दम तोड़ता बेसहारा जीवन
दम तोड़ता बेसहारा जीवन
रोज़ की तरह सुबह साढ़े पाँच बजे का अलार्म बंद कर शोभा उठ खड़ी हुई थी अपने बिस्तर से। उठते ही घर की साफ सफाई व किचन के कामों को पूरा कर बच्चों का लंच पैक करती व उन्हें स्कूल जाने के लिए तैयार करती, जितनी देर में उसका पति विकास बच्चों को स्कूल वैन तक छोड़ कर वापिस आता तब तक विकास की भी ऑफ़िस जाने की तैयारी को पूरा कर खुद लग जाती स्कूल जाने की तैयारी में। घर पर अकेले समय नहीं बीतता था तभी विकास की रजामंदी से शोभा ने पास का स्कूल जॉइन कर लिया था, वैसे भी उसको छोटे बच्चों के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था, बस उसकी इसी खुशी के लिए विकास ने उसको अनुमति दे दी थी। शोभा बच्चों के स्कूल जाने के बाद जाती और उनके आने से पहले वापिस आ जाती। जीवन अच्छे से व्यतीत हो रहा था।
स्कूल जाने से पहले शोभा को अपनी बालकनी में खड़े होकर चाय की प्याली पीना बहुत पसंद था। सुबह सुबह की ठंडी हवा से हिलते पेड़ो की झर झर आवाज़ उसके कानों को मधुरता देती थी। रोज़ की तरह आज भी शोभा अपनी बालकनी में खड़े होकर चाय पी रही थी तभी उसकी नज़र कुछ दूरी पर जमा हुई भीड़ पर गयी। ना जाने क्या हुआ है वहाँ जो लोगो की भीड़ इकट्ठा है...आखिर कार सब ठीक तो है कही कोई दुर्घटना तो नहीं हुई। मन में इन सवालों की उथल पुथल के चलते घड़ी की तरफ देख जल्दी से अपना बैग उठा व घर को लॉक कर लिफ्ट की तरफ तेज कदमों से चल पड़ी। स्कूल सही समय पर जो पहुँचना होता था नहीं तो प्रिंसिपल मैडम की डाँट सुननी पड़ती थी। जल्दी से लिफ्ट से उतर कर बाहर रोड़ से ही स्कूल का रिक्शा कर लिया था शोभा ने। लोगों की भीड़ अभी भी जमा थी वहां, रिक्शा रूकवा कर उतर कर पूछा तो पता चला कि कोई पागल औरत है जो शायद घर से निकाल दी गयी है और अब दर दर भटक रही है और अब इस पेड़ के नीचे बैठ कर सबसे मदद की गुहार लगा रही है। वहाँ सबकी अपनी अपनी अलग राय बन रही थी परंतु सही बात क्या थी ये नहीं पता चल पाया था।
खैर, यह सब छोड़ शोभा जल्दी से रिक्शे पर बैठ स्कूल की तरफ चल पड़ी, लेकिन आज उसका मन स्कूल में भी नहीं लग रहा था बस में एक बवंडर सा आया हुआ था शायद वो खुद एक औरत है तो दूसरी औरत का दुख कैसे देख सकती थी। छुट्टी का समय हो चुका था जल्दी से प्रिंसिपल मैडम को रिपोर्टिंग कर वह बाहर निकली और रिक्शा पकड़ घर की और चल दी। घर के पास पहुंच के देखा तो भीड़ छट चुकी थी लेकिन उस पेड़ के नीचे वो पागल औरत बैठी हुई खुद से ही ना जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। शोभा वही रिक्शा से उतर गयी और धीरे धीरे कदमों से उसकी तरफ बढ़ी तभी उस पागल औरत ने शोभा को पकड़ लिया और रो रो कर मदद की गुहार लगाने लगी
“मेरे पति को बचा लो, कोई मेरे बच्चे को बचा लो कोई डॉक्टर को बुलाओ…वो वो वो गाड़ी वाला मेरे पति को मार गया उनको बचा लो कोई तो मेरी मदद करो।" उसकी बातें सुन शोभा डर से चीख पड़ी और खुद को छुड़ाती हुई घर की और भाग पड़ी। घर पहुंच डर के मारे पसीने से लतपथ हुई शोभा ने पानी का गिलास उठा पानी पिया और सोफ़े पर आँखें बंद करके बैठ गयी, अभी भी उसके कानों में वही सब बातें गूँज रही थी और दिमाग़ में एक सोच की शायद वो उस औरत को जानती है, आखिर कहाँ मुलाकात हुई थी उन दोनों की, दिमाग में सवाल तो बहुत चल रहे थे परंतु उन सवालों का जवाब देने लिए स्थिर नहीं था दिमाग।
देखते ही देखते शाम हो चुकी थी विकास के आते ही शोभा ने उसको सारी बात बता दी थी, विकास ने उसको शांत कर ठन्डे दिमाग से सोचने को कहा।शोभा ने अपना ध्यान बच्चों में लगाते हुए रात के खाने की तैयारी की। डायनिंग टेबल पर विकास ने कहा कि “अरे शोभा, याद आया कल तैयार रहना हमें शुक्ला जी की रिटायरमेंट पार्टी में जाना है।" शोभा ठीक है का जवाब दे लग गयी थी किचन में झूठे बर्तन साफ करने में।
“सुनो विकास, हम पिछले महीने जब मल्होत्रा जी की रिटायरमेन्ट पार्टी में गये थे तब वहाँ जो तुम्हारे ऑफ़िस में आये नये सहकर्मी, जिनसे पार्टी में मुलाकात हुई थीं क्या वो और उसकी बीवी ठीक है?? दोनो बहुत अच्छे नेचर के थे मानो कि हमारे ही परिवार का हिस्सा हो व दोनो में बहुत प्यार व आने वाले बच्चे के लिए बहुत उत्सुकता थी। आखिरकार इस अंजान शहर में दोनों अकेले रहते है ऊपर से उनकी पत्नी गर्भवती। उन्हें कहियेगा अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो हमें बताये..आगे बोलने ही वाली थी शोभा की विकास ने उसे दुःखी मन से बताया कि उस दिन पार्टी से लौटते समय कोई गाड़ी वाला उनकी बाइक को टक्कर मार गया था जिसके कारण उसके सहकर्मी की वही मृत्यु हो गयी थी व उसकी गर्भवती बीवी सबसे मदद की गुहार मांगते मांगते बेहोश हो गयी थी। मल्होत्रा जी की गाड़ी रास्ते से गुजर रही थी तो उन्होंने यह सब देख जल्दी से एम्बुलेंस बुला दोनो को अस्पताल ले गये जहाँ लड़के को मृत्यु घोषित कर दिया व उनका बच्चा भी नहीं बच पाया। होश आने पर उनकी बीवी पागल हो गयी और अस्पताल से भाग गई। घर वालों को भी खबर दी गाँव से यहाँ आकर उन्हें ढूंढने पर भी कोई नहीं मिला बस लड़के का अंतिम संस्कार कर वापिस अपने गाँव लौट गए।
ओह्ह, यह तो बेहद दुःख भरी घटना हुईं रूहासी आवाज़ में शोभा ने कहा! खैर भगवान की शायद यही मर्ज़ी थी। बच्चों को सुला खुद अपने कमरे की लाइट्स बंद कर लेट कर सोने की कोशिश तो बहुत कर रही थी शोभा पर नींद थी जो आने का नाम नहीं ले रही थी। कुछ समय के बाद अभी शोभा नींद के आग़ोश में गयी ही थी कि अचानक से फिर वही रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, फिर वही मदद की गुहार। शोभा उठी उसने विकास को उठाया परंतु विकास की नींद नहीं खुली ज्यादा कोशिश ना कर शोभा खुद उठ कर जल्दी से बालकनी की तरफ भागी और बाहर झाँकने पर देखा कि वो पागल औरत उसी के घर के पास बैठी रो रही थी। शोभा को कुछ अजीब सा लगा क्योंकि विकास के द्वारा सुनाई गई वो दुखदायी बात और इस औरत की मदद की गुहार में उसको काफी समानतायें लग रही थी। उसका दिल डरा हुआ व दिमाग़ बार बात यह सोचने में मजबूर कर रहा था कि कही ये वही तो नहीं जिसका पति विकास का सहकर्मी था, क्योंकि कल इसके द्वारा मांगी जाने वाली अपने पति व बच्चे के लिए मदद की गुहार शोभा को यह सब सोचने के लिए मजबूर कर रही थी।
शोभा ने ठान ली थी कि कल सुबह होते ही वो सबसे पहले उस औरत के पास जा सब कुछ जानने की कोशिश करेंगी। उस रात का एक एक पल बिताना शोभा के लिए मुश्किल होता जा रहा था कब उसकी आँख लग गयी थी उसको पता ही नहीं चला। अगले दिन सुबह सुबह अलार्म बजने से पहले ही अचानक से शोभा की नींद खुल गयी वो जल्दी से उठ दरवाज़ा खोल नीचे की तरफ दौड़ी। बाहर जाकर देखा तो वो औरत वहाँ नहीं थी लोगों से पूछा तो वो बताने में असमर्थ थे तभी सड़क पर झाड़ू मारने वाले सरकारी कर्मचारी ने बताया “मैडम जी,आज सुबह सुबह एक ट्रक ड्राइवर जोकि नशे में था उस औरत को मार गया, काफी देर तक उसकी लाश खून में लथपथ रोड पर पड़ी रही। किसी को उसके बारे में उसके घर परिवार के बारे में कुछ नहीं पता था। तब मुन्सिपल कारपोरेशन की गाड़ी बुलाई गई और वो उस लावारिस लाश को अपने साथ ले गये। ये सारी बात सुन मन में अनेकों सवाल व आँखो में आँसू लिए शोभा के कदम उसके घर की तरफ बढ़ने लगे।