रेडियो

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हैलो मोटी…. क्या कर रही है? रोज की तरह निशा को फोन कर चिढ़ाते हुए अंदाज में सूरज बोला।

सूरजजजजजजज…उफ्फ कितनी बार कहा है मुझे मोटी मत बोला कर। और तुझे नहीं पता क्या की रोज़ इस समय मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही होती है…अब जल्दी बोल क्या बात है तेरे जैसा फालतू टाइम नहीं है मेरे पास।

तो क्या कहूँ तुझे अगर मोटी ना कहूँ तो, बस हर समय थाल सजा बैठ खाने का ही तो काम है तुझे…..निशा को छेड़ते हुए सूरज जोर जोर से हँसने लगा तभी गुस्से में निशा ने फोन काट दिया।

लगभग एक मिनट बाद दरवाज़े की घंटी बजी निशा जानती थी कि सूरज ही होगा, रोज़ का काम जो ठहरा उसका। नमस्ते, अंकल-आंटी कह सूरज निशा के कमरे मे चला गया तो निशा पहले से ही बड़बड़ा रही थी।

“आने दो आज उस पागल को ना सबक सिखाया तो मेरा नाम निशा नहीं।

बंदा हाजिर है मैडम सिर झुका सूरज बोला। चले जाओ यहाँ से गुस्से में तिलमिलाए निशा बोली। अरे, कभी कहती हो आने दो कभी कहती हो चले जाओ, आखिर चाहती क्या हो?? ठीक है चला जाता हूँ फिर जाती रहना कॉलेज अकेले बस में लटकती हुई, क्या कहेंगे तुम्हारे स्टूडेंट्स की लेक्चरर साहिबा खुद ही लेट आयी है। कहते हुए सूरज जाने लगा।

रुको, ज्यादा स्मार्ट बनने की जरूरत नहीं है। जल्दी चलो अब लेट हो रहा हैं। माँ पापा से मिल निशा चल पड़ी सूरज की बाइक में बैठ कॉलेज के लिए।बचपन से ही दोनो का यही हाल जो ठहरा, दोनों का घर साथ साथ था दोनों परिवारों के आपसी संबंध भी बहुत अच्छे थे। सूरज और निशा बचपन से ही साथ खेल कूद कर बड़े हुए, साथ स्कूल जाते साथ ही पढ़ाई करते। खूब लड़ते झगड़ते फिर भी एक दूसरे के बिना ना रह पाते। पढ़ाई पूरी करने के बाद सूरज ने ऑर्मी जॉइन कर ली थी आखिर शुरू से देश की रक्षा करने का जज़्बा जो था उसमे, वही निशा पीएचडी कर कॉलेज में लेक्चरर लग गयी थी।

सूरज की तीन महीने की छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी, दो दिन बाद वो वापिस जा रहा था। मन में एक उथल पुथल सी मची हुई थी कि किस तरह अपने दिल की बात निशा को कहे कि वो उससे प्यार करता है और उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता, निशा थी ही एक सच्ची व परवाह करने वाले व्यक्तित्व की लड़की। कहीं ना कहीं सूरज भी जानता था कि निशा भी उससे पसंद करती है, परंतु पसंद करना व जीवनसाथी बनने में बहुत अंतर होता है यह सोच सूरज रुक जाता।

केवल एक दिन बचा था सूरज के जाने में, सारी पैकिंग हो चुकी थी। डिनर दोनों परिवारों ने साथ में किया था ,डिनर के बाद सूरज और निशा रोज़ की तरह बाहर टहलने को निकल गए थे। सूरज ने अपने व निशा के माता पिता को भी बता दिया था कि आज वो निशा को अपने दिल की बात बताने जा रहा है दोनो परिवार बहुत खुश थे कि उनकी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जायेगी। कुछ दूर जाने के बाद निशा अपनी बातों में इतनी मग्न की उसने देखा ही नहीं कि सूरज उसके साथ नहीं चल रहा। अचानक से ध्यान पड़ने पर पीछे मुड़ कर देखा तो सूरज अपने घुटनों पर बैठ हाथ में एक फूल लिए सिर झुकाये नजर आया।

“विल यू मैरी मी” कहते हुए सूरज ने आज अपने दिल की बात निशा के सामने रख दी थी। मैं अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ, क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनोगी???

निशा निःशब्द सी खड़ी रही, शायद वो कोई भी फैसला लेने की स्थिति में नहीं थी। वक़्त की नज़ाकत देखते हुए सूरज उठा और निशा को कहा “मैं जानता हूँ कि यह सब तुम्हारे लिए अचानक से हो गया, कल मैं वापिस जा रहा हूँ तो सोचा अपने दिल की बात बता दूँ, तुम्हारा जो भी फैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा लेकिन एक बात है कि तू रहेगी तो मेरी लिए मोटी ही” कह सूरज ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा व परिस्थिति को संभाल निशा को ले वापिस घर लौट आया।

घर वाले निशा के फैसले को जानने के लिए बहुत उत्सुक थे परंतु उसके चेहरे के भाव समझ शांत हो गये थे। अगले दिन दोपहर की ट्रेन से सूरज वापिस जा रहा था। दोनो परिवार रेलवे स्टेशन सूरज को छोड़ने आये थे। निशा आज भी चुपचाप सी ही थी, ट्रेन चलने का समय हो चुका था सूरज सब बड़ों के चरण स्पर्श कर मिल लिया था।“ मोटी कह सूरज निशा की तरफ देख मुस्कुराने लगा और कहा कि मैं जानता हूं कि तेरा फैसला क्या है बस तेरे मुँह से सुनने का इंतज़ार है।" ट्रेन चल पड़ी थी निशा भी सूरज की तरफ देख हल्की मुस्कान दे रही थी।

सब लोग घर आ गये थे। अब छः महीने बाद मिलना होगा सूरज से यह बात सोच निशा का दिल बेचैन से हो रहा था। सरहद पार ना कोई फोन ना ही संपर्क का कोई साधन कैसे बीतेंगे ये छः महीने, किससे अपने दिल की बातें शेयर करुँगी, कौन मुझे मोटी मोटी कह छेड़ेगा, किससे लडूंगी.... ना जाने ये बातें सोच सोच वो क्यों परेशान सी होने लगी थी। कहीं मन ना लगना, मोबाइल में सूरज की तस्वीर देखने का बहाना ढूंढना, उसकी चिंता होना। लगभग एक महीना निकल चुका था सूरज का कोई फोन नहीं आया था। घरवालों व निशा ने कोशिश भी की थी लेकिन नेटवर्क की समस्या की वजह से फोन नहीं मिल पाता था और जब भी कभी मिलता तो सूरज वहाँ बात करने के लिए उपस्थित ना होता।

दिन निकलते जा रहे थे निशा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी वो जान चुकी थी कि उसके मन मे भी सूरज के लिए वही फीलिंग है जो कि सूरज के मन में निशा के लिए। वो यह बात सबसे पहले पहले सूरज को बताना चाहती थी, मन करता उड़ कर सूरज के पास पहुंच जाए। उधर सूरज भी अपने ड्यूटी में जब तक व्यस्त रहता तब तक ठीक रहता, खाली समय मे बस निशा के जवाब के बारे में ही सोचता रहता। शाम के समय बस रेडियो पर आकाशवाणी में आने वाले कुछ पुराने गीत सुन अपने ही ख्यालों में खो जाता।

एक दिन शाम को वो इसी तरह रेडियो पर कुछ पुराने तराने सुन रहा था कि अचानक से उसे रेडियो पर निशा की आवाज़ सुनाई पड़ी।

“हैलो, सूरज मैं जानती हूं कि तुम इस समय रेडियो ज़रूर सुनते हो, मन बहुत बेचैन सा था तुमसे कोई संपर्क ना होने के कारण यह रास्ता चुना, उम्मीद है तुम ठीक होगे। निशा की आवाज़ सुन सूरज चौंक उठा….सूरज, तुम्हारे दिये विवाह प्रस्ताव का जवाब दुनिया के सामने देना चाहती हूँ कि मैं भी इस सुंदर पवित्र रिश्ते में तुम्हारे साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हूँ, तुम मेरे सच्चे दोस्त हो और जानती हूँ कि तुमसे अच्छा हमसफ़र मुझे कोई और नहीं मिल सकता, जो दोस्ती का रिश्ता इतनी पवित्रता से निभा सकता है वो पति पत्नि का रिश्ता सुंदरता से निभाने में कैसे कोई कमी छोड़ सकता है, बस अब यह आँखे तुम्हारे सजदे में लगी रहेगी।"

निशा की यह बातें सुन सूरज खुशी से उछल पड़ा व छुट्टी की अर्जी लगा घर जाने के दिन गिन गिन काटने लगा। सूरज की अर्ज़ी मंज़ूर हो गयी थी, लगभग पांच महीने थे अभी। इसी बीच एक दो बार घरवालों व निशा से भी बातचीत हुई। दोनो के लिए ये पांच महीने निकालना बहुत मुश्किल था। दोनो के घरवालों ने शादी की तारीख़ तक निकाल शादी की तैयारियाँ भी जोर शोर से शुरू कर दी थी। समय बीतता गया सूरज के वापिस आने का दिन आ गया था, निशा उसे लेने रेलवे स्टेशन पहुंची व उसके आते ही आँखों मे शर्म, दिल में प्यार लिए उसकी तरफ देख मुस्कुराने लगी। मानो यू लग रहा कि दोनो को ज़न्नत मिल गयी हो, घर पहुँचते ही दोनो का मुँह मीठा करवा पाँच दिन बाद कि शादी का ऐलान हो चुका था। नाच गाना, गीत- संगीत, शहनाई बजने लगी.. खूब रौनक लगने लगी, मेहंदी लगी.…दोनों घरों को आलीशान जगमगाते महल की तरह सजाया गया। आज शादी का दिन था निशा दुल्हन के जोड़े में बेहद खूबसूरत लग रही थी व सूरज भी किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था ।

आसमान में जगमगाते लाखों सितारों की रौशनी के तले शादी की सभी रस्मों को पूरा कर सूरज ने निशा की मांग में सिंदूर सजा उसे इस जन्म तो क्या अगले हर जन्म के लिए अपना बना लिया था। व बड़ों का आशीर्वाद ले आँखों में लाखों सपने संजोये निकल पड़े थे एक साथ एक सुखद जीवन जीने की राह पर।



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