mona kapoor

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हर औरत की आवश्यकता मी - टाइम

हर औरत की आवश्यकता मी - टाइम

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अपनी आजादी महसूस करने और खुशी के पल जुटाने की चाह सभी की होती है वो चाहे आदमी हो या औरत। क्योंकि यदि हम खुद से खुश नहीं है तो किसी और को भी खुश नहीं रख सकते न ही स्वस्थ रह सकते है। अब बरसों से यह बात चलती आ रही है कि आदमी सप्ताह में छ: दिन नौकरी से आकर सातवें दिन अपने दोस्तों के साथ मूवी देखकर या घूमने जाकर अपना समय एंजाय कर लेते है और औरतें रह गयी वही घर के काम-काजों में पीसी हुई। सातों दिन वही सुबह से लेकर रात तक घर के कामों में इतनी व्यस्त कि अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाती लेकिन अब शायद समय बदलता जा रहा है। जिस तरह हर चीज में नयी ‌तकनीक व आधुनिकीकरण हो रहा है उसी तरह औरतों की सोच में बदलाव क्यों न हो!!


आज की महिलाएं इस बात को जान गयी है कि अगर खुश रहना है तो पहले अपने लिए जीना सीखना पड़ता है इसलिए उन्होंने अपने लिए ‘मी टाइम’ चुना है एक ऎसा टाइम जो उनका खुद का हो। अपने घर की व करियर की तमाम जिम्मेदारियां निभाते हुए भी अपने लिए अलग से समय निकालने लगी है और अपने उस टाइम को पूरी तरह एंजाय करती है क्योंकि यह समय सिर्फ उनका अपना होता है। वह अपनी सहेलियों के साथ मिलकर पूरी तरह से अपनी घर – गृहस्थी व आफिस के झंझटो से दूर होकर अपना समय खुशी से बिताती है।

बढ़ते 'मी टाइम' के प्रकार :-


किट्टी पार्टी – जी हाँ, यह तो आजकल का महिलाओं का सबसे बढ़िया मी टाइम का प्रकार बन गया है। इसमे महिलाएं एकत्रित होकर किसी रेस्तरां मे जाकर एंजाय करती है अपनी सहेलियों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के साथ साथ अपनी पसंद का खाना-पीना व अलग अलग तरह के गेम खेलती है। इसके अलावा इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो जाती है।


मायके जाकर – मायके का नाम सुनते ही हर औरत के चेहरे पर मुस्कान सी आ जाती है दिल चहक उठता है, आखिर मायके जाना किस को पसंद नही होता है? ससुराल के कामों व झंझटो से दूर मायके जाकर महिलाएं अपनी इच्छा से सोती व उठती है वहाँ रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता न ही कोई काम-काज। बस अपनी सहेलियों के साथ गपशप करना, शॉपिंग जाना, मूवी देखना और अपने माता-पिता व भाईयों-भाभियों के‌ साथ अच्छा समय बिताकर अच्छी यादें लेकर अपने ससुराल वापिस लौटती है।


करियर वुमेन के लिए भी जरूरी 'मी टाइम'- अक्सर करियर वुमेन के लिए यह कहा जाता है कि यह रोज बाहर घूम तो आती है जोकि बिलकुल गलत है उसकी जाॅब बाहर घूमने की नहीं है बल्कि काम करने की है। उसको बाहर घूमने के पैसे नहीं मिलते है। उसकी तो डबल ड्यूटी होती है जाॅब भी संभाले साथ साथ घर भी। कई बार तो आॅफिस के कामों में इतनी व्यस्त हो जाती है कि बच्चों की छुट्टियों में उनके साथ न तो मायके जा पाती है न ही बाहर घूमने। इसलिए वो भी अपने लिए मी टाइम का चुनाव करती ‌है जिसमें कि वो अपनी सहेलियों के साथ घूमती है, उनसे अपने दिल की सभी बातें करके अपना दिल हल्का करती है, जिससे कि वो तरोताज़ा हो सके।


परिवार का सपोर्ट – जब तक औरत घर में ही बंधी रहती है तो उसके काम के बोझ का असर उसके सेहत और उसके व्यवहार दोनो पर पड़ता है जिससे कि आपसी तनाव व वाद-विवाद को बढ़ावा मिलता है। काफी परिवारों में यह बात समझ आ गयी है इसलिए उन्होंने मी टाइम को औरतों की आवश्यकता समझा है व उन्होंने खुशी खुशी उन्हे अपना यह स्पेशल टाइम एंजाय करने की इजाज़त दे दी है। जिसमें कि महिलाएं 15 दिन या महीने में एक बार अवश्य अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने जाती है व एंजाय करती है।


सभी को यह बात समझनी चाहिए कि हर किसी को अपनी जिन्दगी में खुशियों के कुछ पल बिताने की चाह रहती है फिर चाहे वो आदमी हो या औरत। उनकी इस चाह का सम्मान करे न कि घर में बंदी बनाकर रखे। औरतों में हो रहा मी टाइम का विस्तार बस एक छोटी सी उनकी कोशिश है घर व आॅफिस की जिम्मेदारियों से भागने की नहीं बल्कि इस व्यस्त जिन्दगी में कुछ समय निकाल कर खुद के लिए जीने की है। यह टाइम उनकी खुशी से ज्यादा उनकी मेंटल व फिजिकल हेल्थ के लिए जरूरी है।


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