब्बा अपनी साइकिल में रखा और निकल पड़ी फैक्टरी की तरफ। आखिर फैक्टरी जल्दी जाकर आठ घंटे की नौकरी पूरी करके घर वापिस जल्दी जो लौटना होता था। इसीलिए वो रास्ते में किसी से बात ना करते हुए घर से सीधा फैक्ट्री और फैक्ट्री से सीधा घर की और निकल पड़ती थी। कभी कभार घर खर्च के पैसे पूरे न होने के कारण ओवरटाइम भी कर लेती थी। घर जाकर माँ के कामों में हाथ बटाना व छोटे भाई को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी। सातवीं कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर अपने माता पिता का पूरे गाँव में नाम रौशन किया था सपना ने, लेकिन पिता जी के आकस्मिक देहांत के बाद ना चाहते हुए भी उसको अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी उसे। तीन साल बीत चुके थे लेकिन ज़ख्म अभी तक ताजा ही थे, घर की बड़ी बेटी होने के नाते घर चलाने की सारी जिम्मेदारी उसने अपने कंधों पर उठा ली थी। साथ वाले किशन चाचा ने अपने मालिक से कह कर सपना को फैक्ट्री में काम दिलवा दिया था, उसके काम व मेहनत को देख कर मालिक खुश भी रहते थे। मंजरी भी आस पड़ोस में लोगों के कपड़े सिल कर कुछ पैसे कमा लेती थी, रह सह कर मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था।

इसमे कोई शक नहीं था कि सपना सुंदर नहीं थी, मानो की भगवान ने बड़ी ही फुरसत से बनाया था उसे। भूरी रंग की बड़ी बड़ी आँखें, गोरा रंग, रेशम जैसे कमर को छूते बाल। गाँव में काफी लोगो की नजर रहती थी उसपर परंतु वो किसी को भी नज़र उठा के नहीं देखती थी। उसकी माँ मंजरी को उसकी बड़ी चिंता रहती थी आखिरकार लड़की जात जो ठहरी। वैसे भी पिछले कुछ महीनों से गाँव में हो नाबालिग लड़कियों के साथ हो रहे दुष्कर्मों से पूरे गाँव वालों के मन में दहशत सी फैली हुई थी। ना जाने कौन थे वो दो नकाबपोश जो रात के अंधेरे में अपनी बाइक पर आते व गाँव की नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ दुष्कर्म करते और वापिस गाँव में अधमरा कर फेंक जाते। कितनी ही लड़कियाँ बदनामी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती।कुछ अनसुलझे से सवाल थे सबके मन में जिसकी गुत्थी सुलझाना असम्भव सा लग रहा था, आखिरकार सजा दिलवाते भी तो किसको??


उस दिन सपना को फैक्टरी में ओवरटाइम करना था, रक्षा बंधन आने वाला था अपने छोटे भाई को उसकी मनपसंद की शर्ट जो दिलवाने थी। फैक्टरी में ओवरटाइम करते करते रात हो चुकी थी। मंजरी की निगाहें दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठी थी व मन में अजीब से बेचैनी व हलचल सी मची हुई थी कि कहीं सपना किसी मुसीबत में तो नहीं होगी, जल्दी से घर सही सलामत पहुंच जाए। “क्या जरूरत थी ओवरटाइम करने की, शर्ट ही तो है अभी नहीं तो बाद में दिलवा देती जब कुछ पैसे जमा हो जाते” मन ही मन खुद ही बुदबुदाये जा रही थी मंजरी। एक तरफ ध्यान दाल के पतीले में कड़छी मारने में था तो दूसरी तरफ निगाहें कभी घड़ी की तरफ तो कभी चौखट की तरफ।

सपना अपना सारा काम खत्म कर जल्दी से अपनी साइकिल उठा तेज़ पैडल मारती हुई चल पड़ी घर की तरफ, फैक्टरी से घर तक का रास्ता पूरे तीन किलोमीटर का था। जल्दी जल्दी सपना ने आधे से ज़्यादा रास्ता पार कर लिया था तभी अचानक से उसको थोड़ी दूरी से बाइक की आवाज़ आती सुनाई दी।उसके मन मे कुछ खटका सा होने लगा था मानो उसे आभास हो गया था कि कही ये वही बाइक सवार तो नहीं जो रात के अन्धेरे में आकर गाँव की लड़कियों के साथ दुष्कर्म करते है। सपना के पैर साइकिल के पैडल को और तेजी से चलाते गए ,अब वह गाँव से बस एक किलोमीटर की दूरी पर थी पर उस समय यह कम रास्ता भी लंबा होता जा रहा था। बाइक की आवाज़ पास आती जा रही थी, लेकिन सपना आगे बढ़ती गयी तभी पीछे से बाइक पर बैठे एक लड़के का हाथ सपना की ओर झपटा जिससे उसकी साइकिल का संतुलन बिगड़ा और वह गिर पड़ी। उसके पैर भी जख़्मी हो चुके थे खुद को संभाल वह उठी और गाँव के रास्ते की तरफ भागने लगी। बाइक सवार उस पर बार बार झपट्टा मारते रहे यह सोच की वो अपनी हिम्मत खो देगी परंतु सपना साहसी व निडर बनी रही खुद को बचाते बचाते सपना के वस्त्र भी चीर चीर होते जा रहे थे और उसका जिस्म देख उन अपराधियों के इरादे और मजबूत।


अब भागते भागते व खुद को बचाते बचाते सपना का चोटिल शरीर जवाब देता जा रहा था, उसकी हिम्मत खत्म होती जा रही थी उन राक्षसों का वार सहने की हिम्मत नहीं रही थी अब उसमें, तभी आगे एक पत्थर से टकरा सपना ज़मीन पर गिर पड़ी। अपनी बाइक रोक वो राक्षस सपना की तरफ बढ़ने ही लगे थे कि अचानक से गाँव वालों व उनकी लाठियों की आवाज़ करीब आती सुनाई पड़ने लगी। डर कर भागने की फ़िराक में ही थे वो तभी गाँव वालों ने उन नकाबपोश दरिंदों को धर दबोचा व लाठियों से मार मार उनको अधमरा कर दिया व घसीटते हुए गाँव ले आये। सभी गाँव वाले एकत्रित हो चुके थे, मंजरी ने सपना को जल्दी से दुपट्टा ओढ़ाया। अब बस देरी थी तो उनका चेहरा देखने की जैसे ही चेहरे से नकाब उतारा तो मानो सबके पैरो तले ज़मीन सी खिसक गई थी उस हर साज़िश का रचयिता सपना के साथ वाले चाचा किशन का बेटा था जिसमे उसका साथ उसका दोस्त देता था। अपने ही बेटे की ऐसे गंदी साजिश को देख किशन चाचा का सर शर्म से झुक गया था,कभी नहीं सोचा था उन्होंने की उनकी परवरिश ऐसा रंग दिखाये गी। गाँव में किसी लड़की की तरफ आँख उठा कर ना देखने वाला उनका बेटा ऐसी गंदी साज़िश का मास्टर माइंड होगा। चाचा ने खुद पुलिस को फ़ोन कर अपने बेटे व उसके दोस्त को उनके हवाले कर दिया, व खुद सिर झुका खड़े रहे हाथ जोड़ सबसे माफ़ी मांगते रहे।

मंजरी ने सभी गाँव वालों का शुक्रिया किया। तभी सपना ने साथ खड़ी काकी को कहा “शुक्रिया काकी,जो आपने मेरे कहे अनुसार मेरा साथ दिया और गाँव वालों को इकट्ठा कर ले आयी मेरी जान बचाने, क्योंकि मैं जानती थी कि आज रात उनका अगला शिकार मैं ही होगी, आखिरकार उन दरिदों को पकड़ कर सजा दिलवाने का यही मौका था।" सपना की ये बात सुन मंजरी की आँखों में आँसू आ गये नहीं जानती थी वो की उसकी बेटी एक दिन अपनी जान की परवाह किये बिना इतना बहादुरी का काम करेगी।

सब लोग अपने अपने घरों में जा चुके थे व सपना आज उन लड़कियों को इंसाफ़ दिला आसमान में टिमटिमा रहे लाखों सितारों की चादर तले चैन की नींद सो रही थी।


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